पश्चिम का पाखंड और फिलिस्तीनियों के खिलाफ इजरायल के जुर्म पर अरबों की चुप्पी
फिलिस्तीनियों के खिलाफ इजरायल के जुर्म मानवता की अंतरात्मा को झकझोर देते हैं। लेकिन अंतरात्मा को झकझोर देने वाले इन जुर्मों पर भी मानवता की अंतरात्मा सर्दियों की गहरी नींद में डूब गई है। इन अपराधों पर दुनिया की आंखें बंद हैं, और दुनिया के बुद्धिजीवी वह बहरे और गूंगे बन गए हैं जिनके पास बोलने के लिए कोई आवाज नहीं बची है।
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अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के इतिहास में इजरायल से अधिक भयानक, क्रूर और मानव-विरोधी शासन का उदय नहीं हुआ।
ऐसा कोई अपराध नहीं है जो इस शासन ने बार-बार नहीं किया हो। आक्रामकता, युद्ध अपराध, मानवता के खिलाफ अपराध, नागरिकों के खिलाफ अपराध, आवासीय घरों का विध्वंस, खेतों और बागों का विनाश, बच्चों को कैद करना, आतंकवाद, अपहरण, नस्लीय भेदभाव, रंगभेद, मानवाधिकारों का व्यापक उल्लंघन जैसे कई कार्य इजरायल में रोज़ाना अंजाम पाते हैं।
जबकि अगर इस प्रकार के किसी एक अपराध को भी कोई देश या वहां के राजनेता अंजाम दे दें तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वह घृणा का पात्र बनने के लिए काफ़ी है।
लेकिन बहुत ही खेद के साथ कहना पड़ता है कि किसी भी देश और किसी भी अदालत ने इस शासन के राजनीतिक ढांचे से किसी अपराधी को ट्रायल टेबल पर लाने और उसे सजा देने की हिम्मत नहीं की।
यहीं कारण है कि फिलिस्तीनियों के विरुद्ध इजरायल के इन अपराधों के मानवता के विरुद्ध बहुत ही जघन्य अपराध माना जाता है जो मानवता की अंतरात्मा को प्रभावित करता है। लेकिन अंतरात्मा को झकझोर देने वाले इन जुर्मों पर भी मानवता की अंतरात्मा सर्दियों की गहरी नींद में डूब गई है। इन अपराधों पर दुनिया की आंखें बंद हैं, और दुनिया के बुद्धिजीवी वह बहरे और गूंगे बन गए हैं जिनके पास बोलने के लिए कोई आवाज नहीं बची है।
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फिलिस्तीनियों के खिलाफ इजरायल के जुर्म के कारण
लेकिन यह स्थिति कैसे बनती है:
1. पिछली शताब्दियों में यूरोपियों द्वारा यहूदियों के खिलाफ किया गया ऐतिहासिक उत्पीड़न।
2. यहूदियों की हत्या और हिटलर के समय में उनका उत्पीड़न।
3. इन अपराधों का दस्तावेजीकरण करने में यहूदियों का प्रयास और उनकी एकता।
4. मध्य पूर्व में उनकी स्थापना के बाद यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा ज़ायोनीवाद की रक्षा के लिए अथक प्रयास।
5. सत्तर वर्षों से भी अधिक समय से इजरायली शासन द्वारा इन अपराधों को दोहराया जना, जिसने इसे एक सामान्य बात बना दिया है, और दुनिया इन अपराधों की आदी हो गई है।
6. यहूदियों पर हुए अत्याचारों का ज़ायोनी राजनेताओं द्वारा अत्यधिक दुरुपयोग।
7. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोप में पूंजी और मीडिया पर यहूदीवादी प्रभुत्व।
8. महत्वपूर्ण देशों की राजनीतिक और न्यायिक प्रणाली के साथ दोस्ती और सहयोग।
9. ज़ायोनी राजनेताओं की बेशर्मी, गुस्ताख़ी, ज़िद और अंतरराष्ट्रीय दोगलापन
10. इस शासन के खिलाफ मध्य पूर्व में अरबों और मुसलमानों के बहुमत का बुरा, अहंकारी, विध्वंसक, अशिष्ट, खोखला, अव्यवसायिक, कायर, विभाजनकारी, विश्वासघाती बचाव।
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इन अपराधों का एक छोटा सा अंश ही इस शासन के प्रति किसी को घृणा के लिए प्रेरित करने के लिए काफी है। साथ ही, इस ज़ायोनी शासन को फ़िलिस्तीनियों की हत्या के मीडिया कवरेज और इसकी फिल्मों और छवियों के प्रकाशन का कोई डर नहीं है, क्योंकि कोई भी अंतरराष्ट्रीय संगठन या संस्था इस शासन के अपराधों के लिए उसकी निंदा नहीं करती है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह शासन, किसी भी कानून से ऊपर है और किसी को भी इस पर सवाल उठाने और महाभियोग लगाने का अधिकार नहीं है।
आज, हम देखते हैं कि इजरायल अपने आंतरिक संकट से ध्यान हटाने के लिए गाजा में निर्दोष फिलिस्तीनियों पर हमला कर रहा है और उनकी हत्या कर रहा है।
सच्चाई यह है कि अगर दिर्तीय विश्व युद्ध के बाद पश्चिम द्वारा बनाई गई वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली न होती तो इज़राइल के पास ऐसे अपराध करने की शक्ति और क्षमता नहीं होती। वह अपराध जो अंतर्राष्ट्रीय न्याय प्रणाली के हवाले किए बिना 75 वर्षों से जारी हैं।
कुछ लोग इससे हैरान हैं, लेकिन अगर हम समझा जाएं कि वर्तमान अमेरिका, जो खुद को पश्चिमी दुनिया और मानव सभ्यता का नेता मानता है और मानव अधिकारों की रक्षा और का दम भरता है, वह खुद 20 मिलयन मूल निवासियों की लाशों पर बना है तो हमें आश्चर्य नहीं होगा।
साथ ही, सभ्य यूरोप भी दो विश्व युद्धों के दौरान लाखों लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार है, ठीक उसी तरह जैसे पश्चिमी सभ्यता का निर्माण अन्य देशों की संपत्ति को चुराकर किया गया था, इसलिए आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए कि अमेरिका और यूरोप फिलिस्तीनियों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की हत्या पर चुप रहता है।