ईरान-सऊदी अरब समझौते के बाद सुप्रीम लीडर का अहम संदेश
हाल ही में ईरान और सऊदी अरब के बीच शांति समझौता होने के बाद ईरान के सुप्रीम लीडर ने हज के पैगाम में इस पर अहम बातें कही हैं।
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सऊदी अरब में एक शिया आलिम को फांसी दिए जाने के बाद देश विदेश में इस पर प्रतिक्रिया हुई थी और बहुत से लोगों और संगठनों ने इस पर अपना विरोध प्रकट किया था। कई देशों में सऊदी अरब के इस कदम के विरोध में प्रदर्शन किए गए थे।
शिया आलिम को फांसी दिए जाने के बाद ईरान के कई शहरों में भी सऊदी सरकार के विरुद्ध लोगो ने सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किए थे।
सऊदी सरकार के विरुद्ध हुए अधिकतर प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे थे लेकिन ईरान के मशहद में कुछ शरारती तत्वों ने प्रदर्शनकारियों की भीड़ में घुसकर सऊदी काउंसलेट पर हमला कर दिया था जिसका बाद दोनों देशों में मतभेद पैदा हो गया था, और सऊदी अरब ने ईरान के साथ सभी प्रकार के संबंध तोड़ दिए थे।
हाल ही में चीन की मध्यस्थता के साथ कई सालों के बाद दोनों देशों के बीच शांति समझौता हुआ है। ईरान के सुप्रीम लीडर ने अपने हज संदेश में ईरान और सऊदी अरब के संबंधों पर कई अहम बातें कही हैं।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का हज का पैग़ाम
ईरान के इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने हाजियों के नाम अपना पैग़ाम जारी किया।
बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम
सारी तारीफ़ें पूरी कायनात के मालिक के लिए, अल्लाह का दुरूद व सलाम हो सबसे अज़ीम पैग़म्बर मोहम्मद मुस्तफ़ा, उनकी पाक नस्ल और चुने हुए साथियों पर।
इब्राहीमी हज के आम एलान और आलमी दावत ने एक बार फिर तारीख़ की गहराइयों से पूरी दुनिया को संबोधित किया और अल्लाह का ज़िक्र करने वाले मुशताक़ दिलों में हलचल मचा दी।
दावत देने वाले की आवाज़ पूरी इंसानियत के एक एक शख़्स के लिए हैः (और लोगों में हज का एलान कर दीजिए) और काबा, सभी इंसानों का मुबारक मेज़बान व मार्गदर्शक हैः (बेशक सबसे पहला घर जो लोगों (की इबादत) के लिए बनाया गया, वही है जो मक्के में है, बड़ी बर्कत वाला और पूरी कायनात के लिए मरकज़े हिदायत है।)
सभी इंसानों की तवज्जो के केन्द्रीय बिन्दु और मुख्य ध्रुव की हैसियत रखने वाला काबा और इस्लामी जगत के विविधताओं से भरे इलाक़ों की एक छोटी तस्वीर की हैसियत रखने वाला हज का प्रोग्राम, मानव समाज के उत्थान और सभी इंसानों की शांति व सुरक्षा की गारंटी बन सकता है। हज पूरी इंसानियत को रूहानी बुलंदी और अख़लाक़ी ऊंचाइयों के चरम बिंदु पर पहुंचा सकता है और यह आज के इंसान की अहम ज़रूरत है।
हज, आज और कल के इंसान की अख़लाक़ी गिरावट के लिए साम्राज्यवाद और ज़ायोनीवाद की तरफ़ से रची गई सभी साज़िशों को नाकाम और बेअसर बना सकता है। आलमी सतह पर यह असर डालने के लिए ज़रूरी शर्त यह है कि मुसलमान पहले क़दम के तौर पर हज के हयात-बख़्श पैग़ाम को पहले ख़ुद सही तरीक़े से सुनें और उस पर अमल करने में कोई कसर न छोड़ें।
इस हुक्म के बुनियादी स्तंभ इत्तेहाद और रूहानियत हैं। इत्तेहाद और रूहानियत इस्लामी जगत की भौतिक व आध्यात्मिक तरक़्क़ी की गारंटी है और यह पूरी दुनिया पर अपनी चमक बिखेर सकती है। एकता का मतलब वैचारिक व व्यवहारिक रिश्ता है, यह दिलों, ख़यालों और नज़रियों में निकटता पैदा होने के अर्थ में है, इसका मतलब इल्म और तजुर्बे की बुनियाद पर सहयोग है, यह इस्लामी मुल्कों के आर्थिक रिश्ते के अर्थ में है, मुस्लिम हुकूमतों के बीच आपसी भरोसे और सहयोग के अर्थ में है, यह जाने-पहचाने संयुक्त दुश्मनों के मुक़ाबले में एक दूसरे की मदद करने के अर्थ में है, एकता का मतलब यह है कि दुश्मन की ओर से तैयार की गयी साज़िश, इस्लामी मसलकों या इस्लामी दुनिया की मुख़्तलिफ़ क़ौमों, नस्लों, ज़बानों और संस्कृतियों को एक दूसरे के मुक़ाबले पर न ला सके।
एकता का मतलब यह है कि मुसलमान क़ौमें एक दूसरे को, आपसी रिश्तों, बातचीत और मेल-मिलाप से पहचानें, न कि दुश्मनों की तरफ़ से कराए जाने वाले, फ़ितने पर आधारित, परिचय से पहचानें। एक दूसरे के संसाधनों और सलाहियतों से आगाह हों और उनसे फ़ायदा उठाने के लिए प्रोग्राम तैयार करें।
एकता का मतलब यह है कि इस्लामी जगत के साइंटिस्ट और यूनिवर्सिटियां एक दूसरे के कांधे से कांधा मिलाएं, इस्लामी मसलकों के धर्मगुरू एक दूसरे को अच्छे जज़्बे, सहिष्णुता और इंसाफ़ पसंदी की नज़र से देखें और एक दूसरे की बातें सुनें। हर मुल्क और हर मसलक के विद्वान, अवाम को एक दूसरे के संयुक्त बिन्दुओं से परिचित कराएं और उन्हें आपसी भाईचारे और मिल जुलकर रहने के लिए प्रेरित करें।
इसी तरह एकता इस मानी में है कि इस्लामी मुल्कों में राजनैतिक व सांस्कृतिक हस्तियां पूरे समन्वय से, सामने उभर रहे नए वर्ल्ड ऑर्डर के हालात के लिए तैयारी करें, दुनिया के नए तजुर्बे में, जो मौक़ों और ख़तरों से भरा हुआ है, इस्लामी जगत के लिए उसकी शान के मुताबिक़ पोज़ीशन को अपने हाथों और अपने इरादे से सुनिश्चित करें और पहले विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी सरकारों के ज़रिए पश्चिम एशिया में की गई राजनैतिक व भौगोलिक तब्दीलियों के कड़वे अनुभव को दोहराने की इजाज़त न दें।
रूहानियत का मतलब दीनी अख़लाक़ियात की बुलंदी है। धर्म को नकारते हुए नैतिकता को अपनाने की भ्रामक सोच का अंजाम, जिसका लंबे समय तक पश्चिम के वैचारिक हल्क़े प्रचार करते रहे, पश्मिच में अख़लाक़ का तेज़ पतन है जिसे सारी दुनिया देख रही है।
रूहानियत और अख़लाक़ हज में अंजाम दिए जाने वाले अमल से, (हज के विशेष लेबास) अहराम की सादगी से, निराधार भेदभाव को नकारने से, (और तंगदस्त मोहताज को खाना खिलाओ की सीख) से, (हज के दौरान कोई शहवत वाला अमल, कोई बुरा अमल और कोई लड़ाई झगड़ा न हो की तालीम) से, तौहीद के मरकज़ के गिर्द पूरी उम्मत के तवाफ़ से, शैतान को कंकरियां मारने से और मुशरिकों से बेज़ारी के एलान से सीखना चाहिए।
हज का फ़रीज़ा अंजाम देने वाले भाइयो और बहनो! हज के मौक़े को, इस बेमिसाल फ़रीज़े के रहस्यों के बारे में गहराई से ग़ौर व फ़िक्र करने के लिए इस्तेमाल कीजिए और अपनी पूरी उम्र के लिए पूंजी तैयार कर लीजिए।
एकता और अध्यात्म को इस वक़्त अतीत की तुलना में कहीं ज़्यादा साम्राज्यवाद और ज़ायोनीवाद की दुश्मनी और विरोध का सामना है और साम्राज्यवादी वर्चस्व की दूसरी ताक़तें, मुसलमानों की एकता और मुसलमान क़ौमों, मुल्कों और सरकारों के बीच आपसी समझ और इन क़ौमों की नौजवान नस्ल के दीनी जज़्बे की सख़्त मुख़ालिफ़ हैं और हर मुमकिन तरीक़े से इन चीज़ों पर हमला कर रही हैं।
अमरीका और ज़ायोनीवाद की दुष्टता से भरी इस साज़िश के मुक़ाबले में डट जाना हम सबकी और सभी क़ौमों व सरकारों की ज़िम्मेदारी है।
ज्ञानी व शक्तिशाली अल्लाह से मदद मांगिए, अपने भीतर मुशरिकों से बेज़ारी के एलान जज़्बे को मज़बूत बनाइये और ख़ुद को अपनी ज़िन्दगी के माहौल में इसे फैलाने और इसका दायरा ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ाने का ज़िम्मेदार समझिए।
सभी के लिए अल्लाह से कामयाबी और आप ईरानी और ग़ैर ईरानी हाजियों के लिए क़ुबूलियत और शुक्रिए का दर्जा पाने वाले हज की दुआ करता हूं और सभी के लिए इमाम महदी अलैहिस्सलाम की, कि उन पर हमारी जानें क़ुरबान हों, क़ुबूल शुदा दुआ की कामना करता हूं।
आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत हो।
सैयद अली ख़ामेनेई
6 ज़िलहिज्जा, सन 1444 हिजरी क़मरी बराबर 25 जून सन 2023