एक दशक के अधिक समय से पश्चिमी देशों द्वारा आतंकवाद समर्थित थोपे गए युद्ध की त्रासदी झेल रहे सीरिया पर भूकंप ने और चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।
तुर्की और सीरिया में आए भूकंप के ताकतवर झटकों ने दोनों देशों में बड़े पैमाने पर तबाही मचाई है। बड़ी बड़ी इमारतें ध्वस्त हो गई हैं और वहां बसने वाले लोग मलबे की चपेट में आ चुके हैं।
अब तक प्राप्त समाचार के अनुसार इन भूकंप से अब तक 30000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो अब भी मलबे में दबे हुए हैं। और जैसे जैसे समय बीत रहा है वैसे वैसे उनके जीवित निकलने की उम्मीदें भी दम तोड़ती जा रही है।
भूकंप के आने के बाद बहुत से देशों ने आर्थिक रूप से सम्पन्न तुर्की को सहायता भेजी और बहुत से देशों से रेस्क्यू टीमें भेजी गई जिसके कारण बहुत से लोगों को जीवित निकालना संभव हो सका है। लेकिन जहां सबकुछ होने के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तुर्की को समर्थन और सहायता मिल रही है वहीं युद्ध की मार झेल रहा सीरिया अंतर्राष्ट्रीय मदद पाने में भी भेदभाव का शिकार हो रहा है।
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अमरीका समर्थित आकंवाद पर विजय पाने के बाद से सीरिया पर अमरीका और कई यूरोपीय देशों ने कड़े प्रतिबंध लगा रखे हैं, इन्ही प्रतिबंधों के कारण वह देश जो सीरिया को सहायता पहुँचाना चाह रहे हैं सहायता नहीं पहुँचा पा रहे हैं।
इधर सीरिया में ज़मीनी हालात ऐसे हैं कि लाखों लोग बर्फीली ठंड में बाहर टेंट लगाकर रहने को मजबूर हैं. जानकार मानते हैं कि इस वजह से पूरे इलाक़े में मानवीय त्रासदी और गहरा सकती है. हालात को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र पर यहां तक किसी भी तरह से मदद पहुंचाने का दबाव बढ़ रहा है।
बताते चलें की वर्तमान में केवल कुछ गिने चुने देश ही हैं जो सीरिया को मदद पहुँचा रहे हैं। भूकंप के बाद सीरिया की हालत यह है कि वहां पर लोगों को मलबे से निकालने के लिए संसाधन न होने के कारण बचावकर्मी और आम लोग हथौड़ों और लोहे की सरियों से मलबे को हटाते हुए दिखाई दिए हैं।
ईरान और इराक़ यह वह देश थे जिन्होंने सबसे पहले तुर्की को सहायता पहुँचाई है। हालांकि बाद में भारत और रूस ने भी कुछ सहायता पहुँचाई है। लेकिन त्रासदी की भयानकता को देखते हुए सीरिया और तुरंत और अधिक सहायता की आवश्यता है और इन सहायताओं को वहां तक पहुँचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध हटाए जाने की ज़रूरत है। अब देखना यह है कि क्या मानवाधिकार का राग अलापने वाला पश्चिम त्रासदी के इस मौके पर राजनीति से ऊपर उठकर मावनता का साथ देते हुए प्रतिबंध हटाएगा या फिर सहायता की मांग करते हुए सीरिया की यह आवाज़ नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बन कर रह जाएगी?