इस मामले में समाज दो मतों में बँटा हुआ नज़र आता है। जहाँ एक पक्ष का मानना है कि शादी जैसे 'पवित्र' बंधन में बंधने से पहले माता-पिता से अनुमति और आशीर्वाद लेना चाहिए, क्योंकि वही बच्चे का पालन-पोषण करते हैं।
वहीं दूसरा पक्ष ये तर्क देता है कि लड़का और लड़की जब बालिग हैं, तो वे अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होते हैं। प्रेम विवाह से पहले अनुमति लेने का मामला अब गुजरात से निकलकर देशभर में चर्चा का विषय बन रहा है।
मामला क्या है?
दरअसल राज्य के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने पाटीदार समुदाय के एक कार्यक्रम में रविवार को कहा , ''संविधान के दायरे में रहकर सरकार प्रेम विवाहों में अभिभावकों की सहमति को अनिवार्य बनाने की संभावना पर विचार कर रही है।''
मेहसाणा ज़िले में आयोजित छात्रों के समारोह में उन्होंने कहा कि इधर आने से पहले राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ऋषिकेश पटेल ने उन्हें शादी के लिए लड़कियों के भागने के मामलों का अध्ययन करने का सुझाव दिया ताकि प्रेम विवाह के लिए अभिभावकों की सहमति को अनिवार्य बनाने की दिशा में कुछ किया जा सके।
क्या संविधान में बदलाव हो सकता हैं?
भारतीय क़ानून के मुताबिक़ शादी के लिए लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल होना अनिवार्य बताया गया है। वहीं क़ानून ये कहता है कि ऐसे में लड़का और लड़की चाहें किसी धर्म, जाति के हों, वो शादी कर सकते हैं।
अगर उनके धर्म अलग हैं तो वो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी का रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं।
इसके लिए उन्हें इस रजिस्ट्रेशन कार्यालय के बाहर 30 दिन का नोटिस लगाना होता है ताकि अगर किसी को कोई आपत्ति हो तो वो आकर बता सके। इसके बाद ऐसे मामलों में दो गवाहों के समक्ष शादी का रजिस्ट्रेशन हो जाता है।
आरपी पटेल कहते हैं कि अगर कोई प्रेम विवाह कर ही रहा है, तो खुलकर बताए और परिवार की सहमति से ऐसा करे।
साथ ही वे सुझाव देते हैं कि जब भी शादी का रजिस्ट्रेशन होता है तो माता-पिता को विटनेस के तौर पर बुलाया जाना अनिवार्य बना देना चाहिए। ताकि माता-पिता को सही समय पर पता चल जाए कि लड़का कौन है। अगर लड़का सही है तो शादी की अनुमति दे दी जाए।
संविधान के जानकार फ़ैजान मुस्तफ़ा कहते हैं, ''अगर लड़का और लड़की एक दूसरे को पसंद करते हैं और शादी करने का फ़ैसला कर लेते हैं तो ऐसे मामलों में माँ-बाप की कोई भूमिका नहीं रह जाती। बशर्ते वो शादी करने की क़ानूनी उम्र को ध्यान में रखकर ऐसा कर रहे हों।''
भारतीय संविधान के अनुसार भारत के नागरिकों को कई अधिकार दिए गए हैं।
अनुच्छेद 19 में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद 21 में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार स्वतंत्र और गौरवपूर्ण जीवन जीने का अधिकार
क़ानून के जानकार राजेंद्र शुक्ल कहते हैं, ''संविधान में हर व्यक्ति को अधिकार दिए गए हैं और शादी के मामले में अगर ऐसी दख़लअंदाज़ी होती है तो ये मूल अधिकारों का हनन होगा।