विश्व थायरॉइड डे, जाने 25 मई को ही क्यों मनाते हैं थायरॉइड डे?
भारत में हर 10 में से एक शख़्स थायरॉइड की समस्या से जूझ रहा है। 2021 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में क़रीब 4.2 करोड़ थायरॉइड के मरीज़ हैं।
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आज विश्व थायराइड जागरूकता दिवस मनाया जा रहा है। हर साल 25 मई को थायराइड दिवस मनाते हैं । यह दिन थायराइड रोग की रोकथाम को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। भारत समेत कई देशों में थायराइड के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। पब्लिक हेल्थ अपडेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर 200 मिलियन से अधिक लोग थायराइड से जूझ रहे हैं और इनमें 50% मामले ऐसे हैं जिनका निदान नहीं होता है।
थायराइड गले में स्थित एक छोटी ग्रंथि है, इससे कई आवश्यक हार्मोन निकलते हैं। ये हार्मोन मेटाबाॅलिज्म, शरीर के तापमान और विकास के लिए जरूरी होते हैं। लेकिन थायराइड का स्तर बढ़ने या कम होने से शरीर को नुकसान हो सकता है।
थायराइड के सामान्य लक्षणों में वजन बढ़ना या घटना शामिल है। खराब लाइफ़स्टाइल और गड़बड़ खानपान आदि कई कारणों से थायराइड की समस्या हो सकती है। थायराइड से बचाव के लिए इसकी रोकथाम और उपचार के बारे में विश्व थायराइड जागरूकता दिवस के मौके पर बताया जाता है। आइए जानते हैं इस दिन को मनाने की शुरुआत कैसे और कब हुई। वहीं विश्व थायराइड जागरूकता दिवस 2023 थीम और महत्व क्या है।
25 मई को ही क्यों मनाते हैं थायराइड दिवस?
प्रतिवर्ष 25 मई को विश्व थायराइड जागरूकता दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की शुरुआत साल 2008 में हुई जब यूरोपियन थायराइड एसोसिएशन ने थायराइड जागरूकता दिवस मनाने को लेकर एक प्रस्ताव दिया ।
थायराइड जागरूकता दिवस को मनाने की शुरुआत यूरोपियन थायराइड एसोसिएशन के प्रस्ताव के बाद हुई। ईटीए ने 25 मई को आधिकारिक तौर पर थायराइड डे के रूप में अपनाया। इस कारण है कि 1965 में 25 मई के दिन ही यूरोपियन थायराइड एसोसिएशन की स्थापना हुई थी।
थायरॉइड के साथ सबसे बड़ी दिक़्क़त ये है कि क़रीब एक तिहाई लोगों को पता ही नहीं होता कि वे इससे पीड़ित हैं।
वैसे यह बीमारी महिलाओं में ज़्यादा पाई जाती है। गर्भावस्था और डिलिवरी के पहले तीन महीनों के दौरान, क़रीब 44 फ़ीसदी महिलाओं में थायरॉइड की समस्या पनप जाती है।
कितनी तरह का होता है थायरॉइड?
थायरॉइड ग्रंथि जब शरीर के लिए पर्याप्त हार्मोन पैदा नहीं कर पाती, तो इसे 'हाइपो-थायरॉइडिज़्म' कहा जाता है। यह उस खिलौने जैसा मामला है, जिसकी बैटरी ख़त्म हो गई हो।
ऐसे में शरीर पहले जैसा सक्रिय नहीं रहता और इसके रोगी जल्दी थक जाते हैं। इसमें थायरॉइड ग्रंथि से ट्राई आयोडीन थायरोक्सिन यानी टी3 और थायरॉक्सिन यानी टी4 हार्मोन निकलने कम हो जाते हैं। ऐसे में टीएसएच यानी थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन बढ़ जाता है।
अगर यह ग्रंथि ज़्यादा हार्मोन पैदा करने लगे, तो इस समस्या को 'हाइपर-थायरॉइडिज़्म' कहते हैं। ऐसे में मरीज़ों की दशा उस इंसान जैसी होती है, जिसने बहुत ज़्यादा कैफ़ीन ले लिया हो।
तीसरी स्थिति थायरॉइड ग्रंथि की सूजन है, जिसे गॉयटर कहते हैं। दवाओं से ठीक न होने पर इसे सर्जरी करके ठीक करने की ज़रूरत पड़ सकती है।