इस वर्ष हम देश की स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। इस अवसर पर हम उन लोगों को स्मरण कर रहे हैं जिनके त्याग-बलिदान के फ़लस्वरूप हम आज आजादी की आबोहवा में साँस ले रहे हैं। हमारी स्वतंत्रता में अनगिनत नामी-अनाम लोगों का योगदान रहा है। जब स्वतंत्रता आंदोलन के पुरोधाओं की बात आती है तो एक नाम सबसे ऊपर चमकता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि वह नाम है, गाँधी! गाँधी को महात्मा और देश के राष्ट्रपिता के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
यह अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है कि 153 साल के बाद भी गांधी जी वैश्विक पटल पर न केवल जीवित हैं वरन महत्वपूर्ण भी हैं। आज विश्व इस बात को स्वीकार करता है कि महात्मा गाँधी के दिखाए राह पर चले बिना हमारा गुजारा नहीं है। उनका वैचारिक, रचनात्मक एवं मौलिक चिंतन न केवल भारत के लिए परिहार्य है बल्कि समस्त दुनिया के लिए एक सकारात्मक संदेश है।
हम 2 अक्टूबर को प्रतिवर्ष उनका जन्मदिन मनाते हैं। इस अवसर पर यह देखना रोचक होगा कि गाँधीजी के जीवन, उनके विचारों ने सिने-जगत को कैसी प्रभावित किया है? वे सिनेमा केलिए एक बहुत उर्वरक प्रेरणा रहे हैं।
गांधीजी ने जीवनकाल पर लेखन
गांधीजी ने अपने जीवनकाल में राजनैतिक तथा सामाजिक कर्म करते हुए जम कर लेखन किया। इसी तरह उन पर भी विपुल लिखित सामग्री उपलब्ध है। उनके जीते-जी उन पर लिखा जाता रहा, उनके बाद उन पर तथा उनके विभिन्न कार्यों पर लिखा जाता रहा है और भविष्य में भी यह सिलसिला जारी रहेगा। विभिन्न भाषाओं में उन पर किताबें लिखी गई हैं। उन पर नाटक लिखे और खेले गए हैं। और जब सिनेमा की बात आती है तो हमें सिनेमा में गाँधी विभिन्न रूप में दिखाई पड़ते हैं।
मगर जितना सिनेमा उनको लेकर बना है, वह काफ़ी नहीं है। गाँधी का सिनेमा में सम्यक मूल्यांकन होना अभी शेष है। देसी-विदेशी सिने-निर्देशकों ने मोहनदास करमचंद गाँधी को लेकार फ़िल्में बनाई हैं, उन पर कई डॉक्यूमेंट्री बनी हैं।
1954 में सत्येन बोस ने बाँग्ला भाषा में एक फ़िल्म बनाई थी, ‘परिवर्तन’। उन्होंने इसी फ़िल्म को आधार रख कर, गाँधीजी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए हिन्दी में फ़िल्म बनाई, ‘जागृति’। एक समय इस फ़िल्म को भारत सरकार द्वारा स्कूलों में दिखाया जाता था। फ़िल्म में गांधी के राजनैतिक जीवन तथा स्वतंत्रता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाया गया है। फ़िल्म के गीत कवि प्रदीप ने लिए थे जिन्हें आज भी हम स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, गाँधी जयंति एवं अन्य राष्ट्रीय अवसरों पर बजाते और सुनते हैं।
हेमंत कुमार के संगीत से सजे ये गीत गाँधी की भाँति अमर हो गए हैं। भला कौन भूल सकता है, आशा भोंसले का गाया, ‘दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढ़ाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’, अभि भट्टाचार्य का गाया, ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झाँकी’ तथा मोहम्मद रफ़ी के स्वर से सजा गीत, ‘हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के’।
ये आमजन के हृदय को छूने वाले गीत गाँधीजी से जुड़े हैं। बच्चों के लिए बनी फ़िल्म ‘जागृति’ बड़ों को भी मूल्यवान संदेश देती है।
सोर्स अमर उजाला