जाने कफ़ सिरप बच्चों के लिए लाभदायक या हानिकारक?
मुंबई में एक मामला सामने आया है, जिसमें दावा किया गया है कि ढाई साल के एक बच्चे को कफ़ सिरप दिए जाने के बाद लगभग 17 मिनट तक के लिए बच्चे की नाड़ी रुक गई।
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मुंबई के केईएम अस्पताल में पीडियाट्रिशियन डॉ मुकेश अग्रवाल बताते हैं, ''जो मामला सामने आया है, उसके बारे में वो पुख़्ता तौर पर नहीं कह सकते हैं क्योंकि पता नहीं बच्चे को कितनी दवा दी गई हो लेकिन उन्हें ये मामला चोकिंग का लगता है क्योंकि कहा जाता है न कि बच्चे को सोते वक्त दूध नहीं पिलाया जाना चाहिए''
15 दिसंबर को बच्चे की माँ ने उसे दवा दी, वो माँ के साथ बैठा हुआ था और फिर बोला मुझे गोद में लो इसके बाद वो एकदम ढीला पड़ गया. इसके बाद मेरी बहू ने मुझे आवाज़ दी मैं दूसरे कमरे में थी"
डॉ तिलोत्तमा मंगेशीकर एक ऐनेस्थियोलॉजिस्ट हैं ऐसे डॉक्टर का काम किसी मरीज़ को ऑपरेशन से पहले बेहोश करने के लिए एनेस्थीसिया देना होता है।
वे आगे बताती हैं, ''वो बच्चा बहुत गोरा है और मैंने देखा वो पीला होने लगा और फिर वो नीला पड़ने लगा हम सीधा अस्पताल भागे और रास्ते में मैंने बच्चे को सीपीआर देना शुरू किया सात मिनट में उसका रंग गुलाबी होने लगा और तकरीबन 17 मिनट बाद उसे होश आया, उसने आँख खोली और साँस लेने लगा '
उन्होंने बताया, ''हमने जाँच पड़ताल की और पता चला कि बच्चे के साथ पहले ऐसा नहीं हुआ था फिर इस कफ़ सिरप के बारे में जाना और पाया कि इसमें क्लोरफेनेरमाइन और डेक्सट्रोमेथोर्फेन हैं अमेरिका में चार साल से कम उम्र के बच्चों में इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध है''
डॉ. तिलोत्तमा मंगेशीकर बताती हैं कि न निर्माताओं ने ऐसी दवाओं पर कोई लेबल लगाया है। वहीं पीडियाट्रिशियन (बच्चों के डॉक्टर) भी इन दवाओं को प्रिस्क्राइब कर रहे हैं।
उनके अनुसार- ये ग़नीमत है कि मैं घर पर थी और मैं आपने पोते की मदद कर पाई मैं आगे आकर ये सब इसलिए कह रही हूँ ताकि माता-पिता सचेत हो जाएँ और पीडियाट्रिशियन भी सावधानी बरतें।
मुंबई के केईएम अस्पताल में पीडियाट्रिशियन डॉ मुकेश अग्रवाल कहते हैं कि पाँच साल तक के बच्चे में माँ से मिली प्रतिरोधक क्षमता ख़त्म होने लगती है और उसमें अपनी क्षमता विकसित नहीं हुई होती है और इस उम्र में वायरल और एलर्जी होना सामान्य है।
उनके अनुसार इस उम्र के हर बच्चे को एक साल में पांच से छह रेस्पिरेटरी अटैक होते हैं उसमें से ज़्यादातर दो या तीन दिन में ठीक हो जाते है. लेकिन अगर ये संक्रमण कान या अन्य जगह फैल जाता है तो बच्चे को एंटीबॉयोटिक देने की ज़रूरत पड़ती है वरना ये अपने आप ठीक हो जाता है इसलिए दवा या कफ़ सिरप की तो कतई ज़रूरत नहीं होती।
क्या कफ़ सिरप ज़रूरी है?
डॉक्टरों का कहना है कि खांसी बच्चे के लिए ठीक होती है क्योंकि वो शरीर में जमा हुए बलगम को निकालने में मदद करती है।
डॉक्टरों का कहना है कि खांसी एक तरह से कीटाणु को शरीर से बाहर निकालने में मदद करती है, तो दवा देकर उसे दबाने की क्या ज़रूरत है?
बच्चों में तीन दिन के बाद स्थिति बेहतर होने लगती है उसके बाद एक-दो दिन में खांसी भी अपने आप कम हो जाती है. लेकिन स्थिति बिगड़ने पर डॉक्टर से जाँच करवानी चाहिए ताकि अगर कोई एलर्जी हो तो दवा दी जा सके।
शरीर पर क्या असर छोड़ती है कफ़ सिरप?
डॉ मुकेश अग्रवाल कहते हैं कि ज़्यादातर कफ़ सिरप से बच्चों को नींद आने लगती हैं।
इस स्थिति में बच्चे ने जो खाया है, वो साँस की नली में फँस सकता है अब जब वो खाँस भी नहीं रहा तो वो निकलेगा भी नहीं. ऐसे में बच्चे को चोकिंग हो सकती है।
इन दवाओं को लेने से नींद आने लगती है, ब्लड प्रेशर कम हो जाता है, बच्चा सर्दी-जुकाम में वैसे ही साँस लेने में परेशानी झेल रहा होता है। वहीं दवा लेने से साँस लेने की प्रक्रिया पर असर होता है और ऐसे में बच्चे के शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है।
डॉक्टर ये भी कहते हैं कि ऐसी दवाओं की ओवरडोज़ होने की वजह से ज़्यादा दिक़्क़तें आती हैं।
नेशनल सेंटर पर बायोटेक्नोलॉजी इनफॉर्मेशन (एनसीबीआई) पर छपी जानकारी के मुताबिक़ औसतन एक बच्चा दिन में 11 बार खांसता है लेकिन सर्दियों में उसकी तीव्रता बढ़ जाती है।
खांसी और जुकाम की दवा की दुकान पर मिल जाती है लेकिन दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए खांसी और जुकाम के लिए दवा नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि इससे उन्हें जीवन का ख़तरा हो सकता है।
साथ ही खांसी और जुकाम की दवाओं के निर्माता स्वेच्छा से लेबल लगाते हैं कि चार साल से कम उम्र के बच्चों के लिए इसका इस्तेमाल न करें।
सोर्स बीबीसी