आधुनिक डेप्लोमेसीः गाजा युद्ध के बावजूद सऊदी अरब इजरायल के साथ संबंध समान्य करने का इच्छुक
"गाजा युद्ध और इसमें हज़ारों फिलिस्तीनियों के मौत और सऊदी अरब द्वारा इस्लामी दुनिया के लीडर होने के दावे के बावजूद सऊदी अरब और इजरायल के बीच संबंध सामान्य होने की संभावना प्रबल बनी हुई है।
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इस्लामाबाद सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज (आईएसएसआई) के एक पाकिस्तानी शोधकर्ता "नादेर अली" का मानना है कि जैसा कि समझा जा रहा था कि गाजा युद्ध के बाद इजरायल के साथ अरब शासन के हालिया शांति समझौते, जिसे "अब्राहम समझौते" के रूप में जाना जाता है का पतन हो जाएगा, व्यवहारिक रूप से ज़रूरी नहीं है कि ऐसा ही हो।
इस पाकिस्तानी शोधकर्ता ने "मॉडर्न डिप्लोमेसी" पत्रिका में एक विश्लेषण में लिखा: "गाजा युद्ध और इसमें हज़ारों फिलिस्तीनियों के मौत और सऊदी अरब द्वारा इस्लामी दुनिया के लीडर होने के दावे के बावजूद सऊदी अरब और इजरायल के बीच संबंध सामान्य होने की संभावना प्रबल बनी हुई है।
सच्चाई यह है कि गाज़ा पर इजरायली हमले और हज़ारों फिलिस्तीनियों के जनसंहार के बाद सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और इस देश के दूसरे अधिकारियों द्वारा युद्धविराम की अपील फिलिस्तीनियों की जान बचाने के लिए नहीं थी, बल्कि इसका मकसद खटाई में पड़ चुके सामान्यीकरण समझौते को बचाना था।
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लेखक के अनुसार, सऊदी अरब को इजरायल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के अपने प्रयासों जो लाभ मिलने वाले हैं वह बहुत अधिक हैं, और अब गाजा में युद्ध के कारण इनमें से कई लाभ खटाई में पड़ गए हैं।
इससे पता चलता है कि फिलिस्तीन और फिलिस्तीनी मुद्दे के लिए शीर्ष सऊदी अधिकारियों का समर्थन, इस्लामी दुनिया और अरब और इस्लामी पहचान के कारण नहीं है, बल्कि राजनीतिक और रणनीतिक विचारों पर आधारित है, और हाल के समय में इसके साथ आर्थिक विचार भी जुड़ गए हैं।
इसलिए, आज जो हम गाजा में युद्धविराम की अपील या युद्ध की निंदा सऊदी अधिकारियों की तरफ़ से देख रहे हैं, हालांकि उसका एक कारण तो सऊदी अरब की इस्लामिक पहचान और वहां मुसलमानों की दो पवित्र स्थलों का होना है, जिसके कारण सऊदी अरब विवश है कि वह मुसलमानों के मुद्दे पर बोले और फिलिस्तीनियों का समर्थन करे, क्योंकि अगर वह ऐसा नहीं करता है तो उसको इस्लामी दुनिया और मुसलमानों की आलोचना का सामना करना पड़ेगा, लेकिन इन अपीलों के इस्लामी चेहरे के पीछे सऊदी अरब के बहुत से आर्थिक हित छिपे हुए हैं।
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लेखक के अनुसार, कम से कम मोहम्मद बिन सलमान के व्यावहारिक दृष्टिकोण से, जो सऊदी अर्थव्यवस्था के पोर्टफोलियो में विविधता लाने की कोशिश कर रहे हैं, क्षेत्र की स्थिरता उनकी योजनाओं को जारी रखने और उन्हें साकार करने के लिए जरूरी है।
वास्तव में, बिन सलमान फ़िलिस्तीन के असहाय लोगों की हत्या और नरसंहार को रोकने के बारे में सोचने से ज़्यादा अपने आर्थिक हितों और लक्ष्यों को सुरक्षित करने के बारे में सोच रहे हैं। वह आर्थिक हित जो समस्याओं के पहाड़ का सामना कर रहे है और हम जो देख रहे हैं और जिसके बारे में बात कर रहे हैं और जो समय समय पर दिखाया जाता है वह समुद्र में छिपे बर्फ के पहाड़ की चोटी मात्र है।
इस लेखक के अनुसार, सऊदी अरब, इजरायल और अन्य अरब शासक अच्छी तरह से जानते हैं कि केवल क्षेत्रीय शांति और स्थिरता स्थापित करके ही वे मध्य पूर्व में अपने लक्ष्यों और आर्थिक हितों को प्राप्त कर सकते हैं, और गाजा पट्टी में चल रहा युद्ध इन सबके लिए खतरा है। इसलिए गाज़ा में संघर्ष विराम इजरायल और सऊदी अरब के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण से शांति और सुरक्षा स्थापित करने के महत्व को प्रकट करता है।
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यह पाकिस्तानी विश्लेषक इस बात पर जोर देते हैं: "इन शासको के हित और लक्ष्य इन लक्ष्यों और मांगों से निपटने के लिए अरब और इस्लामी देशों के बीच सहयोग और समन्वय के महत्व को पहले से कहीं अधिक प्रकट करते हैं।
साथ ही, यह मध्य पूर्व के भू-राजनीतिक क्षेत्र में चल रहे इस संघर्ष को समाप्त करने के लिए दो फिलिस्तीनी-इजरायल राज्यों के समाधान तक पहुंचने के महत्व पर जोर देता है।
अल-अक्सा तूफान ऑपरेशन शुरू होने से तीन हफ्ते पहले, मोहम्मद बिन सलमान ने फॉक्स न्यूज के साथ एक साक्षात्कार में कहा था कि सऊदी अरब और इजरायल हर दिन संबंधों के सामान्यीकरण के "करीब" हो रहे हैं।
तेल अवीव के साथ अपने संबंधों को सामान्य बनाने के बदले में रियाद ने अपने लिए अमेरिकी सुरक्षा गारंटी और अपने परमाणु कार्यक्रमों के विकास के लिए समर्थन की मांग की थी। दो शर्तें, जो दुनिया के कई राजनीतिक हलकों के अनुसार, शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए बातचीत में बाधा बनी रहेंगी।
इजरायल और सऊदी अरब की सामान्यीकरण प्रक्रिया की बातचीत प्रक्रिया में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु फिलिस्तीन और फिलिस्तीनियों का मुद्दा था, जो सऊदी अधिकारियों के दावों के विपरीत, सऊदी अधिकारियों की शर्तों में महत्वपूर्ण नहीं था और उन्होंने सामान्यीकर की शर्तों में फिलिस्तीन के मुद्दे को नहीं रखा था।