संयुक्त अरब अमीरात में शिक्षा और चिकित्सा सेवाओं से वंचित हजारों बच्चे
संयुक्त अरब अमीरात में और विशेष रूप से दुबई में हजारों बच्चे हैं, जो पहचानपत्र के अभाव में स्कूली शिक्षा और किसी भी चिकित्सा सेवाओं तक पहुंच से वंचित हैं।
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मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि संयुक्त अरब अमीरात में हजारों बच्चे शिक्षा और चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच से वंचित हैं।
शिनोवा के दो बच्चे हैं जिनकी उम्र 4 और 6 साल है। लेकिन बच्चों के जन्म के समय अस्पताल के खर्चों, जो लगभग 16000 डॉलर थे का भुगतान न कर सकने के कारण आधिकारिक रूप से यूएई के नागरिक नहीं है। क्योंकि अस्पताल ने बिल न भरने के कारण बच्चों का जन्म प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया।
संयुक्त अरब अमीरात के अस्पतालों में यह कोई नई या दुर्लभ घटना नहीं है। इसी वजह से यूएई और फारस की खाड़ी के दूसरे अरब देशों जैसे सऊदी अरब और बहरीन में बिना पहचान पत्र वाले बच्चों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है। पहचान पत्र न होने के कारण यह बच्चे शिक्षा और चिकित्सा जैसी हर उस सुविधा से महरूम हैं जो इस देश के नागरिकों को प्राप्त होती है।
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शिनोवा जो नाइजीरियाई मूल की महिला हैं और जो बहुत ही कम वेतन में पर सहायक की नौकरी कर रही हैं ने बतायाः "मेरे बच्चे अभी तक स्कूल नहीं गए हैं, उनके पास वीजा या पासपोर्ट नहीं है, यह एक बड़ी समस्या है। वे स्कूल जाना चाहते हैं, लेकिन वे नहीं जा सकते"।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि हजारों बच्चे, जिनमें से अधिकतर अफ्रीकी और एशियाई प्रवासी श्रमिकों के बच्चे हैं, यूएई के अस्पतालों द्वारा जन्म प्रमाण पत्र न दिए जाने के कारण बिना पहचान पत्र के हैं।
फिलीपीन के दो वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के अनुसार, फिलिपिनो अप्रवासियों में ऐसे हजारों बच्चे ऐसे हैं जो बिना पहचान पत्र के हैं।
यह स्थिति तब है कि जब संयुक्त अरब अमीरात धन और तेल की अकूत सम्पत्ती के कारण दुनिया भर में प्रति व्यक्ति दौलत के मामले में सबसे अमीर देशों में से एक है। और इस देश के नागरिक और अमीर प्रवासी स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा से लाभान्वित होते हैं, साथ ही साथ विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाएं प्राप्त करते हैं। लेकिन इस अमीरी के पीछे की काली तस्वीर यह हैकि इसी देश में हज़ारों बच्चे ऐसे भी हैं जो पहचान पत्र न होने के कारण सबसे बुनियादी सेवाओं, यहां तक कि टीकाकरण से भी वंचित हैं।
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पहचान पत्र न होने के कारण इन बच्चों के माता पति को हमेशा यह चिंता रहती हैं कि कहीं ऐसा न हो उनके बच्चे बाहर जाएं और किसी कारणवश उनका पुलिस से सामना हो जाए, जो उनको बड़ी समस्या में घेर सकता है। यही कारण है कि यह बच्चे अधिकतर अपने घरों और एरिये तक ही सीमित रहते हैं।
हालांकि कानून के अनुसार यूएई के अस्पतालों को जन्म प्रमाण पत्र देना अनिवार्य है, और ऐसा न करने पर उनकी शिकायत की जा सकती है। लेकिन अधिकतर मौक़ों पर उनकी शिकायत करना आसान नहीं होता है, क्योंकि शिकायत की सूरत में अस्पताल कहते हैं कि उन्होंने बिल नहीं भरा है, इस प्रकार शिकायतकर्ता पर बिन न चुकाने के कारण भारी जुर्माना लगाया जाता है, और उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जाती है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि अस्पतालों का यह रवय्या मानवाधिकार का उल्लंघन है, यह किसी की पहचान छीनने जैसा है।
यूएई में मानवाधिकार उल्लंघन की स्थिति यह है कि इस देश के कुछ अस्पताल वित्तीय कठिनाइयों और अस्पताल के खर्चों का भुगतान करने में असमर्थता के कारण प्रवासी महिलाओं को आपातकालीन और प्रसूति वार्ड में भर्ती करने से मना कर देते हैं।
कई मामलो में, माताओं को बच्चे के जन्म के बिल के भुगतान के लिए अस्पताल द्वारा अपना वीजा और पासपोर्ट गिरवी रखने के लिए मजबूर किया जाता है। कुछ मामलों में तो कुछ अस्पतालों ने कथित तौर पर माता-पिता को उनके परिवारों को बच्चे को न देने की धमकी दी और तब तक बच्चों को अपने पास रखा जबतक भुगतान नहीं कर दिया गया।
संयुक्त अरब अमीरात और फारस की खाड़ी के दूसरे अरब देशों में बिना पहचान पत्र के इन बच्चों की पीड़ा यहीं तक सीमित नहीं है, बल्कि इनमें से बहुत सो को अपने नियोक्ताओं की तरफ़ से मानसिक और शारीरिक शोषण झेलना पड़ता है।
उल्लेखनीय है कि ऐसे बच्चों की अवैधता केवल अप्रवासियों के बच्चों पर लागू होती है, और पर्यटकों को, विशेष रूप से वे जो पश्चिमी देशों से इस देश की यात्रा करते हैं, पर्यटकों को आकर्षित करने और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के उद्देश्य से इस कानून से मुक्त हैं।
अगर किसी प्रवासी के यहां बिना शादी के किसी बच्चे का जन्म होता है को अस्पताल पुलिस को सूचित कर देते हैं, जिसके बाद प्रवासी और बच्चे दोनो को गिरफ्तार कर लिया जाता है। कानून में कुछ सुधारों के बावजूद हाल के समय में इस प्रकार की स्थिति में प्रवासी महिला ओर उसके बच्चे को दो साल की जेल की सज़ा होती है।
सजा की समाप्ति के बाद, एक अंधकारमी भविष्य उनकी राह देख रहा होता है, क्योंकि इनमें से अधिकांश अप्रवासियों को इतना वेतन नहीं मिलता है कि वह अपने देश लौट सकें। दूसरी ओर, पहचान पत्र न होने के कारण बच्चे अपनी माँ के देश नहीं जा सकते हैं।
गिरफ्तारी के डर ने दुबई में दूध पिलाने वाली महिलाओं और जाली पहचान पत्र बनाने का काला बाज़ार पैदा कर दिया है, ऐसे बाज़ार के अधिकतर ग्रहक वह प्रवासी है जिनके यहां बच्चा बिना शादी के पैदा हुआ है या फिर वह अस्पताल का बिल भुगतान करने में अस्मर्थ थे।