श्रीनगर में जी-20 की बैठक पर क्या कह रहा है पाकिस्तान का मीडिया
भारत इस साल जी-20 का अध्यक्ष है और देश के अलग-अलग शहरों में इससे जुड़ी बैठकों का आयोजन किया जा रहा है, लेकिन चर्चा श्रीनगर में हो रही मीटिंग की सबसे ज़्यादा है।
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भारत प्रशासित कश्मीर के श्रीनगर में जी-20 टूरिज़्म वर्किंग ग्रुप की बैठक का आज दूसरा दिन है। इस बैठक में कई देशों के प्रतिनिधि जुटे हैं, लेकिन चीन, पाकिस्तान, तुर्की और मिस्र ने इस सम्मेलन से दूरी बनाए रखी है।
पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर को विवादित क्षेत्र बताते हुए यहाँ बैठक आयोजित करने का विरोध किया था। बाद में चीन ने भी बैठक में शामिल न होने के लिए इसी कारण को दोहराया।
श्रीनगर में हो रही ये बैठक इस मायने में भी अहम है क्योंकि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से कश्मीर में पहली बार कोई बड़ा आयोजन हो रहा है।
माना जा रहा है कि इस बैठक के सफल आयोजन से भारत सरकार के इस तर्क को बल मिलेगा कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में हालात काफ़ी सुधरे हैं।
यही वजह है कि भारत में जारी जी-20 देशों की ये बैठक पाकिस्तानी मीडिया की सुर्ख़ियों में बनी हुई है। पाकिस्तानी मीडिया में सबसे अधिक चर्चा तुर्की और मिस्र के जी-20 की बैठक में शामिल न होने की है।
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बैठक में कई देशों के शामिल न होने के बारे में क्या लिखा गया है
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने शुक्रवार को एक बयान जारी कर कहा था, "चीन विवादित क्षेत्रों में किसी भी रूप में जी-20 बैठक आयोजित करने का दृढ़ता से विरोध करता है और ऐसी बैठकों में शामिल नहीं होगा।
सऊदी अरब और तुर्की की तरफ़ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन दोनों ने बैठक में शामिल होने से मना कर दिया है।
वहीं, इंडोनेशिया ने दिल्ली में अपने दूतावास के एक अधिकारी को बैठक में शामिल होने के लिए श्रीनगर भेजा है।
पाकिस्तान के जाने-माने अख़बार 'द नेशन' ने अपने संपादकीय में तुर्की, मिस्र और इंडोनेशिया के जी-20 में हिस्सा न लेने को 'सकारात्मक घटनाक्रम' बताया है।
अख़बार ने लिखा है कि भारत की योजनाओं के लिए ये झटका बेहद ज़रूरी था और इससे ये दिखता है कि दुनिया को कश्मीरियों के भविष्य की चिंता है।
संपादकीय में ये भी कहा गया है कि बैठक में शामिल न होकर इन देशों ने ये दिखाया है कि वो कश्मीर के उत्पीड़ित लोगों के साथ हैं। साथ ही श्रीनगर का पर्यटनस्थल और बैठक के वेन्यू के तौर पर प्रचार करना भयावह है।
हालांकि भारत सरकार लगातार प्रमाण देकर कहती रही है जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने और अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से वहां के हालात बेहतर हुए हैं। चरमपंथ की घटनाओं में कमी आई है।
द नेशन के लेख में दावा किया गया है कि 'भारत प्रशासित कश्मीर में अनगिनत कश्मीरियों की हत्या हुई है और हक़ीक़त में जो अत्याचार हो रहा है उसके बारे में कोई ख़बर तक नहीं है। ऐसे में यहाँ कॉन्फ़्रेंस के आयोजन से इन बर्बर यातनाओं का सामान्यीकरण हो जाएगा।
अखबार लिखता है कि एक साथ कई देशों के इस बैठक के बहिष्कार से संकेत मिलते हैं कि सम्मेलन को राजनीतिक एजेंडे के तौर पर इस्तेमाल करने का भारत का प्रयास भी असफल हो गया है।
वहीं डॉन न्यूज़ ने एक आर्टिकल में इस सम्मेलन को अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का घोर उल्लंघन बताया है।
साथ ही ये भी कहा गया है कि 'विवादित क्षेत्र' में हो रही इस बैठक का कम से कम तीन देशों ने बहिष्कार किया है. वहीं कई पश्चिमी देशों ने भी विशेष प्रतिनिधियों की बजाय भारत में पहले से मौजूद अपने राजनयिकों को भेजा है।
चीन ने इससे पहले लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में हुई जी-20 की बैठकों में भी हिस्सा नहीं लिया था. चीन इन इलाकों को तिब्बत का हिस्सा बताता है।
एक अन्य पोर्टल द न्यूज़ इंटरनेशनल ने कहा है कि तनावपूर्ण स्थिति के बीच श्रीनगर में कड़ी सुरक्षा के साथ जी-20 सम्मेलन शुरू हुआ है।