स्मार्टफोन के बिना जिंदगी अब अधूरी लगती है, सिर्फ एक स्मार्ट फोन हर मर्ज की दवा बन गया है। चाहे फोटो खींचनी हो या फिर ऑनलाइन शॉपिंग-बैंकिंग करनी हो, घंटों का काम मिनटों में एक क्लिक से हो जाता है।
49 साल पहले मार्टिन कूपर ने जब मोबाइल फोन का इजाद किया, तब उन्होंने भी नहीं सोचा होगा..कि आने वाली पीढ़ी पर इसका कितना असर पड़ेगा। वक्त के साथ मोबाइल फोन स्मार्ट बनता गया और लोग उसकी स्मार्टनेस के दीवाने होते गए। अब मोबाइल फोन आपको, दुनिया के किसी भी कोने में बैठे लोगों से ना सिर्फ जोड़ता है, बल्कि रोजमर्रा की हर जरूरतों को पूरा करने में मदद भी करता है।
स्मार्टफोन के बिना जिंदगी अब अधूरी लगती है, सिर्फ एक स्मार्ट फोन हर मर्ज की दवा बन गया है। चाहे फोटो खींचनी हो या फिर ऑनलाइन शॉपिंग-बैंकिंग करनी हो, घंटों का काम मिनटों में एक क्लिक से हो जाता है।
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समय तो बच जाता है, लेकिन मोबाइल फोन फायदे के साथ-साथ नुकसान पहुंचा रहा है। घर में एक साथ होकर भी कोई किसी के कवरेज एरिया में नहीं होता। रिश्ते भी हकीकत से ज्यादा ऑनलाइन हो गए हैं और इसमें कोई शक नहीं, कि इसका सबसे ज्यादा असर सेहत पर पड़ा है।
एक स्टडी के मुताबिक 43 परसेंट लोगों को हमेशा 'नोमो-फोबिया' यानि मोबाइल खोने का डर रहता है, तो 50 फीसदी लोगों को 'रिंग-एंग्जायटी' यानि फोन देर तक नहीं बजने पर घबराहट होने लगती है, 25 परसेंट लोगों को बार-बार लगता है कि उनका फोन बज रहा है।
मोबाइल फोन तो स्मार्ट बन गया, लेकिन लोगों ने उसे स्मार्टली हैंडल करना नहीं सीखा। घंटों एक ही पॉश्चर में सेल फोन का इस्तेमाल करते हैं, नतीजा सर्वाइकल प्रॉब्लम काफी कॉमन हो गई है, रेडिएशन से नर्वस सिस्टम पर तो असर पड़ ही रहा है, बच्चे भी अब देर से बोलना सीख रहे हैं।
छोटी उम्र में ही मोबाइल फोन का बेजा इस्तेमाल, बचपन में ही नजर कमजोर कर रहा है, हियरिंग कपैसिटी घटा रहा है, कंसंट्रेशन बिगड़ रहा है, इतना ही नहीं मोबाइल मोटापे की वजह भी बन गया है।
सोर्स : इंडिया टीवी