इस टेस्ट के नतीजे जानने के लिए उन्होंने एक क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट की मदद ली।
वे कहती हैं, मुझे यह जान कर बहुत आश्चर्य हुआ कि ध्यान जैसी सामान्य सी लगने वाली चीज़ भी दिमाग़ में बदलाव ला सकता है। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये मेरे दिमाग़ पर काम करेगा?
उन्होंने बताया, "अगले छह हफ़्तों के दौरान साइकॉलजिस्ट थॉर्सटन बार्नहॉफ़र ने ध्यान से जुड़ा एक रिसर्च कोर्स मुझे करने के लिए दिया। इसमें हर दिन मैं एक ऑडियो रिकॉर्डिंग सुनते हुए 30 मिनट के लिए ध्यान करती थी। इसके अलावा और भी कुछ गतिविधियां की जाती थीं।
ध्यान का दिमाग़ी मज़बूती से कनेक्शन
ध्यान साधना का चलन वैसे तो हज़ारों साल पुराना है। लेकिन अभी कुछ दशक पहले ही मनोवैज्ञानिकों और दिमाग़ के चिकित्सकों ने इस पर गहन शोध करना शुरू किया था। विभिन्न शोध में ध्यान की उपयोगिता साबित होने के बाद अब इसकी अनुशंसा की जाने लगी है।
अमेरिका के मनोवैज्ञानिक डेविड क्रेसवेल ने कई रिसर्च का हवाला देते हुए क़रीब 20 साल पहले लिखा था कि दिमाग़ी सुकून का संबंध हमारी रोज़ाना की ज़िंदगी से होता है।
जर्मनी में टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ़ म्यूनिख के रिसर्चर ब्रेट्टा हॉलज़ल और अमेरिका के मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल की रिसर्चर सारा लेज़र का कहना है कि मेडिटेशन दिमाग़ में याददाश्त वाले हिस्से को मज़बूत बनाने में मददगार होती है।
मेलिसा होगेनबूम के मनोवैज्ञानिक बार्नहॉफ़र कहते हैं, "ध्यान में आपको अपनी सांसों पर ध्यान देना होता है। वास्तव में, इस प्रक्रिया को दिमाग़ कर रहा होता है। इसे करने से दिमाग़ इधर-उधर भटकना बंद कर देता है। जो ये बताता है कि दिमाग़ काम कर रहा है।
हम सांसे लेते, छोड़ते हैं। यानी हम एक समय में दो काम कर रहे होते हैं। हम ध्यान केंद्रित करने के लिए सांसों के ज़रिए अपनी मांसपेशियों को ताक़तवर बना रहे होते हैं। इस दौरान हम अपनी शारीरिक, मानसिक क्षमताएं बढ़ा रहे होते हैं।
जाने दिमाग़ की मज़बूती का राज़
इंसानी दिमाग़ में सीखने, बदलाव करने और ख़ुद को विकसित करने का स्वभाव होता है। ये प्लास्टिक की तरह है जो अलग अलग चीज़ों में बदल सकता है। इसे न्यूरोप्लास्टिक कहते हैं, जिसका सीधा मतलब ये है कि जैसे जैसे किसी चीज़ को लेकर हमारे विचार बदलते जाते हैं वैसे वैसे दिमाग़ की संरचना और इसके काम करने के त़रीके बदल जाते हैं।
साथ ही योग, ध्यान और कसरत जैसी चीज़ों से हम वाकई अपने दिमाग़ की ताक़त, आकार और इसकी सघनता को बढ़ा सकते हैं।
पहले ये माना जाता था कि ये सब युवावस्था तक ही हो सकता है पर अब हम ये जान चुके हैं कि ये वो निरंतर ताक़त है जो लगातार हमारी पहचान को गढ़ने का काम करता रहता है।जब भी हम कुछ नया सीखते हैं यह झट से उसके अनुसार ख़ुद को ढाल लेता है।
मेलिसा होगेनबूम ने ख़ुद पर किए गए प्रयोग में पाया कि ध्यान से भी दिमाग़ के स्वास्थ्य को कुछ हद तक सुधारा जा सकता है।