इमाम हुसैन कौन हैं? दुनिया की मशहूर हस्तियों का नज़र में
इमाम हुसैन को दुनिया के अधिकतर मुसलमान व गैर मुसलमान सम्मान की नज़र से देखते हैं। महात्मा गांधी ने इमाम हुसैन को लेकर ऐसा बयान दिया जिसे सब को अचंभित कर दिया
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दस मुहर्रम हर मुसलमान के लिए एक खास दिन है। इस दिन को आशूरा का दिन भी कहते हैं। मुसलमानों का मानना है कि इस दिन इस दिन पैगम्बर के नवासे हुसैन अपने साथियों के साथ बहुत की अमानवीय तरीक़े से प्यासे शहीद कर दिए गए और उनके परिवार को बंदी बना लिया गया।
आशूरा का दिन मुसलमानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन है। इमाम हुसैन एक ऐसी हस्ती हैं जिनकों न केवल मुसलमान बल्कि बहुत से गैर मुसलमान भी बहुत अकीदत और सम्मान की नज़र से देखते हैं।
इस लेख में हम आशूरा के दिन और इमाम हुसैन के बारे में गैर मुसलमान विद्वानों की दृष्टिकोण को बयान करेंगे, ताकि हम यह जान सकें कि हुसैन कौन हैं जिनकी पूरी दुनिया दीवानी है।
चार्ल्स डेकेंज़
इंग्लैड के प्रसिद्ध लेखक चार्ल्स डेकेंज़ कहते हैं कि अगर इमाम हुसैन ने युद्ध दुनिया और सत्ता को पाने के लिए किया था तो मुझे यह नहीं समझ में आता है कि वह अपने साथ महिलाओं और बच्चों को क्यों लेकर गए थे? इससे पता चलता है कि उन्होंने केवल इस्लाम को बचाने के लिए यह बलिदान दिया है।
थामस कार्लायल
ब्रिटिश फ्रलासिफर और इतिहासकार थामस कार्लायल ने इमाम हुसैन के बारे में लिखाः हम कर्बला की ट्रैजेडी से सबसे बेहतरीन सबक जो ले सकते हैं वह यह है कि हुसैन और उसके साथियों का अल्लाह पर पक्का विश्वास था।
उन्होने अपने कार्य से सिद्ध कर दिया कि जब युद्ध सत्य और असत्य के बीच हो तो संख्या मायने नहीं रखती है। कम संख्या के बावजूद हुसैन की जीत मुझे अचंभित करती है।
एड्वर्ड ब्राउन
ब्रिटेन के इस्लाम के शोधकर्ता ब्राउन कहते हैं: क्या कोई ऐसा दिल हो सकता है तो जब कर्बला और हुसैन का ज़िक्र आए तो वह गमगीन और दुखी न हो?! गैर मुसलमान भी इस युद्ध में पवित्र आत्मा के वजूद का इनकार नहीं कर सकते हैं।
फ्रेडिक जेम्स
इमाम हुसैन और हर दूसरे शहीद का सबक यह है कि दुनिया में न्याय, दया और मोहब्बत का उसूल पाया जाता है जो बदलता नहीं है। और जब भी कोई इन गुणों के लिए प्रयत्न करता है तो वह हमेशा दुनिया में बाक़ी रहेगा।
एल एम बोएड
सदियों में इंसान ने हमेशा वीरता, दयालुता, परोपकार, दिलेरी को दोस्त रखा है। यही कारण है कि स्वतंत्रता औऱ न्याय कभी भी अत्याचर और जुल्म को स्वीकार नहीं करता है। यह हुसैन की वीरता और अज़मत थी और मुझे खुशी है कि उन लोगों के बीच खड़ा हूँ जो इस बलिदान को पूरे वजूद के साथ नमन करते हैं, अगरचे इसको 1300 साल हो चुके हैं।
वाशिंगटन एरोएंग
अमरीकी इतिहासकार वाशिंगटन का बयान हैः इमाम हुसैन यज़ीद के सामने सर झुकाकर अपनी जान बचा सकते थे, लेकिन इमाम हुसैन की लीडर की ज़िम्मेदारी और इस्लाम को बचाने की ललक ने उनको यज़ीद के इस्लामी खलीफ़ा स्वीकार करने से रोक दिया।
उन्होंने बहुत जल्द ही बनी उम्य्या के चंगुल से इस्लाम को छुड़ाने के लिए हर मुसीबत और अत्याचार को बर्दाश्त करने क लिए तैयार कर लिया और तपते सूरज में जलती ज़मीन और हिजाज़ की जलती रेत पर हुसैन की आत्मा हमेशा के लिए अमर हो गई।
थॉमस मसारिक
अगरचे हमारे पादरी ईसा मसीह की मुसीबतों को बयान करके लोगों के दिलों को प्रभावित करते हैं, लेकिन जो जोश और वलवला इमाम हुसैन के मानने वालों में पाया जाता है वह ईसा के मानने वालों में नहीं मिलेगा।
और शायद इसका कारण यह है कि ईसा महीस की मुसीबतें इमाम हुसैन की मुसीबतों के मुकाबले में पहाड़ के मुकाबले में एक जर्रा है।
मोरिस डोकबरी
इमाम हुसैन की अज़ादारी की मजलिसो में कहा जाता है कि हुसैन ने लोगों के सम्मान और इस्लाम को बचान के लिए अपनी जान, मान और औलाद को कुरबान कर दया और यज़ीद को स्वीकार नहीं किया। तो आएये हम भी हुसैन के रास्ते पर चलें और अत्याचारियों के चंगुल से खुद को नजात दें और इज्जत की मौत को जिल्लत की ज़िंदगी पर वारीयता दें।
महात्मा गांधी की नज़र मे इमाम हुसैन
महात्मा गांधी ने कहाः मैंने इमाम हुसैन – उस अज़ीम शहीद- के जीवन को गंभीरता से पढ़ा है, और करबला का अध्ययन किया है, और मुझे पता चला है कि अगर भारत को एक स्वतंत्र देश बनना है तो उसे इमाम हुसैन के बताए हुए रास्ते पर चलना होगा।
मोहम्मद अली जेनाह
बलिदान और वीरता के मामले में इमाम हुसैन से बेहतर कोई नमूना दुनिया में पैदा नहीं हो सकता है। मेरा विश्वास है कि सभी मुसलमनों को इस शहीद जिसने खुद को इराक़ की ज़मीन पर कुरबान कर दिया की पैरवी करनी चाहिए।
लियाकत अली खान
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने कहाः दुनिया के मुसलमानों के लिए मोहर्रम का बहुत अर्थ है। इस दिन इस्लामी दुनिया का सबसे गमगीन घटना घटी है।
इमान हुसैन की शहादत दुख होने के साथ ही इस्लाम की आत्मा की अंतिम जीत है, क्योंकि करबला ईश्वरीय इरादे के सामने सर झुकाने के नाम है। करबला हमें यह सबक देती है कि चाहे कितनी मुश्किले और खतरे हों हमें उनकी परवाह नहीं करनी है और न्याय एवं हक़ के रास्ते से नहीं हटना है।
जार्ज जुरदाक़
ईसाई विद्वान कहते हैं, जब यज़ीद लोगों को हुसैन की हत्या और उनका खून बहाने के लिए प्रेरित कर रहा था तो वह उससे पूछ रहे थेः कितना पैसा दोगे? लेकिन दूसरी तरफ़ हुसैन के साथ हुसैन से कह रहे थेः हम तुम्हारे साथ हैं, अगर सत्तर बार भी कत्ल किए गए तब भी तुम्हारे साथ लड़ते हुए कत्ल होंगे।
अब्बास महमूद अक्कड़ (मिस्र के लेखक)
हुसैन का आंदोलन सबसे अनोखे ऐतिहासिक आंदोलनों में से एक है जो धार्मिक आह्वान या राजनीतिक आंदोलनों के क्षेत्र में अब तक सामने आया है... इस आंदोलन के बाद, उमय्यद सरकार एक प्राकृतिक व्यक्ति के जीवन तक भी बाक़ी न रह सकी और हुसैन की शहादत के बाद साठ से भी कम सालों में विलुप्त हो गई।
अहमद महमूद सोभी (लेखक)
हालाँकि हुसैन बिन अली सैन्य या राजनीतिक स्तर पर असफल रहे; लेकिन इतिहास ने कभी ऐसी हार नहीं देखी जिसका अंत हुसैन के खून की तरह पराजितों के पक्ष में हुआ हो। हुसैन की शहादत के बाद जुबैर के बेटे और मुख्तार के इंकेलाब जैसे आंदोलन हुए जिसने उमय्या का तख्ता उलट दिया। और हुसैन की खून का बदला ऐसा नारा बन गया जिसने सिंहासन और सरकारों को हिला दिया।
एंटोनी बर्रा (ईसाई लेखक)
अगर हुसैन हममें से एक होते तो हम हर जगह उनके लिए एक झंडा फहराते और हर गांव में उनके लिए एक मिंबर स्थापित करते और लोगों को हुसैन के नाम से ईसाई धर्म में बुलाते।
गिब्बन (अंग्रेजी इतिहासकार)
हालाँकि कर्बला की घटना को कुछ समय बीत चुका है और हम हुसैन के देशवासी भी नहीं है, लेकिन हज़रत हुसैन ने जिन मुसीबतों को सहन किया वह कठोर से कठोर दिल रखने वाले को भी रुला देती है और उसके दिल को पिघला कर दिल में हुसैन के लिए एक गोशा पैदा कर देती हैं।
निकोलसन (प्रसिद्ध प्राच्यविद्)
उमय्यद विद्रोही और निरंकुश थे, उन्होंने इस्लामी कानूनों की अनदेखी की और मुसलमानों को अपमानित किया... और जब हम इतिहास की जांच करते हैं, तो यह कहता है: धर्म औपचारिक शासन के खिलाफ खड़ा हुआ और धार्मिक सरकार साम्राज्य के खिलाफ खड़ी हुई। इसलिए इतिहास निष्पक्षता से फैसला करता है कि हुसैन (अ.स.) का खून बनी उमय्यद की गर्दन पर है।
सर पर्सी साइक्स (अंग्रेजी प्राच्यविद)
दरअसल, इन चंद लोगों ने जो साहस और वीरता का परिचय दिया वह इतनी सदियों में इतना था कि जिसने भी सुना, उसकी प्रशंसा और प्रशंसा में अवाक रह गया। थर्मोपाइले के रक्षकों की तरह इस मुट्ठी भर बहादुर और जोशीले लोगों ने हमेशा के लिए अपने लिए एक लंबा और अविनाशी नाम छोड़ दिया।
तमलास टंडन (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष)
इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत जैसे इन महान बलिदानों ने मानव विचार के स्तर को ऊपर उठाया है, और इसकी स्मृति हमेशा बनी रहने और याद रखने योग्य है।