क्या यूक्रेन की जंग के कारण दुनिया में अकाल पड़ सकता है?
हर तरफ महंगाई संकट को लेकर दुनिया परेशान है। कही पेट्रोल के बढ़ते दामों से लोग परेशान है। तो कही गैस के दामों में बढ़होतरी से लेकिन अब रूस और यूक्रेन की जंग ने दुनिया को और भी चिंता में डाल गिया है।
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यूक्रेन के खिलाफ रूस के हमले से न सिर्फ दोनों तरफ के लोगों की मौत हुई है, बल्कि इसने दुनिया को भारी खाद्यान्न संकट की ओर धकेल दिया है। इससे दुनिया में और ज्यादा गरीबी बढ़ने की आशंका पैदा हो गई है।
लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर उन गरीब देशों पर होगा जिन्हें रूस अपना दोस्त नहीं मानता। इस लड़ाई से पहले तक रूस और यूक्रेन दुनिया के बाजारों में सबसे ज्यादा खाद्यान्न बेचने वाले देशों में शुमार थे।
लेकिन रूस और यूक्रेन दोनों देशों की ओर से इन चीजों के निर्यात की रफ्तार धीमी हो गई है। यूक्रेन तो अब खुद खाद्यान्न की कमी का सामना कर रहा है। रूसी नौसेना ने उनके बंदरगाहों की नाकेबंदी कर रखी है, जिससे यूक्रेन तक अनाज नहीं पहुंच पा रहा है। कहा जा रहा है कि यूक्रेन में हालात अब और खराब होंगे।
यह भी पक्का नहीं है कि इस साल फसलों की कटाई होगी भी या नहीं क्योंकि यूक्रेन के खेतों में बारूदी सुरंगें बिछी हुई हैं और वहां टैंक से हमले हो रहे हैं। किसानों को अपने ट्रैक्टर खेतों में ही छोड़ कर भागना पड़ रहा है।
खाद्यान्न संकट से बेतहाशा बढ़ी महंगाई
इन हालातों ने बड़ी समस्या खड़ी कर दी है, खासकर कर गरीब देशों के लिए। उन देशों के लिए जहां परिवारों का ज्यादातर पैसा खाने पर ही खर्च हो जाता है। दुनिया अभी पिछले साल के भयंकर सूखे से उबरी ही है और लोग पहले से खाद्यान्न की महंगाई का सामना कर रहे हैं। लेकिन इस वक्त खाद्यान्नों की महंगाई और बढ़ गई है। ये महंगाई पिछले 32 साल के शीर्ष पर पहुंच गई है। यूक्रेन और रूस के बीच चल रही जंग की वजह से खेती में इस्तेमाल होने वाली मशीनों को चलाने वाले फ्यूल के दाम काफी बढ़ गए हैं।
समुद्र और सड़क मार्ग से चीजों की ढुलाई, लोन, फर्टिलाइजर और स्टोरेज सर्विसेज भी महंगी हो गई है। मीट और खाने के दूसरे सामान महंगे होते जा रहे हैं क्योंकि मनुष्य और मवेशियों के लिए खाद्यान्न उपलब्धता घटती जा रही है। अब सवाल ये है कि क्या हमारी धरती एक और अकाल की ओर बढ़ रही है। नहीं, फिलहाल ऐसा संकट नहीं है। ब्रुजेल रिसर्च सेंटर के विशेषज्ञों का कहना है, "खराब से खराब स्थिति में भी धरती पर इतना खाद्यान्न होगा कि ये लोगों को पेट भर सके।" हो सकता है कि हालात मुश्किल हों। लोगों को कम खाद्यान्न से काम चलाना पड़े। लेकिन वैसे देशों के सामने वाकई अकाल का खतरा है जो गरीब हैं और जहां संघर्ष चल रहा है।
सोमालिया, अफगानिस्तान और यमन ऐसे ही देश हैं। खाद्यान्न की कमी से सबसे कम प्रभावित पश्चिमी देश होंगे।
सबसे ज्यादा किन देशों पर असर
सबसे खराब हालात उन विकासशील देशों में होंगे, जो शुष्क क्षेत्र में पड़ते हैं। इनमें मध्य पूर्व से लेकर उत्तरी अफ्रीका के देश शामिल हैं। ये देश अपनी जरूरत का 90 फीसदी खाद्यान्न आयात करते हैं। इसके सबसे नजदीकी निर्यातक रूस और यूक्रेन ही हैं।
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ब्रुजेल के रिसर्चरों का कहना है कि खाद्यान्न कीमतों के बढ़ने से मानवीय संकट और राजनीतिक जोखिम भी बढ़ेगा। इससे पहले खाद्यान्नों की इतनी महंगाई अरब स्प्रिंग के दौरान दिखी थी।
एक दशक पहले अरब स्प्रिंग के नाम से जाने गए विरोध और क्रांति से लीबिया, ट्यूनिशिया, मिस्र और यमन में सरकारें बदल गई थीं और सीरिया में गृह युद्ध छिड़ गया था, जिसमें रूस भी एक पक्ष के साथ है।
वर्ल्ड बैंक और यूरोपियन बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट के विशेषज्ञों का कहना है कि यूक्रेन पर रूस के हमले का अप्रत्यक्ष शिकार होने वाले देशों में तुर्की, मिस्र, भारत, थाईलैंड, जॉर्जिया, आर्मेनिया, दक्षिण अफ्रीका, लेबनान और यहां तक कि श्रीलंका भी शामिल हो सकता है।
सोर्स : बीबीसी