अर्दोआन के तीसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके उन्हें बधाई दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्दोआन की जीत पर ट्वीट किया, "तुर्की के राष्ट्रपति पद पर दोबारा चुने जाने के लिए रेचेप तैय्यप अर्दोआन को बधाई मुझे भरोसा है कि हमारे द्विपक्षीय संबंध और वैश्विक मुद्दों पर सहयोग आने वाले समय में भी बढ़ना जारी रहेगा।
मोदी ने भले बधाई दे दी है लेकिन उन्हें पता है कि अर्दोआन के सत्ता में आने के बाद भारत से रिश्ते सहज नहीं रहे हैं। पिछले नौ सालों में पीएम मोदी ने मध्य-पूर्व के कई देशों का दौरा किया लेकिन तुर्की नहीं गए।
2019 में मोदी तुर्की का दौरा करने वाले थे लेकिन ऐन मौक़े पर दौरा रद्द हो गया था। पाँच अगस्त 2019 को कश्मीर का विशेष दर्जा भारत ने ख़त्म कर दिया था और तुर्की ने इसका खुलकर विरोध किया था। अर्दोआन ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में भी उठाया था।
भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने भी ट्वीट कर इस बात पर चिंता जताई है कि अर्दोआन की जीत भारत के लिए किसी भी लिहाज़ से ठीक नहीं है।
कंवल सिब्बल ने अपने ट्वीट में लिखा है, ''तुर्की में अर्दोआन की जीत भारत के लिए बहुत सहज स्थिति नहीं है. तुर्की कश्मीर पर इस्लामिक लाइन पर समर्थन पाकिस्तान को देगा ओआईसी में भी कश्मीर पर सक्रिय रहेगा। पाकिस्तान के साथ तुर्की की जुगलबंदी चिंताजनक है।ऑटोमन साम्राज्य वाला अर्दोआन का लक्ष्य भी विनाशकारी है। अर्दोआन के नेतृत्व में तुर्की का ब्रिक्स में आना किसी भी मायने में ठीक नहीं है। रूस के साथ भी अर्दोआन की दोस्ती बहुत अच्छी है।
भारत और तुर्की के रिश्ते हमेशा से उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। तुर्की का पाकिस्तान परस्त रुख़ रहा है। कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 1950 के शुरुआती दशक या फिर शीत युद्ध के दौर में हुई थी।
इसी दौर में भारत-पाकिस्तान के बीच दो जंगें भी हुई थीं। तुर्की और भारत के बीच राजनयिक संबंध 1948 में स्थापित हुए थे। तब भारत को आज़ाद हुए मुश्किल से एक साल ही हुआ था।
इन दशकों में भारत और तुर्की के बीच क़रीबी साझेदारी विकसित नहीं हो पाई कहा जाता है कि तुर्की और भारत के बीच तनाव दो वजहों से रहा है। पहला कश्मीर के मामले में तुर्की का पाकिस्तान परस्त रुख़ और दूसरा शीत युद्ध में तुर्की अमेरिकी ख़ेमे में था जबकि भारत गुटनिरपेक्षता की वकालत कर रहा था।
जब शीत युद्ध कमज़ोर पड़ने लगा था तब तुर्की के 'पश्चिम परस्त' और 'उदार' राष्ट्रपति माने जाने वाले तुरगुत ओज़ाल ने भारत से संबंध पटरी पर लाने की कोशिश की थी। 1986 में ओज़ाल ने भारत का दौरा किया था। इस दौरे में ओज़ाल ने दोनों देशों के दूतावासों में सेना के प्रतिनिधियों के दफ़्तर बनाने का प्रस्ताव रखा था।
इसके बाद 1988 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तुर्की का दौरा किया था। राजीव गांधी के दौरे के बाद दोनों देशों के रिश्ते कई मोर्चे पर सुधरे थे।
लेकिन इसके बावजूद कश्मीर के मामले में तुर्की का रुख़ पाकिस्तान के पक्ष में ही रहा इसलिए रिश्ते में नज़दीकी नहीं आई। भारत तुर्की की इन आपत्तियों के जवाब में कहता रहा है कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और तुर्की की टिप्पणी भारत के आंतरिक मामलो में हस्तक्षेप है।
साल 2000 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 50.5 करोड़ डॉलर का था जो 2018 में 8.7 अरब डॉलर हो गया. पूर्वी एशिया में चीन के बाद भारत तुर्की का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर बन गया।