इस्राईल ने 27 दिसम्बर 2008 को ग़ज्ज़ा पट्टी के ख़िलाफ़ व्यापक युद्ध छेड़ दिया था, जो 19 जनवरी तक जारी रहा। फ़िलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय के मानवाधिकार सेंटर के आंकड़ों के मुताबिक़, इस युद्ध में 412 फ़िलिस्तीनी बच्चों और 115 महिलाओं समेत कुल 1433 फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए थे। इसके अलावा, ज़ायोनी सेना ने ग़ज्ज़ा के बुनियादी ढांचे को भारी नुक़सान पहुंचाया था। इस्राईली बमबारी में 20,000 से ज़्यादा आवासीय इमारतें ध्वस्त हो गई थीं।
इस युद्ध में मारे जाने वालों की संख्या और बुनियादी ढांचे की तबाही को देखकर, इसे मानवता के ख़िलाफ़ अपराध और युद्ध अपराधों की श्रेणी में रखा जाता है। इस युद्ध में ग़ज्ज़ा पट्टी पर इस्राईल के हमले इतने अधिक भयानक थे कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने एक प्रस्ताव पारित करके ज़ायोनी शासन पर खुलेआम मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया था। इस प्रस्ताव में तुरंत रूप से नाकाबंदी वाले ग़ज्ज़ा में हमलों को रोकने की मांग की गई थी।
इसके अलावा 2009 में संयक्त राष्ट्र संघ ने एक जांच समिति का गठन किया, ताकि वह इस युद्ध की जांच करके अपनी रिपोर्ट पेश करे। पांच महीने बाद इस समिति ने 574 पन्नों पर आधारित अपनी जांच रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट के मुताबिक़, इस्राईल ने इस युद्ध में ऐसे अपराध अंजाम दिए हैं कि जिन्हें युद्ध अपराधों की श्रेणी में रखा जा सकता है।
इस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि ग़ज्ज़ा पट्टी के नागरिकों को दंडित करने के उद्देश्य से एक सतत और व्यापक नीति को बढ़ावा देने के लिए इस्राईल ने व्यापक और भीषण बमबारी की। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 5 नवंबर 2009 को रिचर्ड गोल्डस्टोन की रिपोर्ट के रूप में जानी जाने वाली जांच समिति की रिपोर्ट को मंज़ूरी दे दी। इतनी स्पष्ट रिपोर्ट के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अवैध शासन के खिलाफ़ और ग़ज्ज़ा पट्टी के समर्थन में कोई कार्यवाही नहीं की।
इस युद्ध को 15 साल बीत गए, जबकि इस्राईल ने पिछले 17 वर्षों से ग़ज्ज़ा पट्टी की नाकाबंदी कर रखी है। आज भी यह पट्टी दुनिया की सबसे बड़ी ओपेन जेल है और यहां की घनी आबादी में रहने वाले परिवेष्टन का दंश झेल रहे हैं। इसके बावजूद, अरब देश न सिर्फ़ ख़ामोश हैं, बल्कि कुछ देश ज़ायोनी शासन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने का समझौता कर चुके हैं और कुछ इस ओर आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन फ़िलिस्तीनी अपने सरज़मीन की आज़ादी और अपने बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं और दुनिया भर की समस्त साज़िशों के बावजूद, भविष्य में भी संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं।