बाबरी मस्जिद, ज्ञानवापी और अब ताजमहल, मुसलमानों के धर्म स्थलों पर हमले कब तक?
हिन्दूवादी संगठनों द्वारा देश में लगातार मुस्लिम धर्म स्थलों को निशाना बनाया जा रहा है। बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद अब नया मामला ज्ञानवापी मस्जिद और ताजमहल का है।
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सरकार का मौन और खुला समर्थन प्राप्त यह संगठन लगातार मुसलमानों की नरसंहार का आह्वान करते हैं, मुसलमान धार्मिक स्थलों पर लगातार यह दावा कर रहे हैं कि उनको हिंदू धर्म स्थलों और मंदिरों के अवशेषों पर बनाया गया है।
यही दावा बाबरी मस्जिद के ऊपर किया गया था, और आखिरकार उसको हिंदुओं की उग्र भीड़ ने ध्वस्त कर दिया। और सालों चले मुकदमे में आखिर कार देश की सर्वोच्च अदालत ने हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाया।
बाबरी मस्जिद के मामले में सबूतों के आभावों के बावजूद केवल आस्था को आधार बनाए जाने के बाद हिंदुओं के पक्ष में फैसला आने के बाद से इन हिंदुवादी संगठनों के हौसले बढ़ गए हैं। उन्होंने अब वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मधुरा की शाही मस्जिद पर दावा ठोंक दिया है। बात वही पुरानी है कि इन मस्जिदों को मंदिरों को तोड़कर बनाया गया है।
हालांकि उनका यह दावा उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) क़ानून, 1991 कहता है कि 1947 में जो धार्मिक उपासना स्थल जिस स्थिति में था, वैसा ही बना रहे के विरुद्ध है, लेकिन उसके बावजूद न केवल ज्ञानवापी में सर्वे हुआ, बल्कि तथाकथित शिवलिंग मिलने की बात कहकर मस्जिद के वज़ूखाना को सील कर दिया गया।
जब कि होना तो यह चाहिए था कि "सुप्रीम कोर्ट को निचली अदालत को सीधी भाषा में बोलना चाहिए कि वो किसी भी याचिका को सुनते वक़्त 1991 (उपासना स्थल विशेष प्रावधान क़ानून) के क़ानून का पालन करें और किसी भी न्यायिक उल्लंघन को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।"
लेकिन न केवल देश की सर्वोच्च अदालत ने यह नहीं कहा बल्कि एक प्रकार से इसको सही भी ठहरा दिया। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील हुज़ैफ़ा अहमदी ने कोर्ट के सामने दलील दी कि वाराणसी की अदालत ने जिस प्रक्रिया की शुरुआत की है वो साल 1991 में लाए गए उपासना स्थल कानून का उल्लंघन है तो उस पर सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकान्त और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहाः किसी धार्मिक स्थान के चरित्र का पता लगाना इस क़ानून में मना नहीं है।
अब प्रश्न यह है कि अगर कल को कोई मुसलमान अयोध्या में बन रहे मंदिर पर यही दावा करे कि यह मस्जिद को तोड़कर बनाया गया है और उसका सर्वे किया जाना चाहिए तो इन जजों का उत्तर क्या होगा?
एक के बाद एक मुसलमान धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया जा रहा है, और सरकार उसका समर्थन कर रही है, न्यायपालिका से मुसलमानों को न्याय नहीं मिल रहा है।
वर्तमान में मथुरा के 'कटरा केशव देव' इलाक़े को हिंदू देवता श्रीकृष्ण का जन्मस्थान माना जाता है। यहां कृष्ण मंदिर बना है और इसके परिसर से सटी शाही ईदगाह मस्जिद है।
कई हिंदुओं का दावा है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। वहीं, कई मुसलमान संगठन इस दावे को ख़ारिज करते हैं।
साल 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और ट्रस्ट शाही ईदगाह मस्जिद के बीच एक समझौता हुआ था जिसके तहत इस ज़मीन को दो हिस्सों में बांट दिया गया था। लेकिन, सिविल कोर्ट में दी गई याचिका में इस समझौते को अवैध बताया गया है।
मथुरा ज़िला कोर्ट ने सिविल कोर्ट (सीनियर डिविज़न) में इस मामले की सुनवाई का आदेश दे दिया है।
विश्व प्रसिद्ध इमारत ताजमहल को भी हिंदूवादी संगठन ताजमहल जिसे यूनेस्को की विश्व धरोहर में रखा गया है पर भी दावा किया गया है कि 17 वीं शताब्दी के मकबरे का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहाँ ने एक शिव मंदिर के स्थान पर किया था।
हिंदू महासभा के प्रवक्ता संजय जाट ने एएफपी को बताया, "मुगल आक्रमणकारियों ने इसे नष्ट कर दिया ताकि वहां एक मस्जिद बनाई जा सके।"
लेखक प्रताप भानु मेहता के मुताबिक़, 'अयोध्या के बाद काशी और मथुरा में मंदिरों को वापस करने की बात करना बहुसंख्यक शक्ति का इस्तेमाल है, अब जबकि सत्ता बहुसंख्यकों के पास है'
वो लिखते हैं, "इन पवित्र स्थानों को वापस लेने का मक़सद धर्म नहीं है। ज्ञानवापी मस्जिद के रहने से काशी विश्वनाथ के प्रति भक्ति पर असर नहीं पड़ा है या फिर वो कम नहीं हुई है। इसे वापस लेने का मक़सद ये दिखाना है कि हिंदुओं के पास ताक़त है और मुसलमानों को उनकी जगह दिखाई जाए।"
मुसलमानों के धर्म स्थलों के विरुद्ध जारी यह उनमाद कहा जाकर रुकेगा यह तो समय ही बताएगा, लेकिन यह सच है कि अगर ऐसे ही हर धर्म स्थल पर सर्वे और मुकदमें होते रहे तो देश का माहौल जो पहले से ही जहरीला है और खराब हो जाएगा