सऊदी अरब-अमेरिका संबंध, कभी खत्म न होने वाला गतिरोध
सऊदी अरब-अमेरिका संबंध किसी समय इतने अच्छे थे कि रियाद की हर विदेश नीति वाशिंगटन से तै होती थी, लेकिन वर्तमान में हालत यह है कि अमेरिकी विदेश मंत्री को बिन सलमान से मिलने के लिए घंटो इन्तेज़ार करना पड़ता है।
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हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बिन सलमान, उनके भाइयों और शाही परिवार से मिलने के लिए आधिकारिक यात्रा पर जेद्दा गए थे। इस बैठक का उद्देश्य कई महत्वपूर्ण मुद्दे थे, जिनमें सबसे ऊपर इजराइल और सऊदी अरब के बीच राजनीतिक संबंधों की स्थापना, अगले चरण में ईरान, चीन और रूस के साथ सऊदी अरब के संबंध, और अंत में यमन युद्ध को समाप्त करने का मुद्दा शामिल था।
इन सभी मुद्दों के कारण बने कि जेक सुलिवन तीन महीने से भी कम समय में एक बार फिर बिन सलमान से मुलाकात करके इन मुद्दों तक पहुँचने के लिए चर्चा करें, और रियाद व वाशिंगटन के बीच एक समझौते और विश्वास बनाने के तरीकों पर बातचीत करें।
हालाँकि, ऐसा नहीं लगता कि रियाद सऊदी अरब-अमेरिका संबंधों को पटरी पर लाने के लिए किसी जल्दबाज़ी में है। क्योंकि सऊदी ने अपनी विदेश नीति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिणाम हासिल किए हैं और अब वे अमेरिका के साथ अच्छे संबंध रखते हुए अपनी मेज का विस्तार करते हुए तेल की संपदा को दूसरे के साथ भी शेयर करना चाहते हैं।
तेल की वह संपदा जिसपर पिछले सात दशकों से नाग की भाति फन काढ़े बैठा है और दूसरों को इसमें आने देने के लिए तैयार नहीं है।
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सऊदी अरब अमेरिका के लिए कितना अहम है इसी बात से समझा जा सकता है कि इस साल की शुरुआत हुए अभी एक महीना भी नहीं हुआ था कि एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी दोनों देशों (संयुक्त राज्य अमेरिका और सऊदी अरब) के बीच विशेष और उत्कृष्ट गठबंधन संबंधों को फिर से शुरू करने के लिए रियाद की यात्रा की।
इस यात्रा में इस अधिकारी ने दोनों देशों के संबंधों को फिर से सामान्य स्थिति में लाने, रियाद और तेल अवीव के बीच संबंधों को सामान्य बनाने और सऊदी अरब में चीन और रूस के प्रभाव को कम करने के लिए भ्रामक प्रस्ताव दिए।
सऊदी अरब-अमेरिका संबंध और ईरान फैक्टर
जेक सुलिवन, अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, अंतिम वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी थे, जिन्होंने क्षेत्रीय मामलों के लिए व्हाइट हाउस के समन्वयक ब्रिक मैकगर्क के साथ सऊदी अरब की यात्रा की। इस यात्रा पर उन्होने जेद्दा में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ विस्तृत बातचीत की।
हालाँकि, बैठकों के अंत में सार्वजनिक बयानों को छोड़कर जिनमें दोनों देशों के साझा हितों का उल्लेख किया गया था, चर्चा किए गए मुद्दों के बारे में अंतिम बयान प्रकाशित नहीं किया गया था।
न्यूयॉर्क टाइम्स के पत्रकार और बिडेन सरकार के करीबी थॉमस फ्रीडमैन ने अपने हालिया लेख में लिखा है कि बिडेन मध्य पूर्व में एक बड़े सौदे पर विचार कर रहे हैं। बिडेन का मुख्या लक्ष्य संयुक्त राज्य अमेरिका और सऊदी अरब के बीच नाटो समझौते के समान समझौता पर हस्ताक्षर करना है।
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इस समझौते के अनुसार रियाद द्वारा तेल अवीव के साथ संबंधों को सामान्य बनाने और एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के बदले में वाशिंगटन सऊदी अरब को समर्थन देने और उसे नए हथियारों से लैस करने का वादा किया गया है।
फ्रीडमैन, जिन्होंने पिछले सप्ताह बिडेन से मुलाकात की, ने खुलासा किया कि सउदी अरब ने अमेरिका के सामने तीन मांग रखी हैं:
- एक संयुक्त रक्षा समझौता।
- शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम का अधिग्रहण।
- उन्नत हथियारों की खरीद, विशेष रूप से THAAD मिसाइल प्रणाली और F35 लड़ाकू विमान।
फ्रीडमैन ने जो लिखा वह अमेरिका की क्षेत्र में अपने देश के घटते प्रभाव को दोबारा प्राप्त करने और सऊदी अरब पर दबाव डालकर इसराइल को बचाने के हताश प्रयास को दिखाता है।
अमेरिका सऊदी अरब और दूसरे अरब देशों पर दबाव डालकर आंतरिक रूप से कहल का शिकार और फिलिस्तीनी एवं प्रतिरोधी गुटों के खतरे का सामने कर रहे इसराइल को नजात देना चाहता है।
अमेरिका से संबंध बनाने के लिए क्या सऊदी अरब इसराइल को स्वीकार करेगा?
अरब के प्रसिद्ध विश्लेषक अब्द अल-बारी अटवान ने एक जानकार अरब राजनेता के हवाले से इस संबंध में लिखा: सुलिवन ने कम से कम दो बार गुप्त रूप से और खुले तौर पर सऊदी अरब की यात्रा की।
अपनी पहली यात्रा पर उनको बिन सलमान से मुकालात करने के लिए कई दिन की प्रतीक्षा करनी पड़ी, उसके बाद बिन सलमान ने उनको केवल कुछ ही मिनट दिए।
क्राउन प्रिंस ने ईरान के साथ संबंधों को निलंबित करने, चीन-रूस के साथ आर्थिक और राजनीतिक संबंधों के समाप्त करने पर उनके लुभावने प्रस्तावों कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। सऊदी अरब को अब अमेरिका की जरूरत नहीं है क्योंकि उसका सितारा गर्दिश में है और दुनिया में उसका नेतृत्व नष्ट हो चुका है।
अमेरिका को ज्यादातर जगहों पर कई हार का सामना करना पड़ा है, खासकर यूक्रेन में रूसियों के खिलाफ, पूर्वी एशिया और अफ्रीका में चीन से।
बिडेन सरकार की नाकामी और अपमान इस सीमा तक पहुँच चुका है कि उसे चीन से अपने संबंधों को सुधारने, चीन और रूस के बीच मतभेद पैदा करने और यूक्रेन युद्ध समाप्त करने के लिए 100 वर्ष से अधिक आयु वाले हेनरी किसिंजर का सहारा लेना पड़ा है!
अटवान इस क्षेत्र में सऊदी रणनीति के बारे में भी लिखते हैं: अंत में, मुझे कहना होगा कि सऊदी अरब, जिसने अरब और इस्लामी देशों के दो क्षेत्रों में अपनी स्थिति मजबूत की है, ने ईरान के साथ अपने संबंधों को समान्य करके एक बड़ी रणनीतिक प्रगति की है।
सऊदी अरब ने पिछले दिसंबर में रियाद में चीनी राष्ट्रपति के लिए लाल कालीन बिछाया। उन्हें आंतरिक कहल से जूझ रहे इसराइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की ज़रूरत न थी और न ही है।
और मुझे नहीं लगता है कि सऊदी अरब ने जो सम्मान इसराइल के साथ संबंधों का विरोध, स्वतंत्र फिलिस्तीनी राष्ट्र की स्थापना, और फिलिस्तीन के हक को दिए जाने की वकालत करके जो अरब जनता के बीच कमाया है उसे खोना चाहेगा।
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सऊदी अरब ने कम से कम अभी तक सेंचुरी डील, ट्रम की उग्र गाय, और इब्राहिमी शांति समझौते (ज़ायोनी शासन के साथ संबंधों को सामान्य बनाना) के मुकाबले में सफल रणनीति अपनाई है।
जब से सऊदी अरब ने अमेरिकी से मुंह मोड़ा है, उसकी स्थिति में सुधार हुआ है, रूस के साथ ओपेक+ समझौते ने उसे एक ऐसे देश (जो बजट घाटे में चल रहा था) से सालाना 200 बिलियन डॉलर से अधिक वाला देश बना दिया है।
सऊदी अरब इस समय ब्रिक्स समूह में शामिल होने के लिए तैयार है, जिसके साथ इसका व्यापार वर्तमान में 160 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष है। इस देश के पास पर्यटन परियोजना है जो इसे मध्य पूर्व में पर्यटकों के लिए पहला गंतव्य बना सकता है और तेल पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है।