क्यों बढ़ रहा है सिंगल चाइल्ड का चलन?!
आपके साथ ये बहुत कम बार हुआ होगा कि आपने ये सुना हो कि मेरा सिर्फ़ एक ही बच्चा है या फिर मैं ‘सिंगल चाइल्ड’ हूं। लेकिन अगर आप अमेरिका या यूरोप के किसी देश में रहते हैं तो ‘सिंगल चाइल्ड’ होने की बात सुनना आपके लिए बहुत मामूली सी बात होगी।
Table of Contents (Show / Hide)
![क्यों बढ़ रहा है सिंगल चाइल्ड का चलन?!](https://cdn.gtn24.com/files/india/posts/2023-09/1693737592.webp)
अमेरिका और यूरोप के देशों में एक बच्चे का चलन बढ़ा है लेकिन क्या भारत में भी ऐसा है? क्या आपने कभी किसी से ये सवाल किया है कि ‘आप कितने भाई-बहन हैं?’
अगर हाँ तो आपके कानों को इस जवाब की आदत होगी कि हम दो भाई-बहन हैं या हम तीन या चार भाई-बहन हैं।
जी हां, दरअसल अमेरिका और यूरोप के कई मुल्कों में हाल के कुछ सालों में ‘वन चाइल्ड एंड डन’ यानी एक बच्चा और बस हो गया का ट्रेंड देखने को मिला है। इन देशों में ज़्यादातर शादीशुदा लोग एक से ज़्यादा बच्चा पैदा करने से बचना चाहते हैं।
कनाडा के ओंटारियो की रहने वाली 31 वर्षीय जेन डाल्टन चार बच्चे चाहती थीं और इसके लिए उन्होंने पूरी तैयारी भी कर ली थी।
लेकिन 2018 में उनकी बेटी के जन्म के ठीक दो महीने बाद जेन और उनके पति ने यह फ़ैसला किया कि उनके लिए एक बच्चा बस काफ़ी है यानी वो ‘वन चाइल्ड एंड डन’ की नीति अपनाएंगे। लेकिन डाल्टन अकेली नहीं हैं जिन्होंने ऐसा फ़ैसला किया है।
यूरोप में बच्चे वाले परिवार में 49% परिवार ऐसे हैं जिन्हें एक बच्चे हैं। वहीं कनाडा में, एक ही बच्चे वाले परिवार का समूह सबसे बड़ा है, जो 2001 में 37% से बढ़कर 2021 में 45% हो गया है। 2015 में 18% अमेरिकी महिलाओं के सिंगल चाइल्ड थे, जबकि 1976 में केवल 10 फ़ीसद महिलाओं को एक ही बच्चा था।
यह भी पढ़े : क्या लव मैरिज से पहले माता-पिता की अनुमति लेना ज़रूरी है?
सामाजिक दबाव
86 देशों पर आधारित एक स्टडी में यह भी देखा गया कि पहले बच्चे के एक साल तक माता-पिता बहुत ख़ुश थे। लेकिन दूसरे बच्चे के बाद उनकी ख़ुशियां आधी हो जाती हैं और तीसरे के बाद तो कोई ख़ुशी है ही नहीं।
हालाँकि, कई देशों में, अब सिर्फ़ एक ही बच्चा करने का चलन बन रहा है, फिर भी एक से अधिक बच्चे पैदा करने का समाजिक दबाव बना रहता है। ज़्यादातर पैरेंट्स का कहना है कि उन पर परिवार के सदस्यों से लेकर सड़क चलते अजनबी लोगों तक से एक से अधिक बच्चे पैदा करने के लिए दबाव डाला जाता है।
जो माता-पिता यह विकल्प चुनते हैं उन्हें लोगों को और यहां तक कि ख़ुद को भी यह विश्वास दिलाना पड़ता है कि उन्होंने ऐसा कर के सही काम किया है।
यह भी पढ़े : शादीशुदा युवाओं की ज़िंदगी में क्यों कमी हो रही है सेक्स की ?
भारत में क्या है स्थिति
राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा में रहने वाली और एक मीडिया कंपनी में काम करने वाली सबीहा ख़ान (नाम बदला हुआ) को सिर्फ़ एक ही बच्चा है और यह उनका सोच समझकर लिया गया फ़ैसला है।
“एक बच्चे का फ़ैसला वक़्त की ज़रूरत है।” उनके अनुसार, इसमें उनके पति और परिवार के सभी लोगों की रज़ामंदी शामिल है। “हमारा मानना है कि हमें अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा, उस पर ज़्य़ादा ध्यान और उसकी अच्छे से परवरिश करनी चाहिए।
उनका अपना परिवार तो उनके और उनके पति के इस फ़ैसले में साथ है लेकिन रिश्तेदारों की राय में एक से ज़्यादा बच्चा होना चाहिए. लेकिन सबीहा का मानना है कि अगर आप और आपके पति किसी फ़ैसले में साथ हैं तो बाक़ी दुनिया की ज़्यादा फ़िक्र नहीं करनी चाहिए।
हालांकि सबीहा मानती हैं कि कभी-कभी दूसरे बच्चे का ख़याल आता है लेकिन वो अपने फ़ैसले पर क़ायम हैं। वो ना केवल अपने फ़ैसले पर क़ायम हैं बल्कि एक बच्चे की वकालत भी करती हैं।
वो कहती हैं, “मुझे लगता है कि काम-काजी माता-पिता को इस बारे में सोचना चाहिए. हालांकि यह हर किसी का निजी मामला है लेकिन फिर भी यह हमारी पीढ़ी की ज़रूरत है. हमें अपने लाइफ़स्टाइल को मैनेज करने की ज़रूरत है और इसलिए हमें एक बच्चे को बढ़ावा देना चाहिए।