मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) ने रविवार को जेद्दा में एक आपातकालीन बैठक की थी।
सऊदी अरब स्थित इस संगठन ने अपने सदस्य राष्ट्रों से कहा है कि वो उन देशों को रोकने के लिए ‘एकजुट होकर और सामूहिक रूप से ऐसे तरीक़े’ अपनाए जो इस्लाम की पवित्र किताब को जला रहे हैं।
ओआईसी के महासचिव हुसैन इब्राहिम ताहा ने कहा है कि क़ुरान को जलाना ‘सिर्फ़ एक सामान्य इस्लामोफ़ोबिया की घटना नहीं है’ और दुनियाभर के देशों से अपील की है कि वो अंतरराष्ट्रीय क़ानून का पालन करें जो ‘साफ़-साफ़ कहता है कि धार्मिक नफ़रत की कोई भी वकालत पूरी तरह प्रतिबंधित है।
ओआईसी में सऊदी अरब के प्रतिनिधि सालेह हमद अल-सुहैबानी ने कहा कि यह आपातकालीन बैठक ऐसे घिनौने व्यवहार को रोकने की दिशा में कुछ बेहतर परिणाम लेकर आएगी।
अल-सुहैबानी ने कहा कि ‘विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के झूठे बहाने के आधार पर’ इस तरह की घटना स्वीडन में चौथी बार हुई है।
ओआईसी के सदस्य देशों ने इस घटना की एक सुर में निंदा की है वहीं तुर्की, पाकिस्तान, कैमरून और गांबिया ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया भी दी है।
ओआईसी में पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि सैयद मोहम्मद फ़वाद शेर ने कहा कि पाकिस्तान ‘ईद-उल-अज़हा के मुबारक मौक़े पर इस विभत्स हरकत’ की निंदा करता है।
मुस्लिम बहुल देश तुर्की भी इस घटना से ग़ुस्से में हैं। तुर्की नेटो का सदस्य देश है और स्वीडन लगातार नेटो की सदस्यता की कोशिशें कर रहा है। इस घटना के बाद तुर्की उसके इस रास्ते में रोड़े अटका सकता है।
ओआईसी में तुर्की के स्थायी प्रतिनिधि मेहमत मेतीन एकेर ने कहा की संयुक्त राष्ट्र ने 15 मार्च को इस्लामोफ़ोबिया से लड़ने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय दिवस को मान्यता देने के प्रस्ताव को स्वीकार किया हुआ है जो कि ‘सही दिशा में क़दम है।
उन्होंने सुझाव दिया कि ओआईसी को इस मुद्दे पर जागरूकता के लिए और इस्लामोफ़ोबिया से निपटने के लिए अपने मुख्यालय और उन देशों में कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए जहां पर इस्लामोफ़ोबिक हमले प्रचलित हैं।
इस घटना के बाद मोरक्को, कुवैत, जॉर्डन और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों ने अपने राजदूतों को स्टॉकहोम से वापस बुला लिया है।
क़ुरान फाड़ने वाला कौन?
स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में बुधवार को इराक़ में पैदा हुए सलवान मोमिका ने क़ुरानी की प्रति फाड़ी और जलाई थी. पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया है। सलवान की उम्र 37 साल है और ख़बरों की मानें तो वो कई साल पहले इराक़ से भागकर स्वीडन आ गए थे।
सलवान ने कहा, ''मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अहमियत पर ध्यान दिलवाना चाहता था। ये लोकतंत्र है और अगर वो ये कहेंगे कि हम ऐसा नहीं कर सकते हैं तो ये ख़तरे में है।
डॉयचे वेले की ख़बर के मुताबिक़, स्वीडन के सरकारी मीडिया ने बताया कि सलवान ने ऐसा करने के लिए इजाज़त भी मांगी थी और वो चाहते हैं कि क़ुरान को बैन कर दिया जाए.
जब ये घटना हुई तब वहां जो भीड़ मौजूद थी, उनमें से कुछ लोगों से अल-जज़ीरा ने बात की।
32 साल के अवसान मेज़ोरी ने कहा, ''मुझे हमारे लिए नहीं बल्कि सलवान के लिए बुरा लग रहा है. मुस्लिम होने के नाते मेरे भीतर जो है, उसे कोई नहीं छीन सकता. मैं सलवान पर ध्यान भी नहीं देना चाहता।
हुसम अल गोमाती राजनीति में सक्रिय है और मूल रूप से लीबिया से हैं।
वो बोले- ये हरकत उकसाने का एक तरीक़ा है ताकि हिंसा भड़के और मुसलमानों को हिंसक दिखाया जा सके।