जानिए न्यूक्लियर फ्यूज़न के बारे में
सूर्य की चमक इंसानों के लिए हज़ारों साल से आश्चर्य की वजह रही है। लेकिन करीब सौ साल पहले खोज हुई कि सूर्य की बेशुमार ऊर्जा का कारण है न्यूक्लियर रिएक्शन, जिसे फ्यूज़न कहा जाता है।
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अगर धरती पर उसी तरह का फ्यूज़न कराया जा सके तो बहुत कुछ बदल सकता है। दुनिया भर के लोगों को बेशुमार ऊर्जा मिल सकती है। बीते करीब सौ साल से फ्यूज़न कराने की कोशिश जारी है। करीब पचास साल से दावे किए जा रहे हैं कि ये लक्ष्य अगले कुछ दशक में हासिल हो जाएगा।
इस साल फरवरी में इंग्लैंड के वैज्ञानिकों ने दावा किया कि वो पांच सेकेंड तक ऐसा करने में कामयाब हुए हैं। अब सवाल है कि क्या न्यूक्लियर फ्यूज़न से दुनिया को ऊर्जा संकट का स्थायी समाधान मिल सकता है?
फ्यूजन क्या है?
आसान शब्दों में कहें तो न्यूक्लियर फ्यूज़न वो प्रक्रिया है जहां दो या उससे ज़्यादा परमाणुओं के साथ आने से एक परमाणु बनता है। इस प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर ऊर्जा निकलती है
साउथईस्टर्न लुइज़ियाना यूनिवर्सिटी में फिज़िक्स के एसोसिएट प्रोफ़ेसर रेट एलेन कहते हैं, "फ्यूजन में यही होता है। हम परमाणुओं को लेते हैं। उन्हें एक साथ जोड़ते हैं और इस प्रक्रिया में द्रव्यमान घट जाता है और अतिरिक्त ऊर्जा मिलती है।" ये सीधी सी प्रक्रिया मालूम होती है तो फिर हमने इसे काफी पहले ही क्यों नहीं आजमाया? वजह है इस प्रक्रिया से जुड़ी दिक्कतें।
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परमाणु हमारी दुनिया का सबसे छोटा हिस्सा हैं। वो एक दूसरे से जुड़कर मॉलिक्यूल यानी अणु बनाते हैं। मसलन हाइड्रोजन के दो परमाणु और ऑक्सीजन का एक परमाणु मिलकर पानी का एक अणु बनाते हैं। ये एक अणु तीन परमाणु से मिलकर बनता है।
लेकिन फ्यूज़न में आप दो परमाणु लेते हैं और वहां आपको एक अणु नहीं बनाना है बल्कि आप दोनों को मिलाकर एक परमाणु बना रहे होते हैं। बहुत ताकत के साथ पास लाने पर वो जुड़ जाते हैं।
रेट एलेन कहते हैं, " ये संपर्क बहुत ज़ोरदार होता है। दूरी बहुत ही कम होती है। अगर आप दो प्रोटोन को एक दूसरे के बेहद करीब ले आते हैं तो एक दूसरे को खींचने वाला परमाणविक बल एक दूसरे को परे धकेलने वाले विद्युतीय बल से ज़्यादा होता है और वो आपस में जुड़ जाते हैं। "
और जब ऐसा होता है तो बड़ी मात्रा में ऊर्जा बाहर आती है। इसके पीछे का कारण एक चर्चित फॉर्मूले से समझा जा सकता है। 'ई ईक्वल्स एमसी स्क्वैयर' (E =mc2)।
साल 1905 में अल्बर्ट आइंस्टाइन ने ये समीकरण सामने रखा और समझाया कि तारों और परमाणु विस्फोटों में ऊर्जा कैसे बाहर आती है। ये समीकरण बताता है कि परमाणु के वजन में हुई कमी ऊर्जा में तब्दील हो जाती है।
रेट एलेन कहते हैं, " इसे ऐसे समझें कि अगर मैं कम द्रव्यमान वाले परमाणु लेता हूं और उन्हें एकसाथ जोड़ता हूं तो तैयार प्रोडक्ट का द्रव्यमान शुरुआत के मुकाबले कम होगा। न्यूक्लियर फ्यूज़न में हम ऐसा ही करते हैं। हम ऊर्जा पाने के लिए चीजों को साथ में जोड़ते हैं।"
मौजूदा न्यूक्लियर पावर प्लांट इस तरह से यानी परमाणुओं को जोड़कर ऊर्जा हासिल नहीं करते हैं। वो परमाणुओं को अलग अलग करते हैं।
परमाणुओं को अलग करने की प्रक्रिया फिज़न यानी विखंडन कहलाती है। इसमें भी द्रव्यमान में कमी आती है और आइंस्टीन का फॉर्मूला यहां भी लागू होता है।
न्यूक्लियर पावर प्लांट में विखंडन कराना फ्यूजन के मुकाबले आसान है। लेकिन कुछ चुनौतियां भी हैं।
रेट एलेन बताते हैं, " न्यूक्लियर फिज़न के साथ कुछ दिक्कतें जुड़ी हैं। हमारे पास जो न्यूक्लियर पावर प्लांट हैं, उनसे काफी ऊर्जा हासिल होती है। लेकिन जब आप ज़्यादा द्रव्यमान वाला परमाणु लेते हैं और उसे तोड़ते हैं तब आपके पास बचे हुए टुकड़े होते हैं वो सिर्फ रेडियोएक्टिव ही नहीं होते वो रासायनिक रूप से भी सक्रिय हो सकते हैं। उसे हम परमाणु कचरा कहते हैं।"
फ्यूज़न के साथ सबसे बड़ी चुनौती है इस प्रक्रिया को चलाए रखना। इसका कचरा रेडियोएक्टिव नहीं होता या सीमित रेडियोएक्टिव होता है। फ्यूज़न में जिस ईंधन की ज़रूरत होती है, वो भी आसनी से मिलता है।
सोर्स : बीबीसी