द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि अनुमानों के मुताबिक दुनियाभर में लगभग 33 प्रतिशत महिलाएं शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव करती हैं और दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र, इस संबंध में दूसरे पायदान पर आता है।
डब्ल्यूएचओ में एसईएआरओ की क्षेत्रीय निदेशक पूनम खेत्रपाल सिंह ने बताया कि ज्यादातर महिलाओं को उन लोगों द्वारा दुर्व्यवहार का अधिक ख़तरा होता है जिनके साथ वे रहती हैं। उन्होंने कहा कि इसमें से अधिकांश अंतरंग साथी द्वारा हिंसा के मामले होते हैं।2021 में भी डब्ल्यूएचओ ने समान संख्याओं को उजागर करते हुए एक समान रिपोर्ट जारी की थी। इसमें कहा गया था कि पिछले एक दशक में यह संख्या काफी हद तक अपरिवर्तित रही है।
महिलाओं को होने वाले शारीरिक और मानसिक आघात के संदर्भ में लैंगिक हिंसा के प्रभाव को मापना मुश्किल हो सकता है। ऐसे अनुभव या तो दैनिक आधार पर या कुछ अंतराल पर हो सकते हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हिंसा का प्रभाव उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से परे भी हो सकता है।
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लैंगिक हिंसा का सामना करने वाली महिला को अक्सर इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है जिसमें मेडिकल खर्च, भावनात्मक स्वास्थ्य और शिक्षा या रोजगार में व्यवधान शामिल हैं।
2016 में प्रकाशित यूएन वूमेन की एक रिपोर्ट के अनुसार, हिंसा का अनुभव करने वाली महिलाएं ऐसी हिंसा का अनुभव न करने वाली महिलाओं की तुलना में 60 फीसदी कम कमाती हैं।
रिपोर्ट में शोध का हवाला देते हुए कहा गया था कि महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा की क़ीमत वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 2 फीसदी हो सकती है। यह करीब 1.5 लाख करोड़ के बराबर हो सकती है, जो कनाडा की अर्थव्यवस्था के बराबर है।