वो लोग जो इंटरनेट सर्फिंग करके पैसा कमा रहे हैं
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इंटरनेट पर हम लोग जो कुछ भी देखते हैं, पढ़ते हैं, सुनते हैं, वो सब कुछ किसी के लिए बेशकीमती संसाधन बन जाता है। गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियां इसी डेटा के ज़रिए हर साल अरबों रुपया कमा रही है।
इन कंपनियों की ये कमाई एडवरटिज़मेंट रेवेन्यू या विज्ञापन राजस्व के ज़रिए होती है क्योंकि वे इस डेटा का इस्तेमाल हम तक टारगेटेड विज्ञापन पहुंचाने के लिए करते हैं।
उदाहरण के लिए, आप नई जींस खरीदने की सोच रहे हैं और इसके लिए फ़ैशन स्टोर्स के ईशॉप पर ऑनलाइन नए प्रोडक्ट और डिजाइन चेक रहे हैं तो जल्द ही आप को अपने कम्प्यूटर स्क्रीन पर हर तरफ़ डेनिम ट्राउज़र्स के विज्ञापन दिखने लगेंगे। हम चाहे कुछ भी खरीदने का प्लान बना रहे हों, ये हमेशा होता है और हमने अपने कम्प्यूटर स्क्रीन पर ये बार-बार देखा है।
इंटरनेट पर गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियां जिस तरह से हम पर नज़र रखे हुए हैं, वो कभी-कभी बेचैन कर देने वाला एहसास देता है।
हाल ही में किए गए एक अध्ययन में ये बात सामने आई कि यूरोप के लोग इंटरनेट पर क्या देखते हैं, इससे जुड़ा डेटा दिन भर में 376 बार शेयर किया जाता है। अमेरिकी लोगों के मामले में ये डेटा लगभग दोगुने की हद तक बढ़ जाता है। औसत अमेरिकियों के इंटरनेट यूसेज की जानकारी 747 बार साझा की जाती है।
लेकिन ज़रा रुकिए। अगर तस्वीर का रुख बदला जा सके तो कैसा रहेगा? आपका जो डेटा शेयर किया जाता है, उस पर न केवल आपका कंट्रोल बढ़ जाए बल्कि आप उससे कुछ पैसा भी कमा सकें।
अगर ऐसा हो तो कैसा रहेगा?
हालांकि 'सर्फ़' अभी अमेरिका और कनाडा में काफी सीमित रूप से ही उपलब्ध है। आप बस ये समझिए कि ये गूगल को चकमा देकर काम करता है और आपका डेटा रीटेल कंपनियों को सीधे ही बेचता है।
बदले में 'सर्फ़' आपको प्वॉयंट्स ऑफ़र करता है जिसे आप इकट्ठा कर सकते हैं और गिफ़्ट कार्ड या डिस्काउंट के बदले इसे खर्च कर सकते हैं। इसके लिए 'सर्फ़' ने अभी तक फुट लॉकर, द बॉडी शॉप, क्रॉक्स और डायसन जैसी कंपनियों के साथ करार भी किया है।
'सर्फ़' का कहना है कि यूज़र के डेटा में उसकी पहचान पूरी तरह से गोपनीय रखी जाती है, न तो यूज़र का ईमेल अड्रेस और न ही उसके टेलीफोन नंबर शेयर किए जाते हैं और न ही साइन अप करने के लिए अपना नाम ही बताना होता है। हालांकि 'सर्फ़' अपने यूज़र से उनकी उम्र, जेंडर और एड्रेस जैसी जानकारी मांगती है लेकिन यूज़र को ये करना ही होगा, ऐसी कोई शर्त नहीं होती है।
कंपनी का विचार है कि उसके यूज़र का डेटा ब्रैंड्स इस्तेमाल कर पाएंगे। जैसे कि किसी शहर में 18 से 24 साल के नौजवान कौन सी वेबसाइट ज़्यादा देखते हैं। इस जानकारी के आधार पर कंपनियाँ इन कस्टमर तक अपना विज्ञापन पहुंचा सकेंगी।
वैसे 'सर्फ़' ने अभी तक ये नहीं बताया है कि उसका ब्राउज़र एक्सटेंशन इंस्टॉल करने वाला यूज़र सर्फिंग करके कितना पैसा कमा सकता है। हालांकि कंपनी ने ये ज़रूर बताया है कि उसके यूज़र्स को कुल मिलाकर 1।2 मिलियन डॉलर की रकम कमाने का मौका मिला।
'सर्फ़' के यूजर्स को एक सहूलियत ये भी है कि वो किस तरह का डेटा शेयर करना चाहते हैं, इसकी लगाम भी अपने हाथ में रख सकते हैं। जैसे कि कुछ वेबसाइट्स जो वो विज़िट करते हैं, लेकिन उसे गोपनीय रखना चाहते हैं तो वो ऐसा कर सकते हैं।
कनाडा के टोरंटो में यॉर्क यूनिवर्सिटी की छात्रा अमीना अल-नूर 'सर्फ़' की एक यूजर हैं। अमीना को लगता है उनके ऑनलाइन डेटा पर उनका नियंत्रण फिर से स्थापित हो गया है।
21 वर्षीय अमीना कहती हैं, "आप सर्फ़ के साथ क्या शेयर करना चाहती हैं, इसका फ़ैसला आप कर सकती हैं। कई बार मैं अपने प्वॉयंट्स चेक करना भूल जाती हूं लेकिन हफ़्ते भर बाद जब देखती हूं तो पाती हूं कि मेरे प्वॉयंट्स लगातार बढ़ रहे हैं। सभी टेक कंपनियां हमारी जानकारियां इकट्ठा करती हैं लेकिन जो बात मायने रखती है कि टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के अनुभव को बेहतर कैसे बनाया जा सकता है।"