लगातार चौथे वर्ष अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर द्विदलीय संयुक्त राज्य आयोग "यूएससीआईआरएफ" ने सलाह दी है कि इस सिफारिश को 2020 से स्वीकार न किए जाने के बावजूद, अमेरिकी प्रशासन को भारत को ‘विशेष चिंता वाले देश’ (कंट्रीज़ ऑफ पर्टिकुलर कंसर्न- सीपीसी) के रूप में नामित करना चाहिए।
रिपोर्ट के अनुसार, यूएससीआईआरएफ ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि उसने पाकिस्तान सहित 13 देशों को सीपीसी के रूप में फिर से नामित करने की सिफारिश की है। इसके अलावा इसने अफगानिस्तान, नाइजीरिया, सीरिया, वियतनाम और भारत के लिए पांच अतिरिक्त सीपीसी का दर्जा देने की सिफारिश की। पहली बार यूएससीआईआरएफ ने श्रीलंका को ‘विशेष निगरानी सूची’ या एसडब्ल्यूएल में शामिल करने का प्रस्ताव दिया है।
यूएससीआईआरएफ की 2023 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति बिगड़ती रही। राज्य और स्थानीय स्तर पर धार्मिक रूप से भेदभावपूर्ण नीतियों को बढ़ावा दिया और लागू किया, जिसमें धर्मांतरण, अंतरधार्मिक संबंधों, हिजाब पहनने और गोहत्या को निशाना बनाने वाले कानून शामिल हैं, जो मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, दलितों और आदिवासियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।
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इसमें कहा गया है कि अमेरिकी विदेश विभाग ने अफ़ग़ानिस्तान, नाइजीरिया या सीरिया के साथ-साथ भारत को सीपीसी स्टेटस के लिए नामित नहीं किया है, जबकि ‘यूएससीआईआरएफ ने ऐसा करने के लिए सिफारिश की और उन देशों में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की प्रकृति और तीव्रता का दस्तावेजीकरण करते हुए रिपोर्ट भी दी थी।
गौरतलब है कि यूएससीआईआरएफ 2020 से भारत को इस सूची में शामिल करने के लिए सिफारिश कर रहा है। भारत के अलावा, अमेरिकी विभाग काफी हद तक नाइजीरिया और सीरिया के लिए भी यूएससीआईआरएफ की सिफारिश की अनदेखी कर रहा है। इन दोनों को की भी क्रमशः 2009 और 2014 से ‘विशेष चिंता वाले’ देशों की सूची में शामिल करने की सिफारिश की गई है।
भारत सरकार ने मौजूदा और नए क़नूनों और देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति शत्रुतापूर्ण संरचनात्मक बदलावों के ज़रिये राष्ट्रीय और राज्य स्तरों पर हिंदु राष्ट्र की अपनी वैचारिक दृष्टि को व्यवस्थित करना जारी रखा है।
भारत ने आयोग की आलोचनाओं को खारिज करते हुए कहा था कि अल्पसंख्यकों की दशा पर उसकी टिप्पणियां पूर्वाग्रह से ग्रसित और पक्षपातपूर्ण हैं।