'जो जेल' में अमानवीय परिस्थितियों पर बहरीन मानवाधिकार केंद्र की रिपोर्ट
एक मानवाधिकार संगठन ने जो अल खलीफा जेल में बंदियों की अमानवीय पर रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए इन लोगों की रिहाई और इस जेल में यातना बंद करने का आह्वान किया।
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!['जो जेल' में अमानवीय परिस्थितियों पर बहरीन मानवाधिकार केंद्र की रिपोर्ट](https://cdn.gtn24.com/files/india/posts/2022-10/thumbs/prison-in-bahrain.webp)
बहरीन मानवाधिकार केंद्र ने घोषणा की कि अल खलीफा शासन की "जो" जेल के अधिकारी अभिव्यक्ति की आज़ादी का आरोप में कैद "अब्दुल हादी अल ख्वाजा" सहित दूसरे कैदियों को यातनाएं दे रहे हैं।
बहरीन ह्यूमन राइट्स सेंटर ने घोषणा की कि जो जेल में अभिव्यक्ति की आज़ादी और राजनीतिक कैदियों पर अनुचित मुकदमे चलाए जाते हैं। जो जेल में बंद बहुत से कैदियों का एकमात्र जुर्म अपने अधिकारों की रक्षा करना और अल-खलीफा शासन की नीतियों की आलोचना करना है।
इस मानवाधिकार केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार, जो जेल के अधिकारियों ने हाल ही में कई ऐसे जल्लादों को दोबारा कार्य पर बुलाया है जो अतीत में ऐसे कैदियों पर यातनाओं के लिए जाने जाते रहे हैं। इन जल्लादों को दोबारा जेल में नौकरी दिए जाने पर अब्दुल हादी अल-खाजा सहित दूसरे कैदियों ने आपत्ती जताई है।
इस रिपोर्ट के अनुसार, 17 सितंबर, 2022 को अब्दुल हादी अल-खाजा का अपने परिवार से संपर्क टूट गया था और उन्हें चिकित्सा देखभाल से वंचित कर दिया गया था। उनकी मांगों में से एक यह है कि जो जेल के वह कर्मचारी जिनपर कैदियों पर अत्याचार के आरोप हैं को कैदियों से संपर्क की अनुमति न दी जाए। और कैदियों पर वैधानिक रूप से अदालत में मुकदमा चलाया जाए।
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अल-ख्वाजा ने एक फोन कॉल में बताया कि जो जेल में यातनाएं रुकी नहीं हैं। कैदियों के प्रति बहरीन के अधिकारियों का बुरा व्यवहार तेज हो गया है और जेल की स्थिति अभी भी पहले की तरह अमानवीय और भयानक है।
बहरीन मानवाधिकार केंद्र के संस्थापकों में से एक अल-ख्वाजा को 9 अप्रैल, 2011 को बहरीन सुरक्षा बलों ने हिंसक रूप से गिरफ्तार किया था। उन्हें डिटेंशन सेंटर में शारीरिक, मानसिक और यौन प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा है। जून 2011 में हक अल-ख्वाजा के बारे में जारी अदालत का फैसला बहरीन के आपराधिक कानूनों के ढांचे के साथ-साथ निष्पक्ष सुनवाई के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों का घोल उल्लंघन है।
बहरीन के अल-खलीफा शासन ने अल-खाजा और दूसरे 20 मानवाधिकार रक्षकों पर सत्तारूढ़ शासन के खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाया गया था और उनमें से सात की अनुपस्थिति में मुकदमा चलाया गया था।
अप्रैल 2018 में, डेनमार्क की सरकार ने बिगड़ती स्वास्थ स्थिति का हवाला देते हुए डेनमार्क की नागरिकता वाले अल-ख्वाजा को डेनमार्क को सौंपने के लिए कहा, लेकिन इस अनुरोध के एक दिन बाद, बहरीन की सर्वोच्च न्यायिक परिषद ने घोषणा की कि अल-ख्वाजा की स्वास्थ्य स्थिति अच्छी है और उन्हें प्रत्यर्पित करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
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बहरीन मानवाधिकार केंद्र ने इस राजनीतिक कार्यकर्ता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अन्य कैदियों की रिहाई के लिए 20 सितंबर, 2022 को एक अभियान शुरू करने का आह्वान किया।
बहरीन मानवाधिकार केंद्र ने इस बात पर जोर दिया कि पिछले एक दशक के दौरान अल खलीफा जेलों की दयनीय स्थिति के बारे में कई रिपोर्टें प्रकाशित की गईं। इसने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और मानवाधिकार संगठनों के अनुरोध को जेल की स्थिति में सुधार करने और राजनीतिक कैदियों की यातना और दुर्व्यवहार को रोकने के लिए प्रेरित किया है।
पिछले एक दशक में, बहरीन ने अपने अलग राजनीतिक विचारधारा रखने वाले लगभग 15,000 लोगों को गिरफ्तार किया है। हाल के वर्षों में बहरीन कैदियों की सबसे अधिक संख्या वाला पहला अरब देश बन गया है, जिसमें लगभग 4,500 राजनीतिक बंदी बुरी परिस्थितियों में रह रहे हैं।
बहरीन में राजनीतिक कैदियों को यातना दिया जाना और उनका उत्पीड़न आम बात है। इस देश का अल-खलीफा शासन हिरासत, यातना और निष्पादन के माध्यम से किसी भी असहमति की आवाज को चुप करा देता है।