वर्ल्ड मिल्क डे: कौन सा दूध बेहतर है?
जानवरों के बच्चे एक समय बाद मां का दूध छोड़ देते हैं और फिर अन्य जानवरों की तरह दूसरी चीज़ें खाने लगते हैं। लेकिन इंसान के बच्चे मां का दूध छोड़ने के बाद भी दूसरे स्तनधारी जीवों जैस, गाय, भैंस, बकरी, भेड़ आदि का दूध पीते रहते हैं।
Table of Contents (Show / Hide)
![वर्ल्ड मिल्क डे: कौन सा दूध बेहतर है?](https://cdn.gtn24.com/files/india/posts/2023-06/1.webp)
सभी स्तनधारियों के जीवन में दूध का बड़ा महत्व है। बच्चा पैदा होने के साथ ही मां के स्तन से दूध पीने लगता है। इंसान ही एक ऐसा प्राणी है जो दूसरे जानवरों के दूध पर नज़र रखता है। उसकी दलील है कि दूध उसकी सेहत के लिए ख़ास तौर से हड्डियों के लिए बहुत ज़रूरी है। जबकि नई रिसर्च कहती हैं कि दूसरे जानवरों का दूध पीना ग़ैर ज़रूरी, अप्राकृतिक और नुक़सानदेह है।
इंसानों ने आज से क़रीब 11 हज़ार साल पहले गाय पालना शुरू किया था। लेकिन, दूध में मौजूद लैक्टोज़ शुगर को पचाने की क्षमता इंसान ने केवल दस हज़ार साल पहले विकसित की। इसकी शुरुआत दक्षिणी-पश्चिमी एशिया से हुई थी, जो धीरे-धीरे यूरोप तक फैली यही वजह है कि आज दुनिया में केवल तीस फ़ीसद लोगों में ही वयस्क होने के बाद भी लैक्टेज़ नाम का एंजाइम बनता है।
बाक़ी लोग बचपन में जब मां का दूध पीना बंद कर देते हैं, तो उन के शरीर में लैक्टेज़ एंजाइम का उत्पादन भी बंद हो जाता है। इसके बाद ये लोग दूध में मौजूद शुगर लैक्टोज़ को नहीं पचा पाते. उनके शरीर में रिएक्शन हो जाते हैं।
यूरोपीय, कुछ अफ्रीकी, मध्य-पूर्वी और दक्षिण एशियाई लोगों के अपवाद को छोड़ दें, तो इंसानों में दुनिया की ज़्यादातर आबादी में दूध के शुगर लैक्टोज़ के प्रति एलर्जी हो जाती है। अमरीका में यूरोपीय मूल की 9 फ़ीसद आबादी ही दूध पचाने में सक्षम है. वो भी दूध से बचना चाहते हैं। हालांकि इस के कई कारण होते हैं। जैसे कि स्वास्थ्य और पशुपालन से पर्यावरण को होने वाला नुक़सान वग़ैरह।
यही वजह है कि अमरीका में डेयरी पदार्थों और गाय के दूध से विकल्प के तौर पर पेश किए जाए रहे उत्पादों का बाज़ार तेज़ी से बढ़ रहा है। सवाल ये उठता है कि गाय का दूध छोड़ कर उस के विकल्पों को आज़माना सेहत के लिए कितना फ़ायदेमंद है? गाय के दूध से हमें जो पोषक तत्व मिलते हैं, क्या हम उन्हें वैकल्पिक उत्पादों से पा सकते हैं? और, क्या दूध पीने से लोगों में लैक्टोज़ की एलर्ज़ी बढ़ जाती है?
दूध को लेकर स्वास्थ्य चिंताएं
हालिया दशकों में दूध को लेकर एक और चिंता ज़ाहिर की जा रही है। गाय गर्भावस्था में भी दूध देती है। लेकिन, इस दौरान दूध में ओस्ट्रोजेन हारमोन की मात्रा 20 गुना ज़्यादा है। ओस्ट्रोजेन की ज़्यादा मात्रा का ताल्लुक़ कैंसर से पाया गया है।
रिसर्चर महिलाओं में होने वाले स्तन कैंसर, बच्चेदानी का कैंसर, और गर्भाश्य के कैंसर से इसका सीधा संबंध देखते हैं। लेकिन अमरीका की विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी की रिसर्चर लॉरा हर्नांडेस का कहना है कि गाय के ओस्ट्रोजेन वाले दूध से डरने की ज़रूरत नहीं है। महिला के दूध में भी हार्मोन होते हैं। ये स्तनधारियों का एक हिस्सा है। दूध में चिकनाई की मात्रा ज़्यादा होती है। लिहाज़ा, ये धारणा है कि दूध ज़्यादा पीने से दिल की बीमारियां होने का ख़तरा बढ़ जाता है।
रिसर्च बताते हैं कि दूध में सिर्फ़ 3.5 फ़ीसद चिकनाई होती है। हल्की मलाई निकाले दूध में क़रीब 1.5 फीसद जबकि स्किम्ड मिल्क में 0.3 फ़ीसद ही चिकनाई होती है। बिना मिठास वाले सोया, बादाम, गांजा, नारियल, ओट और चावल से बने ड्रिंक में दूध से भी कम चिकनाई होती है।
फिनलैंड यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर जेरिका विरतानेन का कहना है कि दूध में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होता है। जो लोग ज़्यादा दूध पीते हैं उनकी भूख दूध से ही ख़त्म हो जाती है। लिहाज़ा वो लोग अन्य पौष्टिक आहार नहीं लेते। जिसकी वजह से उन में दिल की बीमारियां ज़्यादा होने का ख़तरा बढ़ जाता है।
वो कहती हैं, सिर्फ़ दूध के सहारे रहना सेहत के लिए अच्छा नहीं है। संतुलित मात्रा में लिया तो बुरा भी नहीं है। यहां तक कि जो लोग दूध की मिठास पचा नहीं पाते, वो भी कभी- कभी उचित मात्रा दूध ले सकते हैं। ये बात रिसर्च में साबित भी हो चुकी है।
फिर भी एक बड़ी आबादी ऐसी है जो गाय का दूध पीना पसंद नहीं करती और दूसरे विकल्पों की और बढ़ रही है। सोया मिल्क गाय के दूध का सबसे अच्छा विकल्प है।
यही एक ऐसा विकल्प है, जिसमें गाय के दूध के बराबर प्रोटीन होता है। अन्य तरह के वैकल्पिक दूध में कई तरह कि कमियां हो सकती हैं, जो वयस्कों के लिए तो ठीक हैं लेकिन बच्चों के लिए मुफ़ीद नहीं है।