भारत ने मंगलवार को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के काउंसिल ऑफ हेड्स ऑफ स्टेट्स (CHS) की 23वीं बैठक की मेजबानी की। भारत ने इसमें अपने हितों को सुरक्षित करने की कोशिश की। इसने सीमा पार आतंकवाद से लड़ने की आवश्यकता पर जोर दिया जो पाकिस्तान को एक कड़ा संदेश था।
यह सम्मेलन उस वक्त आयोजित किया जा रहा है जब भारत के इसके दो पड़ोसी देशों पाकिस्तान और चीन के साथ रिश्ते तनावपूर्ण चल रहे हैं। वहीं, रूस अपनी निजी सेना वैगनर के अल्पकालिक विद्रोह से उभरने की कोशिश कर रहा है।
एससीओ क्या है?
एससीओ की स्थापना रूस, चीन, किर्गिज गणराज्य, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों द्वारा 2001 में शंघाई में एक शिखर सम्मेलन में की गई थी। भारत को 2005 में एससीओ का पर्यवेक्षक बनाया गया। तब भारत ने समूह की मंत्री स्तरीय बैठकों में भाग लिया था, जो मुख्य रूप से यूरेशियन क्षेत्र में सुरक्षा और आर्थिक सहयोग पर केंद्रित था।
2017 में अस्ताना शिखर सम्मेलन में भारत एससीओ का पूर्ण सदस्य देश बन गया। भारत के साथ पाकिस्तान भी 2017 में इसका स्थायी सदस्य बना। आज एससीओ एक प्रभावशाली आर्थिक और सुरक्षा ब्लॉक है और पिछले कुछ वर्षों में यह सबसे बड़े अंतर-क्षेत्रीय अंतरराष्ट्रीय संगठनों में से एक के रूप में उभरा है।
भारत के लिए बैठक अहम क्यों?
यह भारत के लिए मध्य एशिया के साथ अधिक गहराई से जुड़ने का एक मंच रहा। रैंड कॉर्पोरेशन के इंडो-पैसिफिक विश्लेषक डेरेक ग्रॉसमैन ने कहा, 'भारत इस प्रकार की विदेश नीति में गौरवान्वित होता है जहां वह एक ही समय में सभी के साथ समान व्यवहार करता है।'
भारत ने शिखर सम्मेलन में अपने हितों को सुरक्षित करने की कोशिश की। इसने सीमा पार आतंकवाद से लड़ने की आवश्यकता पर जोर दिया जो पाकिस्तान को एक कड़ा संदेश था। इसने क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया जिसका इशारा चीन की ओर रहा। भारत और चीन के बीच तीन साल से गतिरोध चल रहा है, जिसमें पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में सीमा पर हजारों सैनिक तैनात हैं।