भारत की केन्द्र सरकार ने यह भी कहा कि यह निश्चित रूप से किसी व्यक्ति को धोखाधड़ी, धोखे, ज़बरदस्ती या प्रलोभन के ज़रिये धर्मांतरित करने का अधिकार नहीं देता है।
केन्द्र सरकार ने कहा कि उसे ‘ख़तरे का संज्ञान’ है और इस तरह की प्रथाओं पर काबू पाने वाले कानून समाज के कमज़ोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक हैं, इन वर्गों में महिलाएं और आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े लोग शामिल हैं।
अधिवक्ता और भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय की एक याचिका के जवाब में संक्षिप्त हलफनामे के जरिये केन्द्र ने अपना रुख़ बताया। याचिका मे ‘धमकी’ एवं ‘उपहार और धन लाभ’ के ज़रिये छलपूर्वक धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए कड़े क़दम उठाने के निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया गया है।
उपाध्याय को 2021 में जंतर-मंतर पर एक प्रदर्शन के दौरान नारे के रूप में मुस्लिम विरोधी धमकियां देने के संबंध में गिरफ्तार किया गया था।
गृह मंत्रालय के उप-सचिव के जरिये दायर हलफनामे में जोर दिया गया है कि इस याचिका में मांगी गई राहत पर भारत सरकार ‘पूरी गंभीरता से’ विचार करेगी और उसे इस ‘रिट याचिका में उठाए गए मुद्दे की गंभीरता का संज्ञान है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि वह धर्मांतरण के खिलाफ नहीं, बल्कि जबरन धर्मांतरण के खिलाफ है।
पीठ ने याचिका पर सुनवाई को पांच दिसम्बर तक के लिए टाल दिया। पीठ ने इस याचिका को सुनवाई योग्य होने के संबध में दी गई याचिका पर भी सुनवाई टाल दी।