मोदी सरकार में बढ़ती महंगाई से ग़रीबों पर होने वाला असर
पिछले एक साल से भारत भी तेज़ी से बढ़ती खाद्य सामानों की महंगाई का सामना कर रहा है। पिछले साल अक्तूबर से अब तक घरेलू स्तर पर चावल के दाम 30 प्रतिशत तक बढ़ चुके हैं।
Table of Contents (Show / Hide)
![मोदी सरकार में बढ़ती महंगाई से ग़रीबों पर होने वाला असर](https://cdn.gtn24.com/files/india/posts/2023-08/1690976743.webp)
अगले साल आम चुनाव हैं, ऐसे में सरकार पर भी दबाव बढ़ रहा है। अगले कुछ महीनों में कई राज्यों में भी चुनाव होने हैं। ऐसे में जीवन यापन की बढ़ रही लागत सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है।
इंटरनेशनल फ़ुड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट से जुड़े जोसेफ़ ग्लॉबर कहते हैं, “मुझे लगता है कि ग़ैर-बासमती चावल के निर्यात पर रोक का फ़ैसला एहतियात के तौर पर लिया गया है और उम्मीद है कि ये अस्थायी साबित होगा।
भारत में कृषि नीतियों के विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि भारत सरकार उत्पादन में गिरावट की आशंका से आगे रहना चाहती है क्योंकि दक्षिण भारत के चावल उत्पादन वाले क्षेत्रों में सूखे की आशंका है क्योंकि इस साल अगले कुछ महीनों में अल नीनो प्रभाव के चलते बारिश कम रह सकती है।
बहुत से लोगों का मानना है कि भारत को चावल के निर्यात पर रोक के फ़ैसले से बचना चाहिए था क्योंकि इससे वैश्विक खाद्य सुरक्षा को ख़तरा पैदा हो सकता है।
42 देश अपने चावल आयात का पचास फ़ीसदी से अधिक भारत से करते हैं. आईएफ़पीआरआई के मुताबिक़ अफ़्रीका के कई देशों में 80 फ़ीसदी चावल भारत से निर्यात होता है।
एशिया में चावल की शीर्ष खपत वाले देशों- बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड और श्रीलंका में उदाहरण के तौर पर कुल कैलरी खपत में चावल का योगदान 40 से 70 प्रतिशत के बीच रहता है।
ग़रीबों पर ज़्यादा असर
मुस्तफ़ा कहते हैं, “इससे कमज़ोर वर्ग को सबसे अधिक चोट पहुंचेगी क्योंकि ये लोग अपनी आय का अधिकतर हिस्सा खाद्य सामान ख़रीदने पर ही ख़र्च करते हैं।”
मुस्तफ़ा कहते हैं, “बढ़ती क़ीमतें इन लोगों को खपत कम करने या फिर अन्य विकल्पों की तरफ़ जाने पर मजबूर कर सकती हैं, जो इतने पोषक नहीं होंगे। या फिर ये लोग मजबूरी में अपनी अन्य ज़रूरतों जैसे रहने और खाने में कटौती करेंगे।
हालांकि भारत के प्रतिबंध के तहत कुछ सरकारों को खाद्य सुरक्षा के आधार पर निर्यात की छूट है।
खाद्य सामानों पर प्रतिबंध नए नहीं हैं. पिछले साल यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से खाद्य सामग्री के निर्यात पर रोक लगाने वाले देशों की संख्या तीन से बढ़कर 16 हो गई है।
इंडोनेशिया ने पॉम ऑयल के निर्यात पर रोक लगा दी थी। अर्जेंटीना ने बीफ़ के निर्यात पर रोक लगा दी, वहीं तुर्की और किर्गीस्तान ने कई खाद्य उत्पादों का निर्यात रोक दिया।
कोविड महामारी के पहले चार हफ़्तों में 21 देशों ने अलग-अलग उत्पादों के निर्यात पर रोक लगा दी थी।
लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के इस प्रतिबंध से बड़ा ख़तरा पैदा हो सकता है। दिल्ली स्थित थिंक टैंक इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च एंड इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशन से जुड़े अशोक गुलाटी रिया दास चेताते हुए कहते हैं, “इससे निश्चित तौर पर सफ़ेद चावल के दाम बढ़ेंगे और कई अफ़्रीकी देशों में खाद्य सुरक्षा पर ख़तरा पैदा हो जाएगा.”
इन विशेषज्ञों के मुताबिक़, जी-20 में ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) का ज़िम्मेदार नेता बनने के लिए, भारत को इस तरह के अचानक प्रतिबंधों से बचना चाहिए।
हालांकि वो कहते हैं, “लेकिन बड़ा नुक़सान ये है कि इससे भरोसेमंद आपूर्तिकर्ता की भारत की छवि को भी झटका लगेगा”