भारत इसराइल का साथ देकर अरब देशों को छोड़ेगा, तो आम भारतीयों पर क्या होगा इसका असर
हमास और इसराइल की जंग चल रही है और हज़ारों आम लोग मारे जा रहे हैं, ऐसे में भारत की विदेश नीति पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
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कई विशेषज्ञों का यह मानना है कि भारत ने जो रुख़ यूक्रेन-रूस जंग में अपनाया था, उसके ठीक उलट इसराइल और हमास की जंग में अपना रहा है।
कहा जा रहा है कि यूक्रेन-रूस जंग में भारत पश्चिम के ख़िलाफ़ डटकर खड़ा था लेकिन इसराइल के मामले में वह खुलकर पश्चिम के साथ आ गया है। कई लोग इसे भारत के दोहरे मानदंड के रूप में देख रहे हैं। हालांकि भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इन सवालों को ख़ारिज कर दिया है।
और कहा है कि आतंकवाद पर भारत किसी भी रूप में नरमी नहीं दिखा सकता है। भारत का कहना है कि इसराइल में सात अक्टूबर को आतंकवादी हमला हुआ था और इसके ख़िलाफ़ वह सख़्ती से खड़ा होगा। पिछले हफ़्ते संयुक्त राष्ट्र महासभा में ग़ज़ा में जारी इसराइली युद्ध को रोकने और मानवीय मदद पहुँचाने के लिए युद्धविराम का प्रस्ताव लाया गया था।
यूएन महासभा में इस प्रस्ताव पर हुई वोटिंग से भारत बाहर रहा। भारत यूक्रेन-रूस जंग पर भी संयुक्त राष्ट्र में लाए गए प्रस्तावों पर वोटिंग से बाहर रहता था। अमेरिका समेत पश्चिम के देश दबाव डालते रहे कि भारत यूएन में रूस के ख़िलाफ़ आने वाले प्रस्ताव पर वोटिंग करे लेकिन भारत किसी भी दबाव में नहीं झुका।
यहाँ तक कि पाकिस्तान में भी भारत की स्वतंत्र विदेशी नीति की तारीफ़ हुई। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की खुलकर प्रशंसा की थी।
लेकिन इस बार इसराइल और फ़लस्तीनियों के संकट में भारत के रुख़ को संतुलनवाद के रूप में भी नहीं देखा जा रहा है। रूस और यूक्रेन की जंग में भारत की तटस्थता के पक्ष में तमाम ठोस तर्क थे।
रूस पर भारत की रक्षा निर्भरता, सोवियत के ज़माने से ही कश्मीर पर भारत के साथ रूस का खड़ा रहना या फिर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में महंगे होते कच्चे तेल के बावजूद भारत को रूस से सस्ता तेल मिलना।
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इन सबके बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सामने पीएम मोदी का यह कह देना कि यह युद्ध का ज़माना नहीं है। भारत के इसी रुख़ की वजह से उसकी अध्यक्षता में हुए जी-20 समिट में सहमति से प्रस्ताव पास कराने में भी कामयाबी मिली थी।
लेकिन इसराइल की ग़ज़ा में जारी जंग में हज़ारों की संख्या में आम लोग मारे जा रहे हैं। हमास ने सात अक्टूबर को इसराइल में किए हमले में जितने आम लोगों को मारा था, उसकी तुलना में इसराइली सैन्य कार्रवाई में कई गुना ज़्यादा आम फ़लस्तीनी मारे जा चुके हैं और यह अब भी जारी है।
ऐसे समय में यूएन जनरल असेंबली में मानवीय मदद पहुँचाने के लिए युद्धविराम का प्रस्ताव लाया गया तो भारत वोटिंग से बाहर रहा। कहा जा रहा है कि भारत के पास वोटिंग से बाहर रहने का कोई वाजिब तर्क नहीं था। भारत का तर्क था कि यूएन के प्रस्ताव में हमास के हमले ज़िक्र नहीं था। भारत चाहता था कि प्रस्ताव में हमास के हमले का संदर्भ हो और इसकी निंदा हो।