इजरायल के साथ संबंधों का सामान्यीकरण अरब शासन के लिए एक हारा हुआ खेल है
इजरायल के साथ संबंधों का सामान्यीकरण अरब शासन के लिए एक हारा हुआ खेल है
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![इजरायल के साथ संबंधों का सामान्यीकरण अरब शासन के लिए एक हारा हुआ खेल है](https://cdn.gtn24.com/files/india/posts/2023-04/thumbs/234.webp)
जिन अरब देशों ने पिछले कुछ वर्षों में इजराइल के साथ संबंध सामान्य करने की कोशिश की है, उनमें अब भय और चिंता की लहर है। जबकि उन्होंने इज़राइल के साथ व्यापक समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं लेकिन आपसी समर्थन और हितों की कोई खबर नहीं है।
सितंबर से दिसंबर 2020 के महीनों के दौरान, 4 देशों, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान और मोरक्को ने आधिकारिक तौर पर इज़राइल के साथ अपने राजनयिक संबंध शुरू किए। लेकिन अब, समझौतों के लागू होने के ढाई साल बाद, तथ्य बताते हैं कि न केवल यह सामान्यीकरण आदर्श नहीं है, बल्कि यह एकतरफा और और हाला हुआ रिश्ता है, जो समय बीतने के साथ, एक दलदल की तरह , इजरायल के सामने वाली पार्टियों को निगलता जाएगा।
इजरायली साइबर घुसपैठ
इज़राइल द्वारा संबंधों के सामान्यीकरण के बाद पहला बिंदु साइबर और हाई-टेक क्षेत्र था। इज़राइल में पंजीकृत स्टार्टअप की सबसे बड़ी संख्या हाई-टेक और साइबरटेक कंपनियां हैं। इन कंपनियों के ज्यादातर के प्रमुख, इजरायली सेना के कमांडर और सुरक्षा सेवा से सेवानिवृत्त लोग हैं। ये कंपनियाँ निजी संस्थाओं के रूप में उन देशों में शाखाएँ स्थापित करती हैं जिनसे नए सम्बन्ध स्थापित हो चुके हैं। दूसरा कदम मेजबान देशों के साइबर और हाई-टेक इंफ्रास्ट्रक्चर में घुसपैठ करना है। वे सूचनाओं के आदान-प्रदान और स्थानीय कंपनियों के साथ संयुक्त सहयोग के अनुबंधों में प्रवेश करके मेजबान देशों के बुनियादी ढांचे में प्रवेश करते हैं।
इस घुसपैठ का नतीजा पिछले ढाई साल में अरब देशों में कई इजरायली स्टार्टअप स्पाई सॉफ्टवेयर की घुसपैठ के बारे में छपी खबरें और सूचनाएं हैं। इन सॉफ्टवेयर्स में "पेगासस" सबसे प्रसिद्ध है, जो पिछले कुछ समय से लगातार खबरो में बना रहा है।
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अब संयुक्त अरब अमीरात, मोरक्को और मिस्र जैसे अरब देश इस घुसपैठ और जासूसी सॉफ्टवेयर की उपस्थिति और विकास पर अपनी चिंता व्यक्त कर रहे हैं। उनकी मुख्य चिंता यह है कि भविष्य में यह घुसपैठ ऐसे स्तर तक पहुँच सकती है जब उनके पास इसका मुकाबला करने और रोकने की क्षमता नहीं होगी। .
सैन्य और सुरक्षा सहायता का अभाव
अरब देशों के साथ संवाद स्थापित करने में इजरायल का दूसरा कदम उनके सैन्य और सुरक्षा क्षेत्रों का कड़ा ध्यान रखना है। इज़राइल ने अपने सभी निर्णयों के लिए एक मॉडल के रूप में सैन्य और सुरक्षा क्षेत्र में एक सिद्धांत स्थापित किया है, कि किसी भी देश के पास ऐसे उपकरण नहीं होने चाहिए जो इस शासन की सैन्य श्रेष्ठता को क्षेत्र में कम कर दें। अपने इसी दृष्टिकोण के कारण अरब देशों के द्विपक्षीय सुरक्षा और सैन्य संबंधों को गंभीर रूप से बाधित किया है।
संबंधों के सामान्यीकरण के तुरंत बाद इजरायल ने अमेरिका को यूएई को अमेरिकी एफ-35 लड़ाकू जेट की बिक्री में रुकावट डाल दी। उसके बाद भी उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के बीच हथियारों के समझौतों की बारीकी से निगरानी की, ताकि कोई भी ऐसा हथियार अमीरात तक न पहुंचे जो इजरायल की सैन्य श्रेष्ठता को नष्ट कर दे।
इस क्षेत्र में, मोरक्को भी इजरायल के साथ केवल एक सैन्य और सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करने में सक्षम हो सका। यह समझौता भी अगर देखा जाए तो मोरक्को का न होकर इजरायल के हित में था। इस समझौते के परिणामस्वरूप मोरक्को में इजरायली सुरक्षा संस्थानों की अबाधित उपस्थिति और इजरायल के लिए मोरक्को के पानी को खोल दिया गया तै पाया, लेकिन इस समझौते से मोरक्को को कुछ हासिल न हुआ। बहुत से बहाने बनाकर इजरायल ने मोरक्कों को रक्षा प्रणाली बेचने के समझौते पर हस्क्षातक करने में अभी तक लटका रखा है।
आर्थिक क्षेत्र में इज़राइल की ऑक्टोपस उपस्थिति
आर्थिक क्षेत्र में, कई अमीराती कंपनियां इज़राइल के साथ आर्थिक अनुबंध करने में सफल रहीं। लेकिन यूएई में मौजूद इजरायली कंपनियों की संख्या यूएई की इजरायल में मौजूद कंपनियों से कहीं ज्यादा है। ऊर्जा के क्षेत्र में इज़राइल ने फिलिस्तीन के माध्यम से भूमध्य सागर में यूएई की ऊर्जा हस्तांतरण योजना का विरोध किया है, इस प्रकार जो चीज़ यूएई के लिए उपयोगी हो सकती थी उसको किनारे कर दिया गया है।
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इस क्षेत्र में, कुछ निजी वाणिज्यिक समझौतों के अलावा, कुछ हज़ार ज़ायोनी पर्यटकों की उपस्थिति अमीरातियों के लिए एकमात्र लाभ हो सकती है। इस क्षेत्र में बहरीन और मोरक्को को भी ज्यादा फायदा नहीं हुआ, सूडानी भी पूरी तरह से बेकार हो गया है।
इज़राइल अरब देशों के माध्यम से बड़े आर्थिक लाभ की तलाश में है, और इस देश के इतिहास को देखर ऐसा नहीं प्रतीत होता है कि यह अरब देशों को भी समान लाभ लेने देगा।
इजरायल संबंधों के सामान्यीकरण से क्या चाहता है
संबंधों के सामान्यीकरण के लिए इजरायल के दो मुख्य लक्ष्य हैं, जिससे न केवल अरब देशों को कोई लाभ नहीं होगा, बल्कि इन देशों को नुकसान भी होगा:
1) क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अलगाव को समाप्त करना
इजरायल का इस्लामिक और अरब देशों ने कड़ा बहिष्कार किया है और कोई भी देश उनसे संबंध स्थापित करने को तैयार नहीं है। यहां तक कि इजरायल के साथ संबंध रखने वाले देशों के मुस्लिम एथलीट भी इजरायली एथलीटों के साथ खेल और प्रतियोगिता के क्षेत्र में प्रवेश करने को तैयार नहीं हैं। संबंधों को सामान्य करके, इज़राइल इस अलगाव को खत्म करने का इरादा रखता है। हालांकि कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कुछ अरब देशों कठपुतली सरकारों के साथ संबंधों को सामान्य बनाकर इस समस्या को हल नहीं किया जा सकता है। सामान्ययीकर के बाद यह देश तर्राष्ट्रीय क्षेत्र और संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के पक्ष में मतदान करने योग्य हो जाएंगे, जिससे इजरायल को तो ज़रूर लाभ होगा लेकिन इन देशों को बदले में कुछ प्राप्त न होगा।
2) इस्लामिक और अरब समाजों में ज़ायोनी संस्कृति का प्रचार
अपने अलगाव को खत्म करने के लिए, इजरायल इस्लामी और अरब समाजों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को तोड़ना चाहता है। इसलिए वे इस्लामी और अरब समाजों में घुसपैठ करके अपनी उपस्थिति को सामान्य दिखाना और इस प्रकार वह धीरे धीरे अलगाव से बाहर निकलना चाहते हैं। यह कार्रवाई पश्चिम द्वारा सांस्कृतिक आक्रमण और इस्लामिक एवं अरब समाजों को धर्मनिरपेक्ष बनाने के प्रयास के साथ है और एक ही लक्ष्य का पीछा करती है।
इजरायल ज़ायोनी शिक्षाओं का अनुसरण करने वाला शासन है और ज़ायोनी शिक्षाओं के अनुसार, उन्हें मुसलमानों और अरबों को किसी भी तरह से लाभ नहीं पहुँचाना चाहिए, जिन्हें उनकी मान्यताओं में दुश्मन के रूप में परिभाषित किया गया है, और यदि वे ऐसा करते हैं, तो उन्होंने बहुत बड़ा पाप किया है। इसलिए यह कहा जाना चाहिए कि इजरायल के साथ संबंधों के सामान्य होने से किसी भी देश को लाभ नहीं होगा, बल्कि यह लाभ एकतरफा होगा।
उस इजरायल जो नील से यूफ्रेट्स तक यानी पूरी पश्चिमी एशिया में अपनी हुकूमत बनाना चाहता है के सात संबंधों को सामान्य बनाने का मतलब यह है कि अपनी ज़मीन पर उन लोगों को अधिकार देना जो इस्लामिक राष्ट्रों की ज़मीन हड़पना चाहते हैं, और यह ऐसा है कि जैसे चोरों के लिए घर के दरवाज़े खोलना।