भारतीय टीम भाग्यशाली रही जो चीन को आख़िरी मिनट में दिए गए पेनल्टी कॉर्नर को नकार दिया गया।
भारतीय खिलाड़ियों को जिस तरह के खेल के लिए जाना जाता है, वैसा खेल वह मैच में अधिकांश समय प्रदर्शित करने में असफल रहीं। अटैक में जिस आपसी तालमेल की ज़रूरत होती है, वह देखने में नहीं मिला। कई बार तो आख़िरी समय में ग़लत पास देकर उन्होंने सर्किल में प्रवेश करने का मौक़ा ही गँवा दिया।
भारतीय टीम आमतौर पर त्रिकोण बनाकर अटैक करती है। राइट फ्लैंक में वंदना कटारिया, सलीमा टेटे और नवजोत के बीच यह त्रिकोण बन ही नहीं पाया क्योंकि चीन के डिफेंडर फुर्ती दिखाकर भारतीय खिलाड़ियों तक गेंद पहुँचने से पहले ही पहुँचकर अटैक की जान निकालते रहे। भारतीय टीम जब कभी अच्छा खेलने में सफल दिखी तो चीनी गोलकीपर आंग लू दीवार बन गईं।
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भारतीय टीम ने एफआईएच प्रो लीग में भले ही शानदार प्रदर्शन करके अपने से ऊंची रैंकिंग की टीमों के ख़िलाफ़ सफलता प्राप्त की थी। लेकिन उसके भी मैचों में कई बार पेनल्टी कॉर्नरों को गोल में बदल नहीं पाने की कमज़ोरी देखने को मिली थी।
यह कमज़ोरी इस मैच में भी देखने को मिली। असल में भारतीय खिलाड़ी सीधे शॉट से गोल भेदने का प्रयास करती रहीं और चीन की गोलकीपर ने उन्हें पार पाने का मौक़ा ही नहीं दिया। बेहतर होता कि भारतीय टीम पेनल्टी कॉर्नर लेन में वेरिएशन का इस्तेमाल करती।
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