नेतन्याहू पर आरोप लगते हैं कि वो राष्ट्रीय सुरक्षा की जगह अपने राजनीतिक हितों को तरजीह दे रहे हैं। इसके साथ ही उन पर भ्रष्टाचार के कई मामले चल रहे हैं, जिससे उनकी सत्ता को ख़तरा हो सकता है।
बीते 16 सालों में 14 साल से वो देश की सत्ता पर काबिज़ हैं, इस दौरान न्यायपालिका की ताक़त को सीमित करने के लिए लाए गए क़ानूनों को लेकर भी उनकी आलोचना होती रही है। इस क़ानून के विरोध में इसराइल में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो चुके हैं।
नेतन्याहू की कैबिनेट के पूर्व रक्षा मंत्री और विपक्षी नेता एविगदोर लीबरमैन ने एक रेडियो इंटरव्यू में कहा, “वो (नेतन्याहू) सुरक्षा में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं, न ही बंधकों को लेकर उनमें दिलचस्पी है, बस उनकी राजनीति में दिलचस्पी है।”
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हमास के हमले के बाद सेना और सुरक्षा प्रमुखों के साथ-साथ रक्षा मंत्री योआफ़ गैलेंट ने ज़िम्मेदारी लेते हुए माना था कि इसराइल ने अनदेखी की है। हालांकि, नेतन्याहू ने ऐसी कोई ज़िम्मेदारी नहीं ली थी। नेतन्याहू ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा था कि युद्ध के बाद उनके साथ-साथ हर किसी से कड़े सवाल पूछे जाएंगे।
7 अक्तूबर को दक्षिणी इसराइल पर हमास के हमले में कम से कम 1400 इसराइली नागरिकों लोगों की मौत हुई है जबकि हमास ने 200 से अधिक इसराइलियों को ग़ज़ा में बंधक बनाया हुआ है।
इसराइल की ग़ज़ा पर जारी बमबारी के ख़िलाफ़ अब यूरोप से भी एक बयान आया है। स्पेन की सामाजिक अधिकार मंत्री इयोने बेलारा ने इसराइली कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा है कि इसका ख़ामियाज़ा यूरोप को भुगतना होगा।
बेलारा ने एक वीडियो ट्वीट किया है जिस पर उन्होंने लिखा है, “यूरोप को इस तरह के पाखंड की बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ेगी। जो कुछ हो रहा है, उसकी गंभीरता को लेकर यूरोप के नेता तैयार नहीं हैं। हम आज और हमेशा जनसंहार के राष्ट्र इसराइल के ख़िलाफ़ फ़लस्तीनी लोगों की रक्षा करेंगे।
इससे पहले भी बेलारा यूरोपीय संघ से अपील कर चुकी हैं कि उन्हें इसराइल की ग़ज़ा में जारी कार्रवाई पर तुरंत बोलना चाहिए। उन्होंने यहाँ तक अपील की है कि यूरोप को इसराइल के साथ अपने राजनयिक संबंध ख़त्म कर देने चाहिए।
इसके साथ ही उन्होंने मानवता के ख़िलाफ़ युद्ध अपराध को लेकर अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय में इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के ख़िलाफ़ मामला चलाने की भी वकालत की है।
ग़ज़ा पर इसराइली कार्रवाई में अब तक 8700 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं जिनमें से 70 फ़ीसदी तादाद महिलाओं और बच्चों की बताई जा रही है।