जानिए पारसी धर्म में शव का क्या करते है हाल
टाटा सन्स के पूर्व चेयरमैन सायरस मिस्त्री की रविवार को सड़क हादसे में मौत हो गई। सायरस पारसी समुदाय से आते हैं। लेकिन उनका अंतिम संस्कार पारसी परंपरा के अनुसार नहीं किया गया।
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कहा जाता है कि पारसी परंपरा में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया काफी कठिन होती है। हिंदू धर्म में शव को अग्नि या जल को सौंपा जाता है, मुस्लिम और ईसाई समुदाय में शव को दफन कर दिया जाता है, लेकिन पारसी समुदाय में ऐसा नहीं होता है। पारसी लोग शव को आसमान को सौंप देते हैं, जिसे गिद्ध, चील, कौए खा जाते हैं।
आखिर पारसी संप्रदाय में अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है? मौजूदा दौर में इस संप्रदाय को अंतिम संस्कार से जुड़ी कौन सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है? सायरस मिस्त्री का अंतिम संस्कार के लिए परंपरा को क्यों बदला गया? आइए जानते हैं।
आसमान को क्यों सौंप देते हैं शव?
हिंदू धर्म में शव को अग्नि या जल को सौंपते हैं। मतलब शव को जलाया या जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। कुछ जगहों पर शव को दफन करने की परंपरा भी है। वहीं, मुस्लिम व ईसाई धर्म में शव को धरती को सौंप दिया जाता है। मतलब दफन कर दिया जाता है।
वहीं, पारसी संप्रदाय में अंतिम संस्कार बिल्कुल अलग होता है। पारसी लोग अग्नि को देवता मानते हैं। इसी तरह जल और धरती को भी पवित्र मानते हैं। जबकि शव को अपवित्र माना जाता है। ऐसे में उनका मानना है कि शव को जलाने, प्रवाहित करने या दफन करने से अग्नि, जल या धरती अपवित्र हो जाती है। ऐसा करने से ईश्वर की संरचना प्रदूषित होती है। इसलिए पारसी समुदाय में शव को आसमान को सौंप दिया जाता है।
फिर शव का क्या होता है?
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर पारसी लोग कैसे शव को आसमान को सौंपते हैं? दरअसल इसके लिए टावर ऑफ साइलेंस बनाया गया है। इसे दखमा भी कहा जाता है। ये एक बड़ा सा गोलाकार कढ़ाईनुमा कूप होता है। इसमें शव को सूरज की रोशनी में पारसी लोग ले जाकर छोड़ देते हैं। जिसे बाद में गिद्ध, चील, कौए खा जाते हैं। दुनियाभर में पारसी समुदाय से जुड़े लोगों की आबादी करीब डेढ़ लाख है। इनमें से ज्यादातर मुंबई में रहते हैं। यही कारण है कि मुंबई के बाहरी इलाके में टावर ऑफ साइलेंस बनाया गया है।
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सायरस मिस्त्री के लिए क्यों बदली परंपरा?
दरअसल दखमा में रखे शव को ज्यादातर गिद्ध ही खाते हैं। पिछले कुछ सालों में गिद्धों की संख्या तेजी से घट गई है। अब ज्यादा गिद्ध नहीं दिखते हैं। पारसी समुदाय के लिए यही चिंता का सबब है। अब पारसी लोगों को इस पद्धति से अंतिम संस्कार करने में दिक्कत आ रही है। क्योंकि, शव को खाने के लिए गिद्ध नहीं पहुंचते तो यह सड़ जाता है। इसके चलते दूर-दूर तक बदबू फैल जाती है और बीमारी फैलने का भी डर होता है।
कोरोनाकाल के दौरान भी ये मुद्दा उठा था। उस दौरान भी पारसी धर्म गुरु चाहते थे कि इसी पद्धति से शवों का अंतिम संस्कार किया जाए, लेकिन ये कोविड नियमों के अनुरूप नहीं था। विशेषज्ञों ने इसके लिए तर्क दिया कि इस तरह से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाएगा। पक्षियों में भी संक्रमण फैल सकता है। ऐसे में यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। अब बहुत पारसी समुदाय के बहुत से लोग विद्युत शवदाहगृह में अंतिम संस्कार करा रहे हैं। सायरस मिस्त्री का अंतिम संस्कार भी विद्युत शवदाहगृह में ही हुआ।
सोर्स अमर उजाला