थायरॉइड गर्दन के पास तितली के आकार की एक ग्रंथि (ग्लैंड) होती है। भारत में हर 10 में से एक शख़्स थायरॉइड की समस्या से जूझ रहा है। 2021 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में क़रीब 4।2 करोड़ थायरॉइड के मरीज़ हैं।
आंध्र प्रदेश के गुंटूर के मशहूर एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ बेल्लम भरणी इस बारे बताते है कि 'यह ग्रंथि दिल, दिमाग़ और शरीर के दूसरे अंगों को सही तरीक़े से चलाने वाले हॉर्मोन पैदा करता है। यह शरीर को ऊर्जा का उपयोग करने में सक्षम बनाता है और उसे गर्म रखता है।'
वो कहते हैं, 'एक तरह से यह ग्रंथि शरीर की बैटरी की तरह काम करती है। यदि यह ग्रंथि कम या ज़्यादा हार्मोन छोड़ती है, तो थायरॉइड के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।'
थायरॉइड ग्रंथि जब शरीर के लिए पर्याप्त हार्मोन पैदा नहीं कर पाती, तो इसे 'हाइपो-थायरॉइडिज़्म' कहा जाता है। यह उस खिलौने जैसा मामला है, जिसकी बैटरी ख़त्म हो गई हो। और तब शरीर पहले जैसा सक्रिय नहीं रहता और इसके रोगी जल्दी थक जाते हैं।
वहीं यदि थायरॉइड ग्रंथि ज़्यादा हार्मोन पैदा करने लगे, तो इस समस्या को 'हाइपर-थायरॉइडिज़्म' कहते हैं। ऐसे में मरीज़ों की दश उस इंसान जैसी होती है, जिसने बहुत ज़्यादा कैफ़ीन ले लिया हो।
तीसरी स्थिति थायरॉइड ग्रंथि की सूजन है, जिसे गॉयटर (गलगंड या घेघा) कहते हैं। दवाओं से ठीक न होने पर इसे सर्जरी करके ठीक करने की ज़रूरत पड़ सकती है।
थायरॉइड के क्या हैं लक्षण?
हाइपो-थॉयरायड के लक्षण: वज़न बढ़ना, चेहरे, पैरों में सूजन, कमज़ोरी, आलस होना, भूख न लगना, बहुत नींद आना, बहुत ठंड लगना, महिलाओं के मामले में माहवारी चक्र का बदल जाना, बालों का झड़ना, गर्भधारण में समस्या आदि।
हाइपर-थायरॉइड के लक्षण: डॉ बेल्लम भरणी के अनुसार, चूंकि इसमें ज़रूरत से ज़्यादा हार्मोन निकलता है, इसलिए भूख लगने और पर्याप्त भोजन करने के बाद भी वज़न घटने लगता है और दस्त होती है। साथ ही बेचैनी होती है, हाथ और पैर कांपते हैं और गर्मी ज़्यादा लगती है। मूड स्विंग करने और नींद न आने की समस्या भी होती है। धड़कन में उतार-चढ़ाव होता है और नज़र कमज़ोर होती है।
थायरॉइड की समस्या पहचानने के कोई ख़ास लक्षण नहीं हैं। स्पेनिश सोसाइटी ऑफ़ एंडोक्राइनोलॉजी के डॉ फैंसिस्को जेवियर सैंटामारिया ने बताया कि थायरॉइड वाक़ई एक बीमारी है
उदाहरण के लिए, कई बार हाइपो-थायरॉइडिज़्म को ग़लती से गंभीर अवसाद की समस्या मान लिया जाता है। यह समस्या बहुत लोगों को होती है। कई लोग इसके इलाज में देर कर देते हैं।
थायरॉइड के 10 फ़ीसदी रोगी हाइपो-थायरॉइडिज़्म से पीड़ित हैं, लेकिन उनमें से आधे को अपनी समस्या मालूम भी नहीं होती।
डॉ सैंटामारिया कहते हैं कि पुरुषों और महिलाओं में इसके लक्षण हालांकि समान होते हैं, लेकिन महिलाओं में इसका पता जल्दी चल जाता है। लगभग 80 फ़ीसदी महिलाएं थायरॉइड से पीड़ित होती हैं।
वो कहते हैं, 'आम तौर पर 80 से 90 फ़ीसदी थायरॉइड मरीज़ इलाज के बाद ठीक हो जाएंगे। लेकिन कई पूरी तरह ठीक नहीं होंगे। कुछ मामले तो बेहद जटिल होंगे। हाइपो-थायरायडिज़्म के ज्यादातर मामलों में ऑटो-इम्यून सिस्टम जैसी कोई चीज़ बनी रहती है। इलाज के बाद भी ऑटो-इम्यूनिटी दूसरे अंगों पर असर डालती है।'