हालांकि भूकंप से बेहद प्रभावित इलाक़ों में कुछ लोग ये भी कहते हुए सुने जा रहे हैं कि यहां राहत और बचाव कार्य धीरे चल रहा है। कुछ लोगों को अपने करीबियों की तलाश में अपने हाथों से ही मलबा हटाना पड़ रहा है।
रेस्क्यू ऑपरेशन में कैसे होती है लोगों की तलाश?
भूकंप वाली जगह पर पहुंचने के बाद रेस्क्यू टीमें सबसे पहले इमारतों में होने वाले नुक़सान का अनुमान लगाती है। सबसे पहले इसका अंदाज़ा लगाया जाता है कि कितनी इमारतें गिरी हैं, कितना मलब जमा है और इसमें कितने लोगों के दबे होने की आशंका है।
इसकी शुरुआत खाली जगहों की तलाश के साथ की जाती है। खाली जगह यानी कंक्रीट के बीम या पिलर्स, या फिर सीढियों के नीचे की खाली जगह। यहां लोगों के छिपने की संभावना ज़्यादा होती है।
इस दौरान जब रेस्क्यू टीम के लोग सर्वाइवर्स तक पहुंचने की कोशिश करते हैं, तब सपोर्ट वर्कर्स इमारतों, मलबों में हलचल पर नज़र रखते हैं और बड़े गौर से यहां से आनेवाली आवाज़ों पर कान लगाए रहते हैं।
जो इमारत पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है, वहां लोगों की तलाश सबसे बाद में की जाती है, क्योंकि यहां किसी के जिंदा दबे होने की संभावना ना के बराबर होती है।
रेस्क्यू टीम का पूरा काम एक एजेंसी के ज़रिए को-ऑर्डिनेट किया जाता है। इसमें आमतौर पर संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ प्रभावित देश शामिल होते हैं। रेस्क्यू टीम को मिलकर या इससे बड़ी यूनिट के रूप में काम करने की स्पेशल ट्रेनिंग दी गई होती है। कई जगहों पर इनकी मदद के लिए स्थानीय लोग भी आगे आते हैं।
सोर्स बीबीसी