नए कैबिनेट की विश्वास मत की बैठक में नेतन्याहू ने कैबिनेट की गंभीर प्राथमिकता के रूप में बस्तियों के निर्माण के मुद्देश को प्राथमिकता से उठाया। बस्तियों का निर्माण, फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन के मुख्य अपराधों में से एक है। यह अपराध इस शासन के क़ब्ज़े वाली नीति की परिधि में ही है और इसीलिए फिलिस्तीनी भूमि और घरों की ज़ब्ती तथा फ़िलिस्तीनियों का बड़े स्तर पर विस्थापन हुआ है।
वास्तव में ज़ायोनी शासन बस्तियों का निर्माण करके भूगोल न होने की समस्या को हल करना चाहता है और दूसरी ओर 21वीं सदी की शुरुआत से यह पूरे फ़िलिस्तीन पर क़ब्जा करने की कोशिश कर रहा है।
बस्तियों के सामाजिक और सुरक्षा नतीजे, फ़िलिस्तीनियों के लिए इतने भयानक हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने 2016 में इस अपराध की निंदा करते हुए प्रस्ताव 2334 पारित किया लेकिन उस समय नेतन्याहू के मंत्रिमंडल ने पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के समर्थन से इस प्रस्ताव का उल्लंघन किया।
अब नेतन्याहू एक बार फिर बस्तियों के निर्माण में वृद्धि पर ज़ोर दे रहे हैं जबकि उनके नये कार्यकाल को शुरु हुए केवल 6 ही दिन हुए हैं।
बस्तियों के निर्माण के लिए ज़ायोनी शासन के मंत्रिमंडल के प्रयासों की निंदा करते हुए क़तर की संसद ने इस शासन को इसके परिणामों के बारे में सचेत किया और इस अपराध की निंदा करने में अरब संसदों की संयुक्त कार्रवाई का आह्वान किया।
एक बयान में अरब संसद ने फ़िलिस्तीनियों के खिलाफ तेल अवीव की नई कैबिनेट के फ़ैसले और कार्रवाई की निंदा की। इससे पहले ओमान की संसद ने अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन के साथ किसी भी तरह की बातचीत पर रोक लगा दी थी।
अरब संसदों की इन कार्रवाइयों से पता चलता है कि कई अरब देशों के प्रयासों के विपरीत, जो इस्राईल के साथ संबंध विकसित करने और फिलिस्तीनी मुद्दे को हाशिए पर रखने की दिशा में बढ़ रहे हैं, अरब संसदों की एक और संख्या जनमत और लोगों के अनुरूप फिलिस्तीन का समर्थन करने के लिए कदम उठा रही है। अरब दुनिया की फिलिस्तीन के समर्थन में यह राजनीतिक एकता, ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ दबाव बढ़ा सकती है।
अरब संसदों और लोगों के इस समर्थन के साथ ज़ायोनी शासन का सामना करने के लिए फ़िलिस्तीनी गुटों का गंभीर दृढ़ संकल्प भी सामने है, यह गुट न केवल ज़ायोनी शासन के कट्टरपंथी नए कैबिनेट की चेतावनियों और कार्यों से डरते हैं, बल्कि वे अतिवादियों और अतिग्रहकारी ज़ायोनी शासन की हिंसक कार्यवाहियों का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।
महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि इस प्रक्रिया में हारने वाले सऊदी अरब जैसे देश हैं जो अरब दुनिया की जनता के आंदोलन पर बिना सोचे समझे इस्राईल के साथ संबंधों को सामान्य करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहे हैं।