फ़ैसला सुनाते हुए जज वर्मा ने टिप्पणी करते हुए कहा कि वह असहमति जताने वालों और दंगाइयों के बीच की रेखा को धुंधला नहीं कर सकते।
अदालत ने जामिया के नज़दीक हुई हिंसा के मामले में फ़ैसला सुनाते हुए कहाः इस मामले में दायर मुख्य चार्जशीट और तीन पूरक चार्जशीट को देखने के बाद जो तथ्य हमारे सामने लाए गए हैं, उनसे अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि पुलिस असली अपराधियों को पकड़ने में नाकाम रही है, लेकिन इन लोगों को बलि के बकरे के तौर पर गिरफ्तार करने में कामयाब रही।
अदालत ने सभी 11 लोगों को आरोप मुक्त करते हुए पुलिस के काम करने के तरीक़े पर कड़ी टिप्पणी की है।
फ़ैसला सुनाते हुए जज अरुण वर्मा ने कहा पुलिस हिंसा के असली साज़िशकर्ताओं को पकड़ने में नाकाम रही है। इसके बजाय उसने इमाम, तनहा और सफ़ूरा ज़रगर को बलि का बकरा बना दिया। इस तरह की पुलिस कार्यवाही ऐसे नागरिकों की आज़ादी को चोट पहुंचाती है, जो अपने मौलिक अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हैं।
हालांकि अदालत के इस आदेश के बावजूद, शरजील इमाम जेल में ही रहेंगे, क्योंकि उनके ख़िलाफ़ साल 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की साज़िश में शामिल होने का आरोप है और उनके ख़िलाफ़ इस मामले में मुक़दमा चल रहा है।
दर असल, 2019 में विवादित नागरिक संशोधन क़ानून सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुए एक विरोध प्रदर्शन में तथाकथित भड़काऊ भाषण के बाद उनके ख़िलाफ़ मुक़दमों की झड़ी लग गई थी।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ शरजील के ख़िलाफ़ अलीगढ़ पुलिस ने देशद्रोह और दंगा भड़काने की धाराओं के तहत मुक़दमा दर्ज किया था। असम और दिल्ली में भी इसी तरह की एफ़आईआर दर्ज की गई थीं।
सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ देश भर में धरना प्रदर्शनों के दौरान शरजील का एक वीडिया वायरल हुआ था। इस वीडियो में शरजील कहते हैं कि अगर हमें असम के लोगों की मदद करनी है, तो उसे भारत से कट करना होगा।