शांति बनाए रखने के लिए पुलिस ने मुस्लिम युवाओं को पीटा
गुजरात हाईकोर्ट में पुलिस ने अपने नामे में सार्वजनिक रूप से मुस्लिम युवकों की पिटाई को सही ठहराया है।
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![शांति बनाए रखने के लिए पुलिस ने मुस्लिम युवाओं को पीटा](https://cdn.gtn24.com/files/india/posts/2023-02/thumbs/police.webp)
अपने हलफ़नामे में खेड़ा ज़िले के पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार गढ़िया ने अक्तूबर 2022 में उंधेला गांव में मुस्लिम युवकों को सार्वजनिक रूप से पीटने वाले पुलिस अधिकारियों के कृत्य को सही ठहराया है।
इंडियन एक्सप्रेस ने एसपी के हलफनामे के हवाले से लिखा है कि यह केवल शांति और सद्भाव बनाए रखने की दृष्टि से था जिसके तहत संदिग्धों को पकड़ा गया।
ज्ञात रहे कि पिछले वर्ष 3 अक्तूबर को खेड़ा ज़िले के एक गांव में एक मस्जिद के पास गरबा कार्यक्रम का विरोध किए जाने के बाद हिंदु और मुस्लिम समुदाय के बीच विवाद हो गया था। घटना से संबंधित एक वीडियो में कुछ पुलिसकर्मी कुछ मुस्लिम युवकों को पोल से बांधकर उन्हें लाठियों से पीटते नज़र आए थे।
सोशल मीडिया में वायरल वीडियो में सादे कपड़ों में पिटाई करते नजर आ रहे लोगों की पहचान खेड़ा ज़िले की स्थानीय क्राइम ब्रांच इकाई के पुलिसकर्मियों के रूप में की गई।
एसपी ने पुलिस कार्रवाई का बचाव किया है, लेकिन कपड़वंज संभाग के पुलिस उपाधीक्षक द्वारा एक अंतरिम रिपोर्ट में फ़ैसला सुनाया गया था कि ज़िम्मेदार पुलिस अधिकारियों के रूप में आरोपी पुलिसकर्मियों को ज़रूरत थी कि वे अन्य साधनों का इस्तेमाल करके आरोपियों को नियंत्रित करते और उन्हें अन्य सुरक्षित स्थान पर ले जाते।
घटना के बाद अक्तूबर में पीड़ितों ने 15 पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ गुजरात हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इस केस पर गुजरात हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा है।
याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले का हवाला दिया है जिसमें शीर्ष अदालत ने क़ानूनी प्रावधान किए जाने तक गिरफ़्तार और हिरासत के दौरान पुलिस के लिए बुनियादी ‘दिशानिर्देशों’ का पालन करना निर्धारित किया था।
यह आरोप लगाते हुए कि पुलिस अधिकारियों ने इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया, याचिकाकर्ताओं ने पुलिसकर्मियों पर अदालत की अवमानना का मुकदमा चलाने के साथ मुआवजे की भी मांग की है।
पिटाई में शामिल होने के आरोपी पुलिसकर्मियों ने भी हलफ़नामे के दो सेट दायर किए हैं। एक सेट में पिटाई को उचित ठहराते हुए कहा गया है कि पीड़ितों की आपराधिक पृष्ठभूमि थी और इसलिए क़ानून और व्यवस्था की रक्षा करना आवश्यक था और दूसरे सेट में कहा गया है कि अदालत की अवमानना करने संबंधी याचिका सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि वे केवल अपने कर्तव्यों के दायरे में काम कर रहे थे।
मटर पुलिस स्टेशन में पुलिस उप निरीक्षक हेतलबेन राबरी और आरोपियों में से एक ने कथित तौर पर अपने हलफ़नामे में ‘बिना शर्त माफी’ मांगी है, जिसमें उन्होंने कहा है कि ‘भले ही आरोप, सही पाए जाते हैं, लेकिन उनका सहारा सिर्फ याचिकाकर्ताओं से कुशल तरीक़े से निपटने और क़ानून व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रित करने और किसी भी तरह के सांप्रदायिक दंगों को रोकने के लिए लिया गया था।
ज्ञात रहे कि पुलिस की हिंसा के तुरंत बाद गुजरात के गृह मंत्री हर्ष सांघवी ने इसे ‘अच्छा कार्य’ बताते हुए पुलिसकर्मियों की प्रशंसा की थी।
उंधेला के मुस्लिम निवासियों ने इस कथित क्रूरता का विरोध करने के लिए 2022 के विधानसभा चुनावों का बहिष्कार किया था, हालांकि, उनका विरोध प्रशासन और राजनीतिक दलों द्वारा नजरअंदाज़ कर दिया गया था।