स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम की सेंट्रल मस्जिद के बाहर बुधवार को एक व्यक्ति ने क़ुरान की एक प्रति को फाड़ा और फिर उसे जला दिया। क़ुरान जलाने की घटना को लेकर तुर्की और सऊदी अरब ने कड़ी आपत्ति जताई है। कहा जा रहा है कि तुर्की स्वीडन को नेटो में शामिल करने का पहले से ही विरोध कर रहा था और क़ुरान जलाने की घटना ने उसे और नाराज़ कर दिया है।
स्वीडन में इस्लाम विरोधी और कुर्दिश अधिकारों के समर्थन में कई विरोध प्रदर्शन के कारण तुर्की पहले से ही ख़फ़ा था. स्वीडन को नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नेटो में शामिल होने के लिए तुर्की का समर्थन ज़रूरी है। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से स्वीडन नेटो में शामिल होने की कोशिश कर रहा है लेकिन तुर्की इसके लिए तैयार नहीं है।
सऊदी अरब ने क्या कहा?
सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने भी इस घटना की कड़ी निंदा की है। विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, ''ऐसी नफ़रतभरी और लगातार की जाने वाली हरकतें स्वीकार नहीं की जा सकती। ये साफ़ है कि ये नफ़रत, नस्लभेद को बढ़ाने वाला है। ये उन अंतराराष्ट्रीय प्रयासों से विपरीत है, जिसमें सहिष्णुता, कट्टरवाद को नकारने और एक-दूसरे के प्रति सम्मान को बढ़ाने की कोशिश हो रही हैं।
मुस्लिम वर्ल्ड लीग ने भी इस घटना की निंदा की है।
मुस्लिम वर्ल्ड लीग ने कहा, ''हक़ीक़त ये है कि ये जघन्य अपराध पुलिस के सरंक्षण में हुआ है।''
क़ुरान फाड़ने वाला कौन?
पुलिस ने जिस व्यक्ति को गिरफ़्तार किया है, उनका नाम सलवान मोमिका बताया जा रहा है। सलवान की उम्र 37 साल है और ख़बरों की मानें तो वो कई साल पहले इराक़ से भागकर स्वीडन आ गए थे। सलवान ने कहा, ''मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अहमियत पर ध्यान दिलवाना चाहता था। ये लोकतंत्र है और अगर वो ये कहेंगे कि हम ऐसा नहीं कर सकते हैं तो ये ख़तरे में है।'' प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टर्शन ने कहा कि मोमिका का प्रदर्शन क़ानूनी तौर पर सही है पर ये अनुचित था। ये पुलिस के ऊपर था कि वो इसकी इजाज़त देती है या नहीं।
डॉयचे वेले की ख़बर के मुताबिक़, स्वीडन के सरकारी मीडिया ने बताया कि सलवान ने ऐसा करने के लिए इजाज़त भी मांगी थी और वो चाहते हैं कि क़ुरान को बैन कर दिया। जब ये घटना हुई तब वहां जो भीड़ मौजूद थी, उनमें से कुछ लोगों से अल-जज़ीरा ने बात की। 32 साल अवसान मेज़ोरी ने कहा, ''मुझे हमारे लिए नहीं बल्कि सलवान के लिए बुरा लग रहा है। मुस्लिम होने के नाते मेरे भीतर जो है, उसे कोई नहीं छीन सकता। मैं सलवान पर ध्यान भी नहीं देना चाहता।
हुसम अल गोमाती राजनीति में सक्रिय है और मूल रूप से लीबिया से हैं। वो बोले- ये हरकत उकसाने का एक तरीक़ा है ताकि हिंसा भड़के और मुसलमानों को हिंसक दिखाया जा सके।