आज भारत के 11वें राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि है। 1 मार्च , 1998 को राष्ट्पति भवन में भारत रत्न के पुरस्कार वितरण समारोह में कलाम नर्वस थे और अपनी नीली धारी की टाई को बार बार छू कर देख रहे थे।
कलाम को इस तरह के औपचारिक मौकों से चिढ़ थी जहाँ उन्हें उस तरह के कपड़े पहनने पड़ते थे जिसमें वो अपनेआप को कभी सहज नहीं पाते थे। सूट पहनना उन्हें कभी रास नहीं आया। यहाँ तक कि वो चमड़े के जूतों की जगह हमेशा स्पोर्ट्स शू पहनना ही पसंद करते थे।
भारत रत्न का सम्मान गृहण करने के बाद उन्हें सबसे पहले बधाई देने वालों में से एक थे अटलबिहारी वाजपेई।
वाजपेई की कलाम से पहली मुलाकात अगस्त, 1980 में हुई थी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने उन्हें और प्रोफ़ेसर सतीश धवन को एसएलवी 3 के सफलतापूर्ण प्रक्षेपण के बाद प्रमुख साँसदों से मिलने के लिए बुलवाया था।
कलाम को जब इस आमंत्रण की भनक मिली तो वो घबरा गए और धवन से बोले, सर मेरे पास न तो सूट है और न ही जूते मेरे पास ले दे के मेरी चेर्पू है (चप्पल के लिए तमिल शब्द ) तब सतीश धवन ने मुस्कराते हुए उनसे कहा था, 'कलाम तुम पहले से ही सफलता का सूट पहने हुए हो इसलिए हर हालत में वहाँ पहुंचो।'
नियम से सुबह की नमाज़ पढ़ते थे कलाम
बहुत व्यस्त राष्ट्रपति होने के बावजूद कलाम अपने लिए कुछ समय निकाल ही लेते थे. उनको रुद्र वीणा बजाने का बहुत शौक था।
डाक्टर कलाम के प्रेस सचिव रहे एस एम ख़ाँ ने मुझे बताया था, 'वो वॉक करना भी पसंद करते थे, वो भी सुबह दस बजे या दोपहर चार बजे वो अपना नाश्ता सुबह साढ़े दस बजे लेते थे. इसलिए उनके लंच में देरी हो जाती थी। उनका लंच दोपहर साढ़े चार बजे होता था और डिनर अक्सर रात 12 बजे के बाद डाक्टर कलाम धार्मिक मुसलमान थे और हर दिन सुबह यानि फ़ज्र की नमाज़ पढ़ा करते थे। मैंने अक्सर उन्हें कुरान और गीता पढ़ते हुए भी देखा था।
वो स्वामी थिरुवल्लुवर के उपदेशों की किताब 'थिरुक्कुरल' तमिल में पढ़ा करते थे। वो पक्के शाकाहारी थे और शराब से उनका दूर दूर का वास्ता नहीं था। पूरे देश में निर्देश भेज दिए गए थे कि वो जहाँ भी ठहरे उन्हें सादा शाकाहारी खाना ही परोसा जाए। उनको महामहिम या 'हिज़ एक्सलेंसी' कहलाना भी कतई पसंद नहीं था।
लेकिन कुछ हल्कों में ये शिकायत अक्सर सुनी गई कि केसरिया खेमे के प्रति उनका 'सॉफ्ट कॉर्नर' था। उस खेमे से ये संदेश देने की भी कोशिश की गई कि भारत के हर मुसलमान को उनकी तरह ही होना चाहिए और जो इस मापदंड पर खरा नहीं उतरता उसके आचरण को सवालों के घेरे में लाया जा सकता है।
कलाम द्वारा बीजेपी की समान नागरिक संहिता की माँग का समर्थन करने पर भी कुछ भौंहें उठीं।
वामपंथियों और बुद्धिजीवियों के एक वर्ग को कलाम का सत्य साईं बाबा से मिलने पुट्टपार्थी जाना भी अखरा उनकी शिकायत थी कि वैज्ञानिक सोच की वकालत करने वाला शख़्स ऐसा कर लोगों के सामने ग़लत उदाहरण पेश कर रहा है।