आख़िर क्यों है भारत सरकार को इतनी जल्दी ग़रीबों को उजाड़ने में?
आज भारत में हिंदुओं की आबादी 95 करोड़ से अधिक है लेकिन आज भी हिंदुओं को कई तरीक़ों से असुरक्षा का एहसास दिलाया जा रहा है। उन्हें बताया जा रहा है कि मुसलमानों की आबादी हिंदुओं से ज़्यादा हो जाएगी, या फिर यह कि हिंदुओं की बहनों और बेटियों को कथित 'लव जिहादियों' से ख़तरा है।
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जबकि वास्तविक्ता देखें तो पता चलेगा इस समय सबसे ज़्यादा जिस चीज़ को ख़तरा है वह है स्वयं भारतीयता को, इंसानियत को और ग़रीबों के घरों को।
आजकल भारत के उत्तराखंड राज्य के हल्द्वानी शहर की वनभूलपुरा बस्ती चर्चा में है। इसकी वजह दशकों से इस बस्ती में रहने वाले आम का आशियानां ख़तरे में है। सरकार चाहती हैं कि लोग इस बस्ती को खाली कर दें और जहां उनकी मर्ज़ी हो वे चले जाएं। जिस देश में सत्ता में बैठे लोग एक सेकेंड के लिए अपनी कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते उसी देश में सत्ताधारी लोग आम नागरिकों को बेघर करने की योजना का समर्थन कर रहे हैं। कभी इन्हीं बस्तियों में वोट मांगकर सत्ता पहुंचने वाले आज इन बस्तियों को उजाड़ने के लिए जल्दबाज़ी कर रहे हैं। यह बिल्कुल ऐसा ही है जैसे जिस पेड़ पर बैठे हैं उसी को काट भी रहे हैं। वहीं वनभूलपूरा बस्ती के नागरिकों की नींदें उड़ी हुई हैं, क्योंकि हाई कोर्ट ने इसे रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण मानकर इसे उजाड़ने का आदेश जार कर दिया है।
कड़ाके की सर्दियों के बीच 50 से 60 हज़ार की आबादी को हटाने के लिए सात हज़ार पुलिसकर्मियों का इंतज़ाम किया जा चुका है। मगर इस बस्ती के रहने वालों के लिए कोई इंतेज़ाम नहीं किया गया है। बच्चे, बूढ़े, जवान और महिलाएं सभी दुआ कर रहे हैं कि उनकी बस्ती बच जाए, लेकिन वहीं सरकार और प्रशासन इस इंतेज़ार में है कि कितनी जल्दी इस बस्ती को उजाड़ दिया जाए। एक ओर छोटे-छोटे बच्चे अपने घर और स्कूल के न उजड़ने की दुआ कर रहे हैं तो वहीं बड़े-बड़े अधिकारी पुलिस बल के साथ उसे उजाड़ने के लिए हर तरह की तैयारी कर रहे हैं।
इस बीच बस्ती में बसने वाले ग़रीब और आम लोग सरकार को याद दिला रहे हैं कि साल 2016 में सरकार ने ही इस भूमि को नज़ूल की ज़मीन माना था, लोगों से पैसे भी उसूले थे। लोगों का सवाल है कि 6 साल पहले जो ज़मीन राज्य सरकार के नियंत्रण में थी, वह अब रेलवे की कैसे हो गई? और इससे भी बड़ा विवाद है इस सवाल के शुरू होने पर। सबसे दिलचस्प बात यह है कि जिस रेलवे अपनी बता रहा है और जिसे अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है, उसका मामला रेलवे ने उठाया ही नहीं था। बल्कि नैनीताल हाई कोर्ट में रविशंकर जोशी नामक एक व्यक्ति ने साल 2013 में एक जनहित याचिका दायर की। उसने आरोप लगाया कि पुल के आसपास जो बस्तियां हैं, उनमें रहने वाले लोग नदी में खनन करते हैं। पुल के पिलर्स के आसपास भी खनन किया गया, जिससे पुल गिर गया। इस याचिका पर हाई कोर्ट ने रेलवे और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था। रेलवे ने तब हलफनामा दिया कि ग़फ़ूर और ढोलक बस्ती जिस ज़मीन पर बसी हैं, वह उसकी है। विभाग ने तब बताया था कि कुल 29 एकड़ भूमि पर अवैध क़ब्ज़ा है। वहीं, सरकार का कहना था कि यह ज़मीन नज़ूल की है और इस पर उसका अधिकार है।
इस बीच 9 नवंबर 2016 को हाई कोर्ट ने आदेश दे दिया कि 10 हफ्ते के भीतर अतिक्रमण हटाया जाए। कुछ लोग इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट चले गए। तब शीर्ष अदालत ने आदेश दिया कि अतिक्रमणकारियों का भी पक्ष सुना जाए। उनके काग़ज़ देखे जाएं। हालांकि इसके बाद रेलवे ने अपना दावा और बढ़ा दिया। बस्ती बचाओ संघर्ष समिति के नसीम बताते हैं, पहले रेलवे अपनी 29 एकड़ ज़मीन पर अतिक्रमण बता रहा था। बाद में उसने अतिक्रमण की जद में आई भूमि का रकबा 78 एकड़ बताना शुरू कर दिया। पहले जब 29 एकड़ में अतिक्रमण की बात कही जा रही थी, तब उसमें वनभूलपुरा की ग़फ़ूर बस्ती और ढोलक बस्ती ही आ रही थी। लेकिन, अब 78 एकड़ के दायरे में बहुत बड़ी आबादी आ गई है। हाई कोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन यहां रहने वालों को बेदखल करने की तैयारी में जुटा है। बहरहाल अभी तक यह तो पता नहीं रेलवे इस ज़मीन का करेगी क्या लेकिन यह ज़रूर पता है कि हज़ारों लोग दर-दर भटकने वाले हैं, वैसे इनमें से ज़्यादातर लोगों का क़ुसूर यह है कि वे मुसलमान हैं!