हज 2023 : मेहरम के बिना हज करने वाली महिलाओं में इजाफा
सऊदी अरब की तरफ़ से हज पर जाने वाली महिलाओं के लिए मेहरम की शर्त हटाए जाने के बाद इस साल मेहरम के बिना हज में भारत से लगभग 4000 महिलाओं ने पंजीकरण करवाया है।
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हज पर अकेली जाने वाली महिलाओं य बिना मेहरम के हज की संख्या में यह बढ़ोतरी सऊदी अरब के उस आदेश के बाद आई है जिसमें सऊदी अरब की सरकार ने महिलाओं के लिए हज पर जाने के लिए एक मेहरम व्यक्ति का साथ होने की शर्त को समाप्त कर दिया है।
बिना मेहरम के हज के लिए पंजीकरण कराने वाली भारत की 4000 महिलाओं में से 39 महिलाएं एकेली राजधानी दिल्ली से हैं। याद रहे कि इस बार राजधानी दिल्ली से हज के लिए जाने वाले यात्रियों के पंजीकरण में रिकार्ड इजाफ़ा हुआ है।
पिछले वर्ष 8000 यात्रियों की तुलना में इस बार हज पर जाने वाले यात्रियों की संख्या में तीन गुना इज़ाफा हुआ है यानी इस बार दिल्ली से 24000 के करीब यात्री हज पर जाएंगे। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, राजधानी दिल्ली से इस वर्ष हज यात्रा के लिए 22 हजार से अधिक आवेदन आए हैं।
हज यात्रा के इतिहास में पहली बार 4,314 महिलाओं ने 'मेहरम' या पुरुष अभिभावक के बिना तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए आवेदन किया है।
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ज्ञात रहे कि सऊदी अरब की सरकार ने अक्टूबर में एक आदेश जारी किया था जिसके अनुसार इस साल से हज पर जाने वाली महिलाओं के लिए किसी मेहरम व्यक्ति का होना शर्त नहीं है। इस्लामी मान्यताओं में मेहरम उस व्यक्ति को कहा जाता है जिससे शादी नहीं की जा सकती है।
याद रहे कि इससे पहले तक किसी महिला को हज पर जाने के लिए किसी मेहरम व्यक्ति का साथ होना ज़रूरी होता था।
हज क्या है और मुसलमान हज पर क्यों जाते हैं?
हज एक इस्लामी तीर्थयात्रा है, इसके करने के लिए पूरी दुनिया से मुसलमान लोग पवित्र शहर मक्का हर साल पहुँचते हैं। हज को इराक़ के अरबईन के बाद हर साल होने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जमावड़ा माना हाता है।
हर साल हज में दुनिया भर से लगभग 60 लाख लोग शामिल होते हैं। हर साल इराक़ में होने वाले अरबईन में यह संख्या 1 करोड़ से 5 करोड़ के बीच होती है। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार हज इस्लाम के पाँच मूल स्तंभों में से एक है।
इस्लामी कानून के अनुसार सामर्थ रखने वाले हर मुसलमान पर जीवन में एक बार हज वाजिब होता है। हज मुसलमान मर्द और औरत दोनो पर वाजिब होता है।
शारीरिक और आर्थिक रूप से सामर्थ रखने वाला कोई भी मुसलमान चाहे वह महिला हो या पुरुष उसको जीवन में एक बार हज के लिए जाना आवश्यक होता है। हज इस्लामी कैलेंडर के अंतिम महीने यानी ज़िलहिज्जा में 8 से 12 तरीख़ के बीच अंजाम दिया जाता है।
हज एक इस्लामी कानून है। लेकिन मुसलमानों का मानना है कि पैगम्बर मुहम्मद से पहले हज़रत इब्राहीम ने भी हज को अंजाम दिया है और यह रस्म हज़ारों साल पुरानी है। हज शुरू होने से पहले हर हाजी को एक खास किस्म का कपड़ा पहनना होता है जिसे एहराम कहा जाता है।
इस कपड़े को पहनने के बाद ही हाजी हज के लिए योग्य होता है। हज में काबा के सात चक्कर लगाना, शैतान को पत्थर मारना, पशु की बलि देना और बाल मुंडाना मुख्य कार्य हैं।