नामकरण की सियासत भारतीय राजनीति का लंबे समय से हिस्सा रही है। इतिहास, राजनीति और पुरातत्व इतिहास की दुनिया के विवादित, लोकप्रिय और अक्सर किसी सभ्यता विशेष को इंगित करने वाले नाम राजनीतिक विवादों का कारण बने हैं। बात चाहे फिर इलाहाबाद के प्रयागराज हो जाने की हो या फिर औरंगाबाद के छत्रपति संभाजीनगर हो जाने की या फिर आज भारत के संविधान में इंडिया शब्द को हटा दिए जाने की।
दरअसल, किसी भी राष्ट्र का नाम उस देश की अस्मिता और ऐतिहासिक धरोहरों के गौरव को अप्रत्यक्ष रूप से संजोता है। वहां के नागरिकों को उसके इतिहास, संस्कृति और सभ्यता के प्रति गौरव की याद दिलाता है। जाहिर है राष्ट्रों के नाम वहां के जनमानस की धारा में बहते इतिहास का अभिमान ही रहे हैं और इसके साथ किसी भी तरह का बदलाव अक्सर सियासी दंगल का कारण बना है।
बाहरहाल, इस समय भारतीय राजनीति राष्ट्र के नाम को लेकर विवादों के केंद्र में है। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को चुनौती देने के लिए अस्तित्व में आया विपक्ष का नया गठबंधन “I.N.D.I.A” इस समय जहां पहले ही अपने नाम को लेकर ही निशाने पर वहीं अब भाजपा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने भारतीय संविधान में लिखे इंडिया शब्द का ही विरोध कर दिया है। जबकि देश की सर्वोच्च अदालत में तो एक याचिका भी इंडिया शब्द हटाने को लेकर लगाई गई है।