सालों से जापान में लाखों मकान ख़ाली क्यों पड़े हैं?
जनवरी 2023 में जापान के टोक्यो में रहने वालों को सरकार की ओर से बेहद आकर्षक प्रस्ताव मिला कि अगर वे शहरी इलाक़े छोड़ कर बाहर बसना चाहें तो हर परिवार को प्रति संतान दस लाख येन (करीब 7,000 डॉलर) दिए जाएंगे।
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सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जापान में 80 लाख से ज़्यादा अकिया हैं।साल 2018 के आंकड़ों के अनुसार जापान में 13 फ़ीसदी अकिया मकान थे। जापान में 38 फ़ीसदी ऐसे परिवार हैं जिनमें केवल एक या दो ही लोग साथ रहते हैं। साल 2010 में जापान की जनसंख्या लगभग 13 करोड़ थी। अनुमान है कि 2060 तक जापान की आबादी घटकर 8 करोड़ रह जाएगी
शर्त यह थी कि परिवार के कम से कम एक सदस्य के पास नौकरी हो और वो ग्रामीण क्षेत्र में अपना व्यापार शुरू करने का वादा करे।
इसमें एक शर्त ये भी थी कि यह राशि लेने का बाद अगर वो पांच साल से पहले दोबारा शहर में बसना चाहे तो उन्हें पूरी रक़म सरकार को लौटानी पड़ेगी। जापान की अधिकांश आबादी शहरों में बसती है और पिछले कई सालों से वहां प्रॉपर्टी के क्षेत्र में कमी दिखती हैै। यह दीगर बात है कि वहां लाखों मकान ख़ाली पड़े हैं।
जापान मे प्रॉपर्टी की समस्या से निपटने के लिए केंद्र और प्रांतीय सरकारों द्वारा ऐसे कई कदम उठाए जा रहे हैं।
दुनिया जहान में इस हफ़्ते हम जानने की कोशिश करेंगे कि जापान में लाखों मकान ख़ाली क्यों पड़े हुए हैं?
लोगों की समस्या
जापान की प्रॉपर्टी समस्या का संबंध वहां की आबादी से भी है. ब्रिटेन की ब्रिस्टल युनिवर्सिटी में सामाजिक नीतिशास्त्र की प्रोफ़ेसर मिसा इज़ुहारा कहती हैं कि 1970 से जापान के सामने बूढ़ी होती आबादी की समस्या है।
जापान की 30 प्रतिशत आबादी 65 साल से अधिक उम्र के लोगों की है. जापान में अच्छी स्वास्थ्य सेवा की वजह से लोगों की औसत जीवन अवधि 80 साल के करीब है. मगर जन्म दर कम है।
वो बताती हैं, “जापान में महिलाओं की प्रजनन दर केवल 1.3 फ़ीसदी है. 2010 में जापान की जनसंख्या लगभग 13 करोड़ थी और उसके बाद से यह लगातार गिर रही है। अनुमान है कि यह 32 फ़ीसदी सालाना की दर से घटेगी और वर्ष 2060 तक जापान की आबादी घट कर 8 करोड़ रह जाएगी।
इसी साल जापान के प्रधानमंत्री ने संसद में अपील की कि इस समस्या का जल्द हल किया जाना ज़रूरी है अन्यथा जापान के समाज के लिए गंभीर चुनौती खड़ी हो जाएगी।
मगर जन्म दर को घटने का ख़ाली पड़े मकानों की समस्या से क्या संबंध है?
मिसा इज़ुहारा का कहना है, “पहले तीन पीढ़ियां संयुक्त परिवार में एक साथ रहती थीं जिससे घर की विरासत आसानी से नयी पीढ़ी को सौंप दी जाती थी और मकान का रखरखाव भी जारी रहता था. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद आर्थिक पुनरुत्थान के दौर में लोगों ने शहर जाकर बसना शुरू कर दिया और वहीं अपने मकान बनवा लिए दोनों ही पीढ़ियां धीरे अलग रहने लगीं।
संयुक्त परिवार छोड़ कर शहरों मे बसने से परिवार के संसाधन कम हुए और पुराने पुश्तैनी मकानों के रखरखाव की अनदेखी होने लगी।
मिसा इज़ुहारा कहती हैं, “अब परिवार छोटे होते जा रहे हैं. मिसाल के तौर पर 70 के दशक में आधे परिवार ऐसे थे जिनके अपने बच्चे थे। और 14 फ़ीसदी संयुक्त परिवार थे जिसमें तीन पीढ़ियां साथ रहती थीं। अब कुल परिवारों में 38 फ़ीसदी ऐसे परिवार हैं जिसमें केवल एक या दो लोग ही साथ रहते हैं।
जब यह लोग भी गुज़र जाते हैं या मकान छोड़ जाते हैं तो एक और अकिया बन जाता है। मगर मिसा इज़ुहारा कहती हैं कि आबादी के स्वरूप में बदलाव के अलावा दूसरे कारण भी हैं जिसकी वजह से प्रॉपर्टी संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं।