कई इस्लामी देशों, संगठनों, मानवाधिकार संस्थाओं और पत्रकारों ने बड़े पैमाने पर हिंदुत्ववादी शक्तियों द्वारा अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने के कराण प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार को आड़े हाथों लिया है। यहां तक कि इन देशों में पत्रकारों और कार्यकर्ताओं ने भी भारत के ख़िलाफ़ प्रतिबंधों और भारतीय उत्पादों के बहिष्कार की भी मांग की है।
इस्लामी देशों के संगठन ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन या ओआईसी ने भी भारत में मस्जिदों और मदरसों को निशाना बनाया जाने पर अपनी नाराज़गी जताई है और मोदी सरकार से इस क्रम को तुरंत रोकने की मांग की है।
57 देशों के इस संगठन ने एक बयान जारी करके भारत में मुसलमानों के ख़िलाफ़ हुई हिंसा पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा है कि बिहार शरीफ़ में मदरसे और लाइब्रेरी में आग लगाने की घटना से पता चलता है कि इस देश में मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत किस हद तक फैल चुकी है। बयान में कहा गया है कि कट्टर हिंदुओं की भीड़ ने इस घटना को अंजाम दिया है। बयान में हिंसा और भड़काने वाली कार्यवाहियों की आलोचना की गई है और उल्लेख किया गया है कि यह भारत में बढ़ते इस्लामोफ़ोबिया और सुनियोजित तरीक़े से मुस्सिलम समुदाय को निशाना बनाने का नतीजा है।
ओआईसी के बयान पर भारत के विदेश मंत्रालय ने कड़ी आपत्ति जताते हुए इस बयान को भारत विरोधी एजेंडा क़रार दिया है।
हालांकि सिर्फ़ ओआईसी ने ही नहीं, बल्कि मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने भी एक बयान जारी करके 30 और 31 मार्च को मुसलमानों के ख़िलाफ़ हुए व्यापक हिंसा की निंदा की है।
एचआरडब्ल्यू ने अपने बयान में कहा कि भारत में सत्ताधारी बीजेपी हिंदू त्योहारों का इस्तेमाल वोट जुटाने और बहुसंख्यकों के धुव्रीकरण के लिए कर रही है, जिससे हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं। कट्टर हिंदुत्ववादी संगठनों और हिंसक भीड़ को राजनीतिक संरक्षण का भरोसा होता है और इसमें शामिल लोग मानते हैं, कि उन्हें इसके लिए सज़ा नहीं दी जाएगी।
एचआरडब्ल्यू ने पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा का ज़िक्र करते हुए कहा कि विपक्ष की सरकार वाले इस प्रदेश में अधिकारियों ने जब हिंसा में शामिल बीजेपी के दर्जनों सदस्यों और उनके समर्थकों को गिरफ्तार किया तो, वहां पार्टी ने पुलिस पर पक्षपाती होने का आरोप लगा दिया।
वहीं क़तर के पत्रकार अब्दुल्लाह अल-मादी ने ट्विटर पर ओआईसी के बयान को रीट्वीट करते हुए लिखाः इस तरह के आधिकारिक बयानों का कट्टर विचारधारा वाली दक्षिणपंथी मोदी सरकार पर कोई असर नहीं होगा, अगर वास्तव में कोई प्रभावी क़दम उठाना है, तो भारत के साथ व्यापार कम करना और भारत के हिंदू कामगारों को नौकरियां नहीं देना है। उन्होंने लिखा कि भारत में हिंदुओं के त्योहार अल्पसंख्यकों के लिए ख़तरे और परेशानी का सबब बनते जा रहे हैं।