दुनिया के कई देशों में कोरोना के नए वैरिएंट्स का खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एरिस (EG. 5.1) के मामले 55 से अधिक देशों में रिपोर्ट किए जा चुके हैं। इसकी संक्रामकता दर को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे 'वैरिएंट अंडर मॉनिटरिंग' के रूप में वर्गीकृत किया है।
वैज्ञानिक कहते हैं, नए वैरिएंट्स में अतिरिक्त म्यूटेशन देखे जा रहे हैं, जो इसकी संक्रामकता को बढ़ाने वाले हो सकते हैं। यही कारण है कि इनसे खतरा उन लोगों में भी बना हुआ है जो वैक्सीन और संक्रमण के माध्यम से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर चुके हैं।
भारतीय लोगों में इन वैरिएंट्स से कितना खतरा?
भारत में कोरोना वैरिएंट से संक्रमण की मौजूदा स्थिति काफी नियंत्रित दिख रही है। पिछले 24 घंटे में करीब 60 लोगों में संक्रमण की पुष्टि की गई है। BA.2.86 वैरिएंट के कारण भारत में जोखिम अधिक नहीं है, यहां लगभग 20 महीनों से ओमिक्रॉन मौजूद है और संक्रमण की स्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं है। ऐसे में ओमिक्रॉन के ही ये नए वैरिएंट्स कोई गंभीर खतरा पैदा करेंगे ऐसी आशंका कम ही है।
इसके अलावा बड़ी संख्या में लोग ओमिक्रॉन से संक्रमित भी रह चुके हैं ऐसे में उनमें इन वैरिएंट्स से रोग का खतरा बढ़ने की आशंका भी कम ही है।
नए वैरिएंट्स को लक्षित करने वाले टीकों की तैयारी
दुनियाभर में नए वैरिएंट्स के बढ़ते खतरों को देखते हुए इसे लक्षित करने वाले नए टीकों के निर्माण का काम तेजी से चल रहा है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) विशेषज्ञों के मुताबिक नए टीके सितंबर के अंत तक उपलब्ध होने की संभावना है। अभी इन्हें एफडीए से प्रमाणिकता मिलना शेष है।
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कोरोना का आखिरी टीका लगे हुए ज्यादातर लोगों में 6-8 महीने का समय बीत चुके हैं, जिसके कारण शरीर की प्रतिरक्षा कमजोर हो सकती है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, अगस्त 2023 से दुनियाभर में हम जो देख रहे हैं, वह फिर से अलार्मिंग हैं। मामलों में अभी बहुत छोटी संख्या (10% की वृद्धि) में ही वृद्धि है, इसको लेकर बहुत चिंता की आवश्यकता नहीं है। ज्यादातर रोगी आसानी से ठीक हो जा रहे हैं, ऑक्सीजन की कमी या फिर वेंटिलेटर की जरूरत किसी को नहीं हो रही है, फिर भी सभी लोगों को कोरोना के संक्रमण से बचाव के उपाय करते रहना बहुत आवश्यक है। बढ़ता संक्रमण नए वैरिएंट्स को भी बढ़ाने वाला हो सकता है।