रिकॉर्डतोड़ पारा और गर्म होता समंदर : वैज्ञानिकों की चेतावनी
तापमान में रिकॉर्ड बढ़ोतरी, समुद्र की सतह के गर्म होने और अंटार्कटिक सागर में बर्फ पिघलने की एक के बाद एक घटनाओं को लेकर वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है।
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तापमान में रिकॉर्ड बढ़ोतरी, समुद्र की सतह के गर्म होने और अंटार्कटिक सागर में बर्फ पिघलने की एक के बाद एक घटनाओं को लेकर वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है। वैज्ञानिक कहते हैं कि इस तरह की घटनाओं में देखी जा रही तेज़ी और उनके होने का वक्त "अभूतपूर्व" है।
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि पूरे यूरोप में चल रही भयंकर लू 'जानलेवा प्राकृतिक आपदा है' जो अभी और रिकॉर्ड तोड़ सकती है।
पाकिस्तान अभी बीते साल आई भीषण बाढ़ की तबाही से पूरी तरह उबर भी नहीं सका है और इस साल वो एक बार फिर मॉनसून की भारी बारिश का सामना कर रहा है।
बीते साल आई बाढ़ में पाकिस्तान में 1,500 से अधिक लोगों की जान गई थी जबकि हज़ारों हेक्टेयर खेती पानी में डूब गई थी। वहीं इस साल अब तक लाहौर में दो दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है।
भारत का एक बड़ा हिस्सा इस साल ज़रूरत से अधिक बारिश की मार से जूझ रहा है. जहां देश का 40 फीसदी हिस्सा अधिक बारिश और बाढ़ की स्थिति की मार झेल रहा है देश का बड़ा हिस्सा अभी भी बारिश को तरस रहा है।
भारत में राजधानी दिल्ली समेत कई इलाक़ों में इस साल मॉनसून की बारिश ने बीते दशकों के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।
जलवायु परिवर्तन पर शहर प्रशासन के ड्राफ्ट एक्शन प्लान के अनुसार मौसम में बदलाव के कारण साल 2050 तक दिल्ली 2.75 लाख करोड़ का नुक़सान हो सकता है।
इस रिपोर्ट के अनुसार आने वाले सालों में शहर के सामने गर्म हवाओं, अधिक तापमान और हवा में नमी के कम होने जैसी चुनौतियों का सामना कर सकती है। इस रिपोर्ट को अभी सरकार की मंज़ूरी का इंतज़ार है।
रिकॉर्डतोड़ गर्मी
इस बार पूरी दुनिया में जुलाई महीने में अब तक का सबसे अधिक गर्म दिन रिकॉर्ड किया गया. इसने वैश्विक औसत तापमान का 2016 में बना रिकॉर्ड भी तोड़ दिया।
जलवायु पर निगरानी रखने वाली यूरोपीय संघ की एजेंसी कोपर्निकस के अनुसार इस साल 6 जुलाई को वैश्विक औसत तापमान 17.08 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा।
धरती के गर्म होने के कारणों के पीछे जीवाश्म से मिलने वाले तेल, कोयला और गैस जैसे ईंधन के जलाने से पैदा होने वाला उत्सर्जन शामिल है।
इंपीरियल कॉलेज लंदन में जलवायु वैज्ञानिक डॉक्टर फ्रेडरिक ओटो कहती हैं कि ग्रीनहाउस गैसों के कारण गर्म होने वाली धरती के बारे में इस तरह का पूर्वानुमान पहले ही लगाया गया था।
डॉक्टर थोमस स्मिथ कहते हैं "अगर मुझे किसी बात पर आश्चर्य है तो वो हम देख रहे हैं कि रिकॉर्ड जून के महीने में ही टूट गया है। अब तो साल भी पूरा नहीं हुआ आम तौर पर वौश्विक स्तर पर एल-नीनो की प्रक्रिया का असर इसके शुरू होने के पांच छह महीनों तक दिखाई नहीं देता।"
एल-नीनो जलवायु में उतार-चढ़ाव की प्राकृतिक तौर पर होने वाली दुनिया की सबसे ताकतवर प्रक्रिया है। उष्णकटिबंधीय प्रशांत में ये प्रक्रिया समुद्र की सतह पर मौजूद पानी को गर्म कर देती है, जिससे वायुमंडल में गर्म हवाएं चलने लगती हैं। आम तौर पर ये प्रक्रिया वैश्विक स्तर पर वातावरण का तापमान बढ़ा देती है।
औद्योगिकरण से पहले के दौर में जून के महीने के तापमान की तुलना में इस साल जून के महीने में औसत वैश्विक तापमान 1.47 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। औद्योगिकरण क़रीब 1800 के आसपास शुरू हुआ जिसके बाद से इंसान लगातार बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में छोड़ता रहा है।
क्या 2023 की गर्मियों में जो कुछ हुआ उसके बारे में दशक भर पहले पूर्वानुमान लगाया गया था?
इस सवाल के उत्तर में डॉक्टर स्मिथ कहते हैं कि जलवायु को लेकर पूर्वानुमान लगाने के लिए जो मॉडल हैं वो लंबे वक्त में ट्रेंड का आकलन करने में कारगर हैं लेकिन 10 साल में होने वाले बदलावों का पुख्ता तौर पर आकलन नहीं कर सकते।
वो कहते हैं, "1990 के मॉडल के अनुसार हम काफी हद तक वहीं हैं जहां पर आज हैं। लेकिन अगले 10 सालों में स्थिति वास्तव में कैसी होगी इसका सही-सही आकलन लगा पाना बेहद मुश्किल है। वो कहते हैं, "बढ़ रहा तापमान कम होने लगेगा, ऐसा नहीं लगता।