क्या आप जानते है दुनिया की इन ख़तरनाक सड़कों के बारे में
दुनिया की सबसे खतरनाक सड़के जहां से गुज़रने वालों की जान हथेली पर रहती है। यह सड़के खतरनाक ही नही बल्कि कमज़ोर भी है। जिनकी चौड़ाई केवल तीन मीटर ही है।
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अमेरिका में कोलाराडो स्थित 4,800 मीटर लंबा 'कुंब्रे दर्रा' पार करने के बाद हमारी शेयर टैक्सी यानी ट्रुफी धुंध के बादल में घिर गई।
टैक्सी के भीतर हमें अजीब सी शांति महसूस हो रही थी। ऐसा लगा कि हम किसी बुलबुले में फंस गए हों। वो स्थिति इसलिए अच्छी थी कि हम 'कैमिनो डे ला मुर्ते' या 'डेथ रोड' पर यात्रा कर रहे थे। पश्चिमी बोलीविया के बहुत ऊंचाई पर बसे शहर ला पाज़ से युंगस वैली और उसके आगे अमेज़न की तराई को जाने वाली सड़क की ढाल काफ़ी तेज़ है। युंगस रोड की ढाल इतनी तेज़ है कि मात्र 64 किमी में इसकी ऊंचाई 3,500 मीटर कम हो जाती है। कई जगह तो यह सड़क केवल तीन ही मीटर चौड़ी है। इस सड़क पर कई मोड़ काफ़ी तीखे और कई छिपे हुए किनारे हैं। सड़क के पास की चट्टानों से कई छोटे झरने गिरते नज़र आते हैं।
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इस सड़क पर इक्का दुक्का ही सेफ़्टी बैरियर दिखते हैं। हालांकि सड़क किनारे सफ़ेद क्रॉस, कई तरह के फूल ज़रूर दिख जाते हैं। नब्बे के दशक में इस हाइवे पर हुई दुर्घटनाओं में इतनी संख्या में लोग मारे गए कि इंटर-अमेरिकन डिवेलपमेंट बैंक ने इसे 'दुनिया की सबसे ख़तरनाक सड़क' क़रार दिया था। इस सड़क का निर्माण पैराग्वे (1864-70) और चाको (1932-35) की लड़ाइयों के दौरान बंदी बनाए गए क़ैदियों से करवाया गया था।
सड़क पर हमारी टैक्सी धीमी गति से रेंग रही थी और ड्राइवर आगे की ओर झुका हुआ था। अपनी स्टीयरिंग पर वो ऐसे झुके थे मानो उनकी आंख की जांच हो रही हो। उसके बाद अचानक हम धूप की रोशनी मे आ गए। इस बीच विपरीत दिशा से आ रहा एक मोटरबाइक हमारा विंग मिरर ले उड़ा।
हमसे कुछ ही आगे तीन साइकिल सवारों ने एक बड़े से गड्ढे को पार किया। हालांकि सड़क के उस सबसे ख़तरनाक स्ट्रेच के पास ही एक बाईपास बनाया गया है, पर इस सड़क को लेकर फैले भय के चलते पर्यटकों के बीच यह काफ़ी लोकप्रिय है। इस चलते इस सड़क का अनुभव लेने के लिए बड़े पैमाने पर पर्यटक वहाँ सफ़र करते रहते हैं।
यह रास्ता जिस इलाक़े में पहुँचता है, उसे बहुत लोगों ने नहीं देखा है। वो कई ख़ूबसूरत नज़ारों का संगम है।
एंडीज़ और अमेज़ॉन के बीच फैली युंगस घाटी, उपजाऊ होने के साथ जैव विविधता के लिहाज़ से काफ़ी अहम है। बोलीविया की आम बोली आयमारा में युंगस का मतलब 'गर्म भूमि' होता है। उस इलाक़े में दो क़ीमती संसाधन प्रचुरता में उपलब्ध हैं: एक कोका और दूसरा सोना। इस चलते वो क्षेत्र सदियों से लोगों के आकर्षण, ग़लतफ़हमी और विवादों की वजह रहा है। उस ख़तरनाक सड़क 'डेथ रोड' पर क़रीब दो घंटे चलने के बाद हम कोराइको पहुँचे। वो कभी सोना खुदाई का अहम केंद्र हुआ करता था। आज वो शांत और कई रिसॉर्ट वाला शहर है। हमारी गाड़ी पन्ना जैसे हरे रंग से भरे ढलान की ओर बढ़ती गई। खाने पीने और सोने की बेहतरीन जगह उपलब्ध होने के साथ वहाँ की जलवायु भी मनमोहक है। वहाँ से लहरदार पहाड़ियों के बेहतरीन नज़ारे भी दिखा करते हैं।
कोराइको छोड़कर जाने को मन नहीं करता। लेकिन अपनी कमरतोड़ यात्रा की थकान बिताने में एक दिन लगाने के बाद मैं आसपास घूमने निकला। मैं जानना चाहता था कि आधुनिक बोलिविया को आकार देने में इस इलाक़े ने क्या और किस तरह से योगदान दिया।
वहाँ की उर्वर मिट्टी और जमकर होने वाली बरसात के चलते युंगस खेती का प्रमुख केंद्र बन गया। अतीत में इन्का और उससे भी पहले के तिवानाकु जैसे साम्राज्यों के लिए यह इलाक़ा भोजन का प्रमुख स्रोत रहा है।
बोलिविया में एंडीज़ के इलाक़ों में छोटे क़द के पालतू ऊंटों की एक प्रजाति पाई जाती है, जिसे लामा कहा जाता है। लामा पालने वाले ख़ानाबदोश लोग उनका काफ़िला लेकर दूर दूर तक घूमते रहे हैं। उनके द्वारा खोजे गए कई आड़े तिरछे रास्ते इस इलाक़े में भरे दिखते हैं। अतीत में इन रास्तों के ज़रिए कारोबार होता था।
आज भी यह इलाक़ा कई तरह के खाद्य सामग्रियों के उत्पादन का मुख्य ठिकाना बना हुआ है। मैं जैसे ही रियो की ओर जाने वाली सदियों पुरानी एक पगडंडी पर बढ़ा, मुझे वहां पहाड़ों के किनारे लगाए गए कॉफी, केले, कसावा, अमरूद, पपीते और खट्टे फलों के बगान दिखे। मुझे वहां कई झाड़ी वाले पौधे भी दिखे, जिसकी शाखाएं पतली, पत्ते अंडाकार आकार के और उस पर लगे फल लाल रंग के थे। ये कोका के पौधे थे। कोका हज़ारों सालों से दक्षिण अमेरिकी की तमाम संस्कृतियों का अहम हिस्सा है। बोलिविया इस महाद्वीप में कोका के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक रहा है। यहां सैकड़ों वर्ग किलोमीटर फैले इलाक़े में कोका की खेती होती है। और इनका दो तिहाई उत्पादन अकेले युंगस में होता है।
विटामिन और खनिज से भरपूर कोका की पत्तियां हल्के उत्तेजक (स्टिमुलेंट) का काम करती हैं। इसे खाने से ऊंचे इलाक़ों में जाने पर होने वाली समस्याओं के साथ भूख, प्यास और थकान भी दूर हो जाती है। पाचन क्रिया दुरुस्त करने और दर्द दूर भगाने में भी यह कारगर है। पिछले क़रीब 8 हज़ार सालों से धार्मिक समारोहों, दवाइयों, आर्थिक लेनदेन और सामाजिक संबंधों को मज़बूत करने में कोका का उपयोग होता आ रहा है। दक्षिण अमेरिका पर जब स्पेन का नियंत्रण हुआ तो वहां के लोगों ने कोका को कमतर करने की कोशिश की। लेकिन खदानों और बागानों में मेहनत करने को मजबूर स्थानीय लोगों पर कोका का लाभकारी असर देखने के बाद स्पेन के अधिकारियों का हृदय परिवर्तन हो गया। उसके बाद उन्होंने इस फसल के व्यापार को बढ़ावा दिया।
बाद में कोका की महिमा दक्षिण अमेरिका से आगे फैली। माना जाता है कि अंग्रेज़ी साहित्य में पहली बार कोका का ज़िक्र लंदन के अब्राहम काउली की 1662 में लिखी कविता 'ए लीजेंड ऑफ़ कोका' में हुआ। अपनी उस कविता में उन्होंने लिखा था: पोषण के चामात्कारिक गुणों से भरपूर इसके पत्ते जब पेट में जाते हैं, तो इससे भूख पर जीत तो मिलती है और कड़ी मेहनत करने की ताक़त भी आती है। 19वीं सदी में कोका और इसके साइकोएक्टिव एल्कलॉइड 'कोकीन' यूरोप और उत्तरी अमेरिका में तेज़ी से लोकप्रिय होते गए। विभिन्न पेय पदार्थों, टॉनिक, दवाइयों और दूसरे कई उत्पादों में कोकीन होता था।
फ्रांस की एक शराब 'विन मारियानी' में तो हर लीटर में 200 मिलीग्राम तक कोकीन होता था। प्रचार अभियानों में दावा किया गया कि इसके सेवन से 'शरीर और दिमाग़ दोनों तरोताज़ा' हो जाते हैं। यह भी दावा किया गया कि इसके प्रशंसकों में महान वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन, अमेरिका के राष्ट्रपति रहे यूएस ग्रांट, फ्रांस के महान उपन्यासकार एमिली ज़ोला और पोप लियो XIII शामिल थे। अमेरिका के जॉर्जिया राज्य में विन मारियानी जैसे उत्पादों की सफलता देखकर फार्मासिस्ट और पूर्व सैनिक जॉन पेंबर्टन को 'पेंबर्टन्स फ्रेंच वाइन कोका' बनाने का विचार आया। उनकी शराब कोकीन और अल्कोहल के साथ कोला अखरोट का अर्क मिलाकर बनाई जाती थी। कोला अखरोट में कैफ़ीन की प्रचुरता होती है।
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बाद में इसी से 'कोका कोला' का विकास हुआ। वैसे तो कोका कोला से कोकीन और अल्कोहल को बहुत पहले हटा दिया गया, लेकिन कोकीन मुक्त कोका की पत्तियों के अर्क का आज भी इस्तेमाल हो रहा है। खाने पीने के उत्पादों में ख़ास क़िस्म का स्वाद पैदा करने के काम यह आता है। मालूम हो कि कोकीन और कोकीन से बने उत्पाद 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में पूरे यूरोप और उत्तरी अमेरिका में क़ानूनी थे। मनोविज्ञान में हस्ती बन चुके मशहूर मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने इसके समर्थन में कई परचे लिखे और ख़ुद पर भी इसका प्रयोग किया। उन्होंने एक परचे में लिखा था, "कोकीन की छोटी सी ख़ुराक ने मुझे आनंद की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया।" लेकिन कई तरह की बुराइयों और अपराध के साथ कोकीन का रिश्ता जुड़ने पर बाद में कोकीन और कोका दोनों पर दुनिया के कई देशों में प्रतिबंध लगा दिया गया। फिर भी बोलिविया में कोका का इस्तेमाल क़ानूनी बना रहा। 1980 के दशक में कोकीन की मांग के फिर से बढ़ने पर अमेरिका द्वारा छेड़ी गई 'ड्रग्स के ख़िलाफ़ लड़ाई' के चलते बोलिविया में चापारे का इलाक़ा तबाह हो गया। वो इलाक़ा कोका उत्पादन का मुख्य क्षेत्र बन गया था।
नशीले पदार्थों के ख़िलाफ़ चली कार्रवाइयों के चलते मानवाधिकारों का जमकर हनन हुआ। इन कार्रवाइयों में बहुत लोगों की हत्याएं हुईं और कइयों को यातना दी गई। कइयों की मनमाने तरीक़े से गिरफ़्तार किया गया। इसके जवाब में 'कोकालेरोस' यानी कोका पैदा करने वाले किसानों का लोकप्रिय आंदोलन सामने आया। इन किसानों में से अधिकांश 'क्वेशुआ' या 'आयमारा' आदिवासी समूह के लोग थे।
सोर्स : बीबीसी