इस्लामी पर्यटन उद्योग के जवाब में सऊदी अरब का आतंकवाद उद्योग
जहा हज के कारण सऊदी अरब के पर्यटन उद्योग में वृद्धि हुई और उसकी अर्थव्यवस्था को समृद्धि मिली है, उसके ठीक उलट इस देश ने मुसलमानों को उपहार में बिलकुल अलग चीज़ दी है।
Table of Contents (Show / Hide)
हर साल, लाखों मुसलमान हज, उमराह करने के लिए सऊदी अरब जाते हैं। यह हज के सिक्के का एक पक्ष है, जिसकी इस्लाम में सिफारिश और जोर दिया जाता है, लेकिन इस धार्मिक कर्तव्य का एक दूसरा आर्थिक पहलू भी है। हज और उमरा या दूसरे शब्दों में कहें धार्मिक पर्यटन सऊदी अरब की तेल आधारित अर्थ व्यवस्था का मुख्य स्तंभ है, कि अगर यह न होता तो यह देश दिवालिया हो सकता है।
आधिकारिक रिपोर्टों के अनुसार, हज और उमराह के के कारण इस देश में परिवहन, वाणिज्यिक स्टोर और छोटे और मध्यम व्यवसायों में विस्तार होगा और सऊदी अरब का इस वर्ष का हज राजस्व 150 बिलियन डॉलर से अधिक तक पहुंच जाएगा।
सऊदी रियल एस्टेट और निवेश समिति के एक सदस्य "मोहसेन अल-शरीफ" कहते हैं: हज के आर्थिक पहलुओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि सऊदी अर्थव्यवस्था जिन बड़ी चुनौतियों का सामना कर रही है, उसे देखते हुए, यह सऊदी अरब के आर्थिक विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
तेल निर्यात के बाद, "तीर्थयात्रा उद्योग" या "पर्यटन उद्योग" सऊदी अरब में सबसे महत्वपूर्ण उद्योग है, जो सऊदी अरब के कुल गैर-तेल सकल घरेलू उत्पाद का 7% है।
अखबार "इंडिया टाइम्स" हज से सऊदी अरब की आय के बारे में लिखता है: सऊदी अरब में तीर्थ उद्योग या पर्यटन उद्योग को "नया तेल" कहा जाना चाहिए।
यह समाचार पत्र लिखता है: "अर्थव्यवस्था के गैर-तेल क्षेत्र के विकास के लिए सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान द्वारा तैयार किए गए विजन 2030 दस्तावेज में पर्यटन पर विशेष ध्यान दिया गया है और इसके विकाश के लिए योजनाएं विकसित की गई हैं।"
यह भी देखें क्षेत्र और दुनिया में आतकंवाद के प्रसार के लिए हज की कमाई का इस्तेमाल
मक्का चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की रिपोर्ट के मुताबिक, मक्का में प्रत्येक तीर्थयात्री की औसत लागत 5 से 6 हजार डॉलर है। साथ ही मक्का और मदीना के निजी क्षेत्र की आय का 25 से 30 प्रतिशत हिस्सा हज पर निर्भर है।
मक्का चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने घोषणा की कि 2015 में, तीर्थयात्रियों ने उपहार आदि खरीदने के लिए 20 अरब सऊदी रियाल खर्च किए।
बिजनेस टुडे की वेबसाइट ने भी कहा कि 2018 में, 2 मिलियन और 400 हजार मुसलमानों ने हज और उमराह के लिए सऊदी अरब की यात्रा की। इसने जोड़ा: हज और उमराह हर साल सऊदी अरब के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 1 बिलियन डॉलर जोड़ते हैं। यही कारण है कि हज उद्योग या पर्यटन या तीर्थयात्रा विशेष रूप से मक्का और मदीना और सामान्य रूप से सऊदी अरब में पैसा बनाने के लिए सबसे मूल्यवान उद्योगों में से एक है।
इस तरह, यह कहा जा सकता है कि सऊदी अरब के लिए इस्लामी दुनिया और मुस्लिम देशों का उपहार इस देश में पर्यटन उद्योग की वृद्धि और विकास है, जो इस देश के लिए आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण किरदार अदा करता है, लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है:
बदले में सऊदी अरब का उपहार इस्लामिक दुनिया और मुस्लिम देशों के लिए क्या है?
यमन पर सैन्य हमला निहत्थे मुसलमानों का नरसंहार, फारस की खाड़ी सहयोग परिषद के देशों पर हावी होने का प्रयास, क्षेत्र में हथियारों की दौड़ को बढ़ावा देना, अमेरिकी हथियार कंपनियों को सहायता, इराक, सीरिया और लेबनान सहित क्षेत्र के राष्ट्रों के लोगों का कत्लेआम। यह वह कुछ उपहार हैं जो सऊदी अरब मुसलमानों द्वारा इस देश की अर्थव्यवस्था को समृद्ध करने के बदले में मुसलमानों को दे रहा है।
दूसरी तरफ़ सऊदी अरब द्वारा "आतंकवाद उद्योग" में निवेश की अपनी अलग कहानी है। यह एक निर्विवाद तथ्य है कि आतंकवादी समूह किसी देश की जासूसी और खुफिया सेवाओं के समर्थन के बिना अकेले जीवित नहीं रह सकते हैं, और अपने लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए, उन्हें वित्तीय और सैन्य संसाधनों और निश्चित रूप से राजनीतिक समर्थन की सख्त जरूरत है।
सऊदी अरब ने अपने आधिकारिक इनकार और यहां तक कि आतंकवादी समूहों से अपनी दूरी की घोषणा के बावजूद, हमेशा अपनी विदेश नीति के अनुरूप क्षेत्रीय और ट्रांस-क्षेत्रीय आतंकवादी समूहों का समर्थन किया है।ॉ
यह भी देखें हज और मादक पदार्थों की तस्करी का समानांतर चलता खेल
दस्तावेजों से पता चलता है कि सऊदी अरब ने अफगानिस्तान में वहाबी आतंकवादी समूहों "अल-कायदा" पाकिस्तान में "सिपाहे मुहम्मद", "लश्करे झंगवी" और "कायदा-मुजाहिदीन" सोमालिया में आतकंवादी संगठन "अल-शबाब", नाइजीरिया में वहाबी आतंकवादी समूह "बोको हराम", भारत में वहाबी जमात "अंसार अल-तौहीद", लीबिया में वहाबी आतंकवादी समूह "जैश अल-दौवलत अल-इस्लामिया", वहाबी इराक में आतंकवादी समूह "अंसार अल-इस्लाम" और "अल-कायदा" और सीरिया में आतंकवादी समूह "अल-नुसरा फ्रंट" और "आईएसआईएस" की स्थापना और वित्तीय सहायता करके दुनिया में आतंकवाद को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
यमन में सऊदी अरब के आतंकवादी कृत्य
सऊदी अरब ने यमनी लोगों के खिलाफ युद्ध में जो कार्रवाई की है और जो अब भी जारी है वह अपने आप में दुनिया का सबसे जघन्य प्रकार का आतंकवादी कृत्य और अपराध हैं।
सऊदी अरब के नेतृत्व में आक्रामक अरब गठबंधन, यमन राष्ट्र के खिलाफ युद्ध की शुरुआत के बाद से, इस देश की समुद्र, हवा और जमीन नाकेबंदी कर रखी है और आवासीय क्षेत्रों और सैन्य केंद्रों पर बमबारी कर रहा है। सऊदी अरब के इन हमलों में आम नागरिक विशेष रूप से निर्दोष बच्चे, लगातार शिकार हुए हैं। गठबंधन सैनिकों के हमलों और बमबारी का नेतृत्व सऊदी अरब कर रहा है और कई विशेषज्ञों के अनुसार, इन इन अपराधों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जांच की जा सकती है और सऊदी अरब के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में मुकदमा चलाया ज सकता है।
सऊदी अरब इस युद्ध में जिन प्रकार के हथियारों का प्रयोग कर रहा है वह प्रतिबंधित हैं, और जिस व्यापक स्तर पर बमबारी और स्कूलों, अस्पतालों , एंबुलेंस, स्टेडियम आदि को निशाना बनाया गया है वह केवल आतंकवादी ही कर सकता है, और इस कृत्य पर इस देश के विरुद्ध विश्व स्तर पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
सऊदी अरब आतंकवाद पर कितना खर्च करता है?
आतंकवाद उद्योग में सऊदी अरब के निवेश की मात्रा को बेहतर ढंग से समझने के लिए, हमें संख्याओं पर जाने की आवश्यकता है। आंकड़े बताते हैं कि यमन के खिलाफ सैन्य आक्रमण के पहले 5 वर्षों में सऊदी अरब का सैन्य बजट इस देश के शिक्षा और स्वास्थ्य बजट से भी अधिक था। विश्व सैन्य व्यय संस्थान के आंकड़ों के अनुसार, 2016 से 2020 तक, इस देश ने हथियारों और सैन्य खर्चों पर लगभग 237 बिलियन डॉलर, जो कि सरकार के खर्च का 20.9% है, खर्च किया है।
आंकड़ों के अनुसार, सऊदी अरब ने अपने 2020 के बजट का 18% सैन्य खर्च पर खर्च किया, जो कि 48.5 बिलियन डॉलर के बराबर था। इस देश के वित्त मंत्रालय द्वारा प्रकाशित सऊदी बजट दस्तावेज़ से पता चलता है कि सउदी अरब द्वारा सैन्य क्षेत्र को आवंटित बजट शिक्षा क्षेत्र के बाद दूसरे स्थान पर है, और कोरोना के बावजूद स्वास्थ्य क्षेत्र तीसरे स्थान पर है।
इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (साइबेरिया) की रिपोर्ट बताती है कि पिछले पांच वर्षों में सऊदी हथियारों के आयात में 8.7% की वृद्धि हुई है, और संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस अवधि के दौरान देश को तीन-चौथाई हथियार उपलब्ध कराए हैं।
2019 में, सऊदी अरब सैन्य खर्च के मामले में दुनिया में पांचवें स्थान पर था। रियाद 22 देशों से हथियारों का आयात करता है, जिनमें से ब्रिटेन यमन युद्ध के पांच वर्षों के दौरान इस देश को हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है, जिसकी हिस्सेदारी 12.6% है, जो 2.22 बिलियन डॉलर के बराबर है।
यह भी देखें सऊदी सरकार द्वारा हज के राजनीतिकरण की कोशिशों की आलोचना
ये संख्याएं और आंकड़े सऊदी अरब पर्यटन उद्योग में इस्लामी दुनिया के निवेश के विपरीत इस्लामी दुनिया के लिए एक उपहार के रूप में आतंकवाद उद्योग में सऊदी निवेश का केवल एक हिस्सा हैं।